नई दिल्ली, 21 फरवरी 2025 : किसान तेजी से पपीता की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि इसे अत्यधिक लाभदायक फसल माना जाता है। हालांकि, उचित जानकारी के अभाव में यह आर्थिक रूप से नुकसानदायक भी साबित हो सकती है। पपीते की मार्केटिंग में कोई कठिनाई नहीं होती, क्योंकि इसके औषधीय और पौष्टिक गुणों के कारण इसकी मांग बनी रहती है।
परंपरागत गेहूं-धान जैसी फसलों की तुलना में फल-फूल और सब्जियों की खेती अधिक लाभकारी हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, पपीते की खेती से किसान प्रति हेक्टेयर दो से तीन लाख रुपये की शुद्ध कमाई कर सकते हैं।
पपीते की खेती क्यों करें?
पपीता विटामिन ए का सबसे अच्छा स्रोत है, जो कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज और वजन घटाने में सहायक होता है। यह आंखों की रोशनी बढ़ाने के साथ-साथ महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान दर्द को कम करने में भी मदद करता है। इसमें मौजूद एंजाइम ‘पपेन’ के औषधीय गुणों के चलते इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
पपीते की फसल एक वर्ष के भीतर फल देने लगती है, जिससे इसे नकदी फसल के रूप में उगाया जा सकता है। उचित फासले के साथ खेती करने पर प्रति हेक्टेयर लगभग एक से डेढ़ लाख रुपये की लागत आती है, जिससे दो से तीन लाख रुपये की शुद्ध कमाई संभव होती है।
पपीता लगाने का सर्वोत्तम समय
पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है, जिसकी रोपाई वर्ष में तीन बार – जून-जुलाई, अक्टूबर-नवंबर और मार्च-अप्रैल में की जा सकती है। पपीते की खेती जलभराव वाली भूमि में नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यह पानी को लेकर अत्यंत संवेदनशील होता है।
मार्च-अप्रैल में पपीते की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि इस समय बीमारियों का प्रकोप तुलनात्मक रूप से कम होता है। उन्नत किस्मों के बीजों को अधिकृत स्रोतों से प्राप्त कर उन्हें कीटनाशकों एवं फफूंदनाशकों से उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए।
पपीते में रोग एवं उनका प्रभावी प्रबंधन
पपीते की फसल सफेद मक्खी जनित पर्ण संकुचन रोग और एफिडस्ट जनित रिंग स्पॉट वायरस से अत्यधिक प्रभावित होती है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय एवं आईसीएआर-एआईसीआरपी (फ्रूट्स) द्वारा विकसित तकनीकों के अनुसार रोग प्रबंधन के निम्नलिखित उपाय प्रभावी हैं:
✔ रोगरोधी किस्मों का चयन करें।
✔ नेट हाउस या पॉली हाउस में पौधों की नर्सरी तैयार करें।
✔ रोपाई के लिए मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर उपयुक्त समय है।
✔ फसल की क्यारियों के किनारे ज्वार, बाजरा, मक्का या ढैंचा लगाने से एफिड के प्रसार को रोका जा सकता है।
✔ रोगग्रस्त पौधों को तुरंत नष्ट करें।
✔ एफिड नियंत्रण हेतु इमीडाक्लोप्रीड (1 मिली/लीटर पानी) का छिड़काव करें।
✔ वार्षिक फसल चक्र अपनाकर रोग चक्र को तोड़ें।
✔ जैविक खेती अपनाने से रोग का प्रभाव कम होता है।
✔ मृदा परीक्षण के आधार पर जिंक एवं बोरॉन की कमी को पूरा करें।
✔ नवजात पौधों के आसपास सिल्वर एवं काले रंग की प्लास्टिक मल्चिंग करें।
पपीते की उन्नत किस्में एवं उनकी उत्पादन क्षमता
✅ देशी किस्में: रांची, बारवानी, मधु बिंदु
✅ विदेशी किस्में: सोलो, सनराइज, सिन्टा, रेड लेडी
✅ रेड लेडी: प्रति पौधा 70-80 किलोग्राम उपज।
✅ पूसा नन्हा: सबसे बौनी प्रजाति, 30 सेमी ऊंचाई पर फल देना शुरू करती है।
✅ बाजार मूल्य: ₹15-₹50 प्रति किलोग्राम, जिससे प्रति हेक्टेयर 3-3.5 लाख रुपये की संभावित आय।
अंतरफसली खेती से अतिरिक्त लाभ
पपीते के पौधों के बीच पर्याप्त जगह होती है, जिसमें प्याज, पालक, मेथी, मटर, और बीन जैसी फसलें उगाकर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
महत्वपूर्ण सावधानियां
❌ तीन वर्षों तक एक ही खेत में दोबारा पपीते की खेती न करें।
❌ अत्यधिक पानी से बचाव करें, जलभराव से पौधों की मृत्यु हो सकती है।
❌ कीट एवं रोग प्रबंधन हेतु समय-समय पर अनुशंसित उपाय अपनाएं।
सारांश
मार्च-अप्रैल में पपीते की खेती कम लागत, अधिक उत्पादन और कम रोगों के कारण लाभदायक साबित हो सकती है। उचित कृषि पद्धतियों और वैज्ञानिक तकनीकों का पालन करके किसान अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं और पपीते की खेती को सफल बना सकते हैं।