देहरादून, 21 फरवरी : विधानसभा में बजट सत्र के दौरान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 पर चर्चा करते हुए कहा कि यह संशोधन भू सुधारों में अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने जन भावनाओं के अनुरूप भू सुधारों की नींव रखी है और भविष्य में भी भू प्रबंधन एवं सुधार के लिए सतत प्रयास किए जाएंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने राज्य की जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के संसाधनों और भूमि को भू-माफियाओं से बचाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। सरकार ने देखा कि भूमि खरीदी जाने के बाद उसका उपयोग सही तरीके से नहीं हो रहा था, बल्कि इसका दुरुपयोग हो रहा था।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पर्वतीय और मैदानी दोनों इलाके हैं, जिनकी भौगोलिक परिस्थितियाँ और चुनौतियाँ भिन्न हैं। जब से स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तराखंड के लिए औद्योगिक पैकेज दिया, तब से राज्य में औद्योगीकरण तेजी से बढ़ा है। ऐसे में वास्तविक निवेशकों को कोई दिक्कत न हो और निवेश भी न रुके, इसके लिए नए संशोधन में सभी पहलुओं को समाहित किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विगत वर्षों में देखा गया कि राज्य में विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से स्थानीय लोगों को रोजगार देने के नाम पर जमीनें खरीदी जा रही थीं। उन्होंने कहा कि भू प्रबंधन एवं भू सुधार कानून लागू होने के बाद इस पर प्रभावी रोक लगेगी और इससे असली निवेशकों और भू-माफियाओं के बीच अंतर स्पष्ट होगा। राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाने का कार्य किया है, जिसमें 3461.74 एकड़ वन भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया गया है। इससे राज्य की पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को संरक्षित किया गया है।
उन्होंने बताया कि कृषि एवं औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमि खरीद की अनुमति जो पहले कलेक्टर स्तर पर दी जाती थी, उसे 11 जनपदों में समाप्त कर केवल हरिद्वार और उधम सिंह नगर में राज्य सरकार के स्तर से निर्णय लिए जाने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा, 12.5 एकड़ से अधिक भूमि खरीद संबंधी निर्णय भी केवल हरिद्वार एवं उधम सिंह नगर के लिए राज्य सरकार के स्तर पर किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने बताया कि आवासीय परियोजनाओं के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि क्रय हेतु शपथ पत्र अनिवार्य कर दिया गया है। यदि शपथ पत्र गलत पाया गया तो वह भूमि राज्य सरकार में निहित कर दी जाएगी। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों के अंतर्गत थ्रस्ट सेक्टर एवं अधिसूचित खसरा नंबर भूमि क्रय की अनुमति अब कलेक्टर स्तर के बजाय राज्य सरकार के स्तर से दी जाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नए कानून में कई बड़े बदलाव किए गए हैं और सरकार ने गैरसैंण में हितधारकों और नागरिकों से विचार-विमर्श कर उनकी राय को शामिल किया है। जिलाधिकारियों और तहसील स्तर पर भी आम जनता से सुझाव लेकर इस कानून को तैयार किया गया है ताकि राज्य की जनसांख्यिकी संरक्षित रहे।
मुख्यमंत्री ने बताया कि औद्योगिक, पर्यटन, शैक्षणिक, स्वास्थ्य, कृषि एवं औद्यानिक प्रयोजन हेतु कुल 1883 भूमि क्रय की अनुमति दी गई है। इनमें से 599 मामलों में भू-उपयोग उल्लंघन सामने आए हैं, जिनमें 572 प्रकरणों में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश-2001) की धारा 166/167 के तहत कानूनी कार्यवाही की गई है। 16 मामलों में निर्णय लेते हुए 9.4760 हेक्टेयर भूमि राज्य सरकार में निहित कर दी गई है, और शेष मामलों में कार्यवाही जारी है।