प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन चुनाव पूर्व रैलियों से हिमाचल में चुनावी माहौल गर्मा गया है। भारतीय जनता पार्टी के लिए जहाँ यह चुनाव
प्रमुख रूप से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जे.पी. नड्डा की प्रतिष्ठा का सवाल है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस 50 वर्षों में पहली बार स्वर्गीय श्री वीरभद्र सिंह के बिना हिमाचल के चुनावी मैदान में उतर रही है। एक तरफ जहां हिमाचल में चुनाव तिथियों की घोषणा हो चुकी हैं वहीं दूसरी तरफ दोनों पार्टियों में गुटबाजी भी चरम पर है। भाजपा में जहां एक गुट मुख्यमंत्री एवं पार्टी के अध्यक्ष नड्डा का माना जाता है है तो दुसरी तरफ ऐसा
भी नज़र आ रहा है कि उनके खिलाफ़ सभी विरोधी गुटों ने हाथ मिला लिया है। केंद्रीय मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर, पूर्व मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धुमल, एवं श्री शांता राम जहां इस कोशिश में हैं कि पार्टी
विधान सभा चुनाव तो जीत जाए लेकिन सीटों की संख्या बहुमत के आस पास या उससे कुछ कम रहे ताकि सर्वसम्मति की स्थिति में अपने गुट के किसी नेता का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे किया जा सके। ऐसी स्थिति में इस गुट की पहली पसंद श्री अनुराग सिंह ठाकुर रहेगी लेकिन
हाल के दिनों में में श्री अनुराग सिंह ठाकुर का कद राष्ट्रीय राजनीति में अचानक बढ़ गया है और भाजपा का शीर्ष नेत्रत्व उनमें पार्टी का भविष्य देख रहा है। अगली पीढ़ी के जिन शीर्ष भाजपा नेताओं से उनका मुकाबला है उन में प्रमुख हैं योगी आदित्यनाथ, धर्मेंद्र प्रधान, हेमंत बिस्वा शर्मा एवं स्मृति ईरानी।
धुमल गुट की अगली पसंद सभी हिमाचल वासियों को चौंका सकती है। दबी आवाजों में नई दिल्ली एवं हिमाचल के भाजपा नेता मानते हैं कि सर्वसम्मति की स्थिति में राज्यसभा सांसद सुश्री इंदु गोस्वामी सभी को चौंका सकती है। प्रधानमंत्री के “बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ” के नारे को हिमाचल प्रदेश में सुश्री इंदु गोस्वामी चरितार्थ कर सकती हैं। सुश्री इंदु गोस्वामी केंद्रीय नेतृत्व एवं मोदी के निकटतम सहयोगियों में रही हैं तथा उनकी साफ एवं संघर्षपूर्ण छवि उनको हिमाचल की प्रथम महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव प्रदान कर सकती हैं। भाजपा के इस कदम से हिमाचल के साथ साथ पूरे भारत की महिलाओं में एक सकारात्मक संदेश जाएगा साथ ही साथ हिमाचल की सभी गुटबाजियों पर विराम लग जाएगा। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री एवं नड्डा गुट की यह कोशिश होगी कि जीतने वाली सीटों की संख्या को 2/3 बहुमत तक पहुंचाया जाए ताकि यह संदेश जाए कि हिमाचल की जनता मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के काम एवं नड्डा जी की राष्ट्रीय संगठनात्मक राजनीति से पूरी तरह संतुष्ट है। अब देखना यह होगा भाजपा के टिकट वितरण में किन बातों को वरीयता दी जाती है एवं किस गुट के व्यक्ति को टिकट वितरण में वरीयता दी जाती है। अभी तक के टिकट वितरण में नड्डा गुट का प्रभाव साफ तौर से देखा जा सकता है । छोटे राज्यों में टिकट वितरण हमेशा से ही एक समस्या रही है क्योंकि कई बार माननीय अपने नजदीकियों को टिकट वितरण में वरीयता देते हैं, जिससे जमीन से जुड़े कई नेता विद्रोह कर मैदान में उतर जाते हैं और यहां तक कि निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत भी जाते हैं। इन सभी बातों से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह अवगत है।
दूसरी तरफ अगर कांग्रेस की बात की जाए तो अभी पार्टी के शीर्ष नेताओं में यह सर्वसम्मति है कि चुनाव से पहले कोई भी विद्रोह पार्टी को चुनावों में नुकसान पहुंचा सकता है। तकरीबन सभी वरिष्ठ नेता जिनमें प्रमुख हैं सुखविंदर सुक्खु, मुकेश अग्निहोत्री, प्रतिभा सिंह, राजिंदर सिंह राणा यह बात मान चुके हैं कि पहले चुनावों में भाजपा का डटकर सामना किया जाएं एवं फिर कांग्रेस आलाकमान पर यह फैसला छोड़ा जाए कि विजय की परिस्थिति में कौन मुख्यमंत्री हो। लेकिन चुनावी टिकट वितरण में सभी नेता अपने चहेतों को टिकट दिलवाना चाहते हैं ताकि अगर कभी राजस्थान जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो तो विधायकों की पसंद का सम्मान रखा जाए। कांग्रेस में अभी तक का टिकट वितरण पूरी तरह से सर्वसमत्ती के आधार पर किया गया है। कांग्रेस के लिए हिमाचल की चुनावी जीत संजीवनी का काम कर सकती है क्योंकि गुजरात में कांग्रेस पार्टी पहले ही हथियार डाल चुकी है। हिमाचल में कांग्रेस की जीत, 2024 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस के पार्टी कार्यकर्ताओं मे आत्मविश्वास भरेगी। कांग्रेस के चुनावी प्रबंधन की बारिकियों को समझने वाले इस बात को भी समझते हैं कि 2024 के आम चुनावों से पहले चुनावी रैलियों के प्रबंधन एवं चिंतन शिवरों के लिए वित्त पोषण एक प्रमुख व्यय है और अगर पार्टी राज्यों में अपनी सरकार में है तो इस दिशा में पार्टी के लिए संसाधन जुटाना आसान रहेगा
दूसरी तरफ हिमाचल एवं गुजरात की चुनावी हार कांग्रेस पार्टी एवं इसके कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ सकती है। इस समय कांग्रेस पार्टी केवल दो ही राज्यों में अपने बूते सरकार में है और इन दोनों स्थानों पर भी दिसम्बर, 2023 में विधान सभा चुनाव होने है। राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में इन दोनों जगह पर भी कांग्रेस की स्थिति कमज़ोर है और कहीं अगर कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ को भी भाजपा की झोली में डाल देती है तो कांग्रेस 2024 के आम चुनाव से पहले एक ऐसे स्वरूप में चुनावी माहौल का सामना करेगी जहां पूरे भारत में किसी भी राज्य में उनकी अपनी सरकार नहीं है। इसलिए कांग्रेस के लिए हिमाचल का चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है। कांग्रेस भी इस बात को समझती है इसलिए ही केंद्रीय पर्यवेक्षक एवं हिमाचल प्रभारी श्री राजीव शुक्ला फूंक फूंक कर टिकट वितरण की दिशा में आगे बढ़ रहे है। टिकट वितरण के साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी का यह उद्देश्य है कि छोटी-छोटी भीतरघात को समय रहते सुलझा लिया जाए एवं जहां एक से अधिक मजबूत टिकट दावेदार हो वहां उनको चुनाव उपरान्त बोर्ड एवं प्राधिकरणों में अध्यक्ष के पदों का आश्वासन दिया जाए। इसी के साथ सभी पक्षों को यह विश्वास दिलाया जाए कि कांग्रेस पार्टी की जीत में ही सभी की जीत है तथा साथ ही साथ यह डर भी दिखाया जाए कि भाजपा की जीत के उपरान्त सत्ता का वनवास 10 वर्षों का हो जाएगा। सभी वरिष्ठ नेताओं को विश्वास में लेकर अभी तक कांग्रेस पार्टी कम से कम हिमाचल में चुनावी रण में नजर आ रही है। कांग्रेस पार्टी की यह अपेक्षा रहेगी की चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाए एवं मोदी की राष्ट्रीय राजनीति केा प्रदेश से दूर रखा जाए। पार्टी की यह पूरी कोशिश रहेगी की चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, काश्तकारों की समस्याएं एवं राज्य कर्मचारी की मांगों को पुरजोर तरीके से चुनावी मुद्दों में तबदील किया जाए। हिमाचल में हमेशा से ही राज्य कर्मचारी महत्वपूर्ण रहे है और कांग्रेस पार्टी की यह पूरी कोशिश है कि पुरानी पेंशन बहाली मांग को जोर शोर से उठाया जाए। भाजपा कांग्रेस की इस मांग की चतुराई को समझती है और कर्मचारियों को यह बताने में जुटी है कि यह मुद्दा एक जटिल मुद्दा है और कहीं न कहीं इसका कार्यान्वयन केंद्र सरकार पर निर्भर है। भाजपा साथ ही साथ एक अलग रणनीति पर भी काम कर रही है जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्री विभिन्न राज्य कर्मचारियों के समुहों को अलग से साधने में जुटे हैं ताकि नुकसान को कम किया जा सके।
भाजपा में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा जिसमें मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कुछ असहज दिख रहे हैं वह है नौकरशाही पर उनकी पकड़। हिमाचल में पिछले 5 वर्षों में यह आम धारणा है कि नौकरशाही पर मुख्यमंत्री की पकड़ धीली है एवं नौकरशाह अपने लचर रवाये के कारण सरकार के कामों में विलम्ब पैदा कर रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री ने कई मौकों पर इसका उल्लेख किया है और अपनी नाराजगी जाहिर की है परन्तु लोगों में यह सन्देश गया है कि मुख्यमंत्री नौकरशाहों पर कुछ ज्यादा ही निर्भर है। इस चुनावी समय में मुख्यमंत्री को भी यह संदेश देना होगा कि प्रदेश की जनता को उनके काम घर बैठे मिल जाए जिनमे प्रमुख है पर्यटन संबंधी सभी तरह के होटलों, रेस्टोरेंटो, ढ़ाबों के लाइसेंसो का पंजीकरण और नवीनीकरण एवं सभी प्रक्रियाओं के लिए नौकरशाहो के दफ्तरों के चक्करों से प्रदेश की जनता को बचाना। प्रदेश की नौकरीशाही से प्रदेश की जनता बहुत नाराज़ है और भाजपा का स्थानीय नेतृत्व इससे पूरी तरह अवगत है। इसके साथ ही साथ मुख्यमंत्री को यह भी आश्वासन दिलवाना होगा कि वह जनता संबंधी सभी सेवाओं के लिए बनाए गए 2011 के लोक सेवा गारंटी अधिनियम को भी मजबूत से लागु करवाएंगे जिससे लोगों को दफ्तरों के चक्करों से निजात मिल सके।
वहीं दूसरी तरफ भाजपा केंद्रीय एवं राज्य के शीर्ष नेताओं की यह कोशिश रहेगी की चुनाव पूरी तरह मोदी एवं नड्डा के आस पास केंद्रित रहे तथा हिमाचल की जनता को यह विश्वास दिलाया जाए कि प्रदेश और देश में भाजपा की सरकार प्रदेश के लिए हितकारी है। इसके साथ ही साथ भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह भी पूर्ण विश्वास है कि मोदी एवं नड्डा की चुनाव पूर्व रैलियों से हिमाचल में चुनावी माहौल पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में हो जाएगा लेकिन संगठन के स्तर पर भाजपा की राज्य इकाई को यह सुनिश्चित करना होगा कि मोदी एवं नड्डा के संदेश को घर घर तक पहुंचाया जाए एवं मोदी के ‘डबल इंजन के नारे’ को प्रदेश में पूरी तरह चरितार्थ किया जा सके।
हिमाचल का यह चुनाव मोदी से अधिक नड्डा की प्रतिष्ठा का प्रश्न है क्योंकि चुनावी जीत एवं चुनावी हार दोनों का नड्डा की राजनीतिक भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। बड़ी जीत की स्थिति में नड्डा खुद को हिमाचल के सबसे बड़े भाजपा नेता के रूप में स्थापित कर लेंगे वहीं हार उनपर सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देगी कि एक राष्ट्रीय अध्यक्ष चार लोकसभा सीटों वाले राज्य पर भी अपना प्रभाव नहीं दिखा पाया। कुल मिलाकर कई मायनों में हिमाचल का यह चुनाव भाजपा एवं कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक होने जा रहा है। भाजपा को जहां ब्रांड ‘मोदी’ पर विश्वास है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस हिमाचल के विधान सभा चुनावों के इतिहास को दोहराना चाहती है। जहां कभी भी किसी सरकार की वापसी नहीं हुई है।