
पहाड़ी क्षेत्रों में 1500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों मै खेतों के किनारे गधेरों के आसपास नम स्थानों पर अधिकतर गांव मै अखरोट के पौधे नज़र आते हैं। बगीचे के रुप मै अखरोट के बाग राज्य में कम ही देखने को मिलते हैं । इसके कई कारण हैं।
1- कलमी पौधों की उपलब्धता का न होना ।
2-Re-establishment problem यानी नर्सरी से पौधे उखाड कर खेतों मै लगाने पर अधिक मृत्युदर (50-60 %) का होना।
3-Long gestation period याने पौध रौपण के 12-15 वर्षो बाद रोपित पौधों मै फल आना।
4- उधान विभाग, विभिन्न परियोजनाओं तथा संस्थाऔ द्वारा आपूर्ति किये गये अखरोट के बीजू पौधौ की विश्वसनीयता का ना होना।
कई अन्य ऐसे कारण हैं जिससे उतराखण्ड मै अखरोट के उधान विकसित नही हो पा रहे हैं।
यदि आपको अखरोट के कलमी पौधे उपलब्ध नहीं हो पा रहें तो आप इस विधि से अखरोट के बाग विकसित कर सकते हैं। विभागौं व संस्थाओं द्वारा योजनाओं में आपूर्ति किए गए बीजू पौधों की कोई विश्वसनीयता नहीं है अधिकतर काठी ही निकलेंगे।
1500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थान जिनका ढलान उत्तर या पुर्व दिशा मे हो तथा पाला अधिक न पड़ता हो अखरोट उत्पादन हेतु उपयुक्त पाये जाते हैं, जिन क्षेत्रो/गावों मै पहले से ही अखरोट के फलदार पौधे हैं इस आधार पर भी अखरोट लगाने हेतु स्थान का चयन किया जा सकता है।
पहाड़ी क्षेत्र के गावों या आस-पास के क्षेत्रो मै कुछ अखरोट के पौधों की प्रसिद्धि उनके फलों की उपज एवं गुणवता के कारण होती है ऐसे उन्नत किस्म के अखरोट के पौधौं का चयन स्थानीय ग्रामीणों की जानकारी के आधार पर करें ।
सितम्बर माह में अखरोट के फल तैयार होने शुरु हो जाते हैं ऊंचाई ढलान एंव हिमालय से दूरी के आधार पर अखरोट के फल तैयार होने का समय कुछ दिन आगे पीछे हो सकता है।
जिस समय अखरोट के बाहर का हरा छिलका फटने लगे समझो फल तैयार हो गया ऐसी अवस्था आने पर चयनित (उन्नत किस्म के अख्ररोट) पौधे से उत्पादित फलों को तोड लें तथा किसी नम स्थान पर रख कर फलों के बाहरी छिलके को हल्की डंडी से पीट कर अलग कर लें तथा गीले बोरे से ढक ले, धूप लगने पर गर्मी व नमी के कारण 5-6 दिनो मै इन अखरोट के दानों मै जमाव होने लगता है ।

बड़े रूट ट्रेनर, छेद किये बड़ी पौलीथीन की थैलियों या खाद, सीमेंट के खाली कट्टों मे गोबर की खाद मिली मिट्टी भर कर इनमें अंकुरित बीज की बुआई कर पहले पौध तैयार कर अगले बर्ष भी पौधों का रोपण किया जा सकता है।
खेतों मै गड्ढे अगस्त के अन्तिम सप्ताह या सितम्बर के प्रथम सप्ताह मै बरसात के बाद, 10×8 याने लाइन से लाइन 10 मीटर तथा पौध से पौध की दुरी 8 मीटर पर करें, गड्ढौ को सडी गोबर की खाद मिलाकर भर लें।
तैयार गढौ मै अंकुरित बीज लगाने के बाद सिंचाई अवश्य करें तथा थाबलो को सुखी पत्तियों के मल्च से ढक लें जिससे नमी बनी रहे। माह नवम्बर तक अंकुरित पौधे 1 फिट तक के हो जाते हैं ।
इस विधि से लगाये गये अखरोट के पौधौ मै 7-8 वर्षो के बाद फल आने शुरु हो जाते हैं तथा फल almost true to the type यानी मातृवृक्ष की तरह ही होते हैं ।
श्री दीपक ढौंडियाल जी द्वारा इस विधि से विकसित अखरोट के विगत बर्ष बोये 9 – 10 माह के पौधों की फोटो साझा कर रहा हूं। श्री ढौंडियाल जी का इस बर्ष 500 अखरोट के पौधे इस विधि से लगाने का विचार है। जानकारी हेतु ढौंडियाल जी से 9897305094 पर संपर्क कर सकते हैं।
यदि आपके पास अखरोट की अच्छी साइन (कलमें) उपलब्ध हों जिन्हें आप अपने आसपास के अच्छे अखरोट के पेड़ों से प्राप्त कर सकते हैं तो आप इन बीजू पौधों पर कलमें भी बांध सकते हैं।
कलम बांधने का प्रशिक्षण ,राजकीय प्रजनन उद्यान/ आलू फार्म काशीपुर में ले सकते हैं।
चौबटिया रानीखेत में माली प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे प्रशिक्षणार्थियों को काशीपुर उद्यान में फल पौध प्रसारण में प्रशिक्षण दिया जाता है।फल पौध प्रसारण का प्रशिक्षण उप निदेशक उद्यान डा० ब्रिजेश गुप्ता स्वयं देते हैं।
यदि कोई उद्यानपति/ कृषक फल पौध प्रसारण (फल पौधों के कलमी पौधे बनाना)में प्रशिक्षण लेना चाहता है तो राजकीय उद्यान काशीपुर केन्द्र में आकर निशुल्क प्रशिक्षण ले सकता है।
डा० गुप्ता के नेतृत्व में मिशन अखरोट योजना के अन्तर्गत , राजकीय उद्यान चौबटिया (अल्मोड़ा), राजकीय उद्यान मगरा (टिहरी), राजकीय उद्यान कर्मी (बागेश्वर), राजकीय उद्यान भीमताल (नैनीताल) , औद्यानिक विश्व विद्यालय भरसार (पौड़ी), राजकीय उद्यान काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) में हजारों अखरोट बीजू पौधों पर कागजी अखरोट की कलम लगा कर अखरोट के कलमी पौधे तैयार किए जिनमें अधिकतर कलमें डा० गुप्ता द्वारा स्वयंम बांधी गई जिन्हें विभाग द्वारा योजनाओं में स्थानीय उद्यान पतियों में बांटा गया।
(इस विषय में आपके कोई भी प्रश्न हों तो कृपया कमेंट में लिखें लेखक डॉ राजेंद्र प्रसाद कुकसाल जी आपके प्रश्नों के उत्तर देंगे)