भारत में चूहों के प्रकोप से बचाव के लिए उल्लू का उपयोग: एक प्राकृतिक समाधान
भारत में कृषि उत्पादन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक चूहों का प्रकोप है। विशेष रूप से गेहूं के खेतों में चूहे काफी नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे किसानों को भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। परंपरागत रूप से चूहों को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक कीटनाशकों और जालों का उपयोग किया जाता रहा है, लेकिन ये विधियां महंगी और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकती हैं। जैविक नियंत्रण, विशेष रूप से प्राकृतिक शिकारी पक्षियों जैसे उल्लू का उपयोग, चूहों की समस्या को कम करने का एक प्रभावी और पर्यावरण-संवेदनशील तरीका हो सकता है।
कैसे करें उल्लू को खेतों में आकर्षित?
उल्लू रात्रिचर पक्षी होते हैं और चूहों का शिकार करने में अत्यधिक दक्ष होते हैं। यदि किसान उल्लू को अपने खेतों में आकर्षित करने के प्रयास करें, तो वे प्राकृतिक रूप से चूहों की संख्या को नियंत्रित कर सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
1. फरवरी-मार्च में विशेष सतर्कता रखें
फरवरी और मार्च के महीने गेहूं की फसल के लिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि इस दौरान बालियां निकलती हैं। यदि खेत में कुछ स्थानों पर बालियां असामान्य रूप से ऊंची दिखें, तो यह संकेत हो सकता है कि वहां चूहों का प्रकोप है। चूहे पौधों की जड़ों को कुतरते हैं, जिससे आसपास के पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनकी वृद्धि प्रभावित होती है। इसलिए, किसानों को इस अवधि में अपने खेतों का नियमित निरीक्षण करना चाहिए और चूहों की गतिविधियों के संकेतों को पहचानकर जैविक नियंत्रण उपायों को अपनाना चाहिए।
2. बांस की फट्टी और पॉलीथिन का उपयोग करें
उल्लू को खेतों में आकर्षित करने के लिए एक पारंपरिक और सरल तरीका बांस की पतली फट्टी (छड़ी) पर पॉलीथिन लपेटकर खेतों में गाड़ना है। इस विधि को स्थानीय भाषा में ‘धुआ’ कहा जाता है। इसका प्रयोग कई क्षेत्रों में चूहों के नियंत्रण के लिए किया जाता है।
कैसे करें उपयोग?
- खेत के विभिन्न हिस्सों में 4–7 फीट ऊंची बांस की छड़ियां (गेहूं की प्रजाति के अनुसार) लगाएं।
- इन छड़ियों के ऊपरी सिरे पर सफेद या पारदर्शी पॉलीथिन की पट्टियां लपेटें, ताकि वे हवा में हिल सकें।
- हवा चलने पर पॉलीथिन से उत्पन्न ‘फर-फर’ की आवाज चूहों को डराकर खेतों से बाहर निकाल सकती है।
- यह ध्वनि उल्लू को भी आकर्षित करती है, क्योंकि वे शिकार की तलाश में ऐसी आवाजों पर ध्यान देते हैं।
3. उल्लू के बैठने के लिए उपयुक्त स्थान बनाएं
उल्लू को खेतों में टिकने के लिए ऐसे स्थानों की आवश्यकता होती है, जहां वे सुरक्षित रूप से बैठ सकें और शिकार पर नजर रख सकें। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- खेत के चारों ओर लकड़ी या बांस के ऊंचे खंभे लगाएं, ताकि उल्लू इन पर बैठ सकें।
- खेतों के पास बड़े और घने पेड़ संरक्षित करें, क्योंकि उल्लू अक्सर ऊंचाई पर बैठकर शिकार की तलाश करते हैं।
- यदि संभव हो, तो खेतों के किनारों पर कृत्रिम घोंसले (लकड़ी के बक्से) बनाकर उल्लू के रहने के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार किया जा सकता है।
4. रात्रि में ध्वनि उत्पन्न करें
चूहे आमतौर पर रात के समय अधिक सक्रिय होते हैं। हवा चलने पर पॉलीथिन से उत्पन्न ‘फर-फर’ की आवाज न केवल चूहों को भयभीत करती है, बल्कि उल्लू को भी आकर्षित करती है। यह ध्वनि उनके लिए एक संकेत के रूप में कार्य करती है कि खेत में शिकार उपलब्ध है।
उल्लू आधारित जैविक नियंत्रण के लाभ
✅ पर्यावरण के अनुकूल: चूहों को नियंत्रित करने के लिए किसी भी प्रकार के विषैले रसायनों या कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं पड़ती। ✅ निःशुल्क प्राकृतिक उपाय: एक बार उल्लू खेतों में बस जाते हैं, तो वे प्राकृतिक रूप से चूहों की संख्या को नियंत्रित करते रहते हैं। ✅ फसल की सुरक्षा: चूहे सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि खेतों में बीजों और अनाज को भी नुकसान पहुंचाते हैं। उल्लू की उपस्थिति से यह खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। ✅ लंबे समय तक प्रभावी: एक बार उल्लू का बसेरा बन जाने पर वे बार-बार उसी क्षेत्र में लौटते हैं, जिससे चूहों की समस्या स्थायी रूप से कम हो सकती है।
सारांश
भारत में पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक जैविक नियंत्रण विधियों का संयोजन किसानों के लिए चूहों की समस्या से निपटने का एक कारगर समाधान प्रदान कर सकता है। उल्लू जैसे प्राकृतिक शिकारी पक्षियों को प्रोत्साहित करके किसान बिना किसी अतिरिक्त लागत के अपनी फसलों की रक्षा कर सकते हैं।
खेती को अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए हमें प्राकृतिक समाधानों को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। यदि किसान उल्लू को अपने खेतों में आकर्षित करने के लिए उपयुक्त वातावरण बनाएं, तो वे चूहों के प्रकोप से राहत पा सकते हैं और अपनी फसल की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।