आज सिनेमाघरों में फिल्म ‘छावा’ देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है। यह फिल्म एक ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह उन अनछुए पहलुओं को सामने ला रही है, जिन्हें हमारी शिक्षा प्रणाली में प्रमुखता से पढ़ाया जाना चाहिए था। यह कार्य पहले हमारी शिक्षा प्रणाली को करना चाहिए था, साहित्य और फिल्मों में इसे बाद में लाया जाना चाहिए था। परंतु आज़ादी के बाद हम सायास भयानक छलपूर्वक ‘मुगले आजम’ और ‘जोधा-अकबर’ जैसी फिल्मों के माध्यम से इतिहास के विकृत रूप से परिचित होते रहे।
फिल्म देखने आए 84 वर्षीय बुजुर्ग दर्शक, श्रीमान सरजू प्रसाद ने कहा, “देश की आज़ादी के असली महानायक छत्रपति शिवाजी और छत्रपति संभाजी जैसे वीर हैं, जिन्होंने भारत की आत्मा को बुझने नहीं दिया। यह फिल्म उसी दुर्दांत दौर की एक छोटी सी झलक है। अगर हमें आज़ादी के बाद इतिहास का सही विवरण नहीं बताया गया, तो यह हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें यह विस्तार से बताया जाना चाहिए था कि भारत ने असल में क्या-क्या भोगा और भुगता है।”
इतिहास के पन्नों में छत्रपति संभाजी की वीरता
मराठी साहित्यकार शिवाजी सावंत की साहित्यिक कृति ‘छावा’ पर आधारित यह फिल्म छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर केंद्रित है। संभाजी राजे को ‘सिंह का शावक’ कहा जाता है और उन्होंने अपने पराक्रम से हिंदवी स्वराज की रक्षा की थी। फिल्म में दिखाया गया है कि किस प्रकार मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी मजहबी कट्टरता के चलते संभाजी राजे पर अत्याचार किए और उनकी निर्मम हत्या करवा दी।
2018 में कोल्हापुर की यात्रा के दौरान, लेखक ने छत्रपति शिवाजी और छत्रपति संभाजी के इतिहास को महसूस किया था। महाराष्ट्र में, इन दोनों वीरों की गाथा हर हिंदू के रक्त में प्रवाहित होती है। जब पुणे में एक ऑटो चालक ने संभाजी राजे की महिमा का उल्लेख किया, तो यह स्पष्ट हुआ कि इतिहास की यह अमर गाथा आज भी जनमानस में जीवित है।
भारत के असली संघर्ष की कहानी
फिल्म ने दर्शकों को उन ऐतिहासिक क्रूरताओं से परिचित कराया, जिनका सामना भारत के वीरों ने किया था। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता को नष्ट करने के लिए हर संभव प्रयास किए। परंतु छत्रपति संभाजी, गुरु गोविंद सिंह और उनके वीर बालकों ने बलिदान देकर अपने धर्म और मातृभूमि की रक्षा की।
इतिहास साक्षी है कि किस प्रकार मुस्लिम आक्रांताओं ने हजारों वर्षों तक हिंदुओं का संहार किया, उनके मंदिरों को ध्वस्त किया और उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया। फिल्म ‘छावा’ इन कटु तथ्यों को बिना किसी संकोच के सामने रखती है। यह फिल्म उन वीरों की कहानी कहती है, जिनके बलिदान को वामपंथी इतिहासकारों ने दबाने का प्रयास किया था।
शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
फिल्म के माध्यम से एक गंभीर प्रश्न उठता है – क्या हमें अपने इतिहास की सही जानकारी बचपन से नहीं मिलनी चाहिए थी? क्या यह शिक्षा पाठ्यक्रमों का कर्तव्य नहीं था कि हमारे युवाओं को छत्रपति शिवाजी और संभाजी महाराज के शौर्य की गाथा पढ़ाई जाती? दुर्भाग्यवश, स्वतंत्रता के बाद भारतीय इतिहास को विकृत किया गया, ताकि विदेशी आक्रांताओं को नायक के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
‘छावा’ को लेकर दर्शकों की प्रतिक्रिया
फिल्म में विक्की कौशल, अक्षय खन्ना और आशुतोष राणा जैसे कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है। वीर रस से परिपूर्ण इस करुण कथा में संगीत भी प्रभावशाली है। फिल्म देखकर निकलने वाले दर्शकों की आँखें नम थीं। बुजुर्ग दर्शक श्रीमान सरजू प्रसाद ने कहा, “हमारे लाखों पूर्वजों को जिस प्रकार यातनाएं दी गईं, उनकी गर्दनें काटी गईं, उनकी खालें जिंदा ही उधेड़ दी गईं – इस फिल्म ने उन सबका दर्द जीवंत कर दिया है।”
इस फिल्म को देखकर यह स्पष्ट होता है कि समय सदा एक सा नहीं रहता, और इतिहास कभी भी अपना हिसाब स्वयं चुका लेता है। इसलिए हमें अपने गौरवशाली इतिहास को जानना और सम्मान देना आवश्यक है। ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ और ‘छत्रपति संभाजी राजे’ को हमारा शत-शत नमन।