डॉ दयानंद काद्यान : हरि की भूमि हरियाणा ने आदिकाल से ही पराई दासता को नहीं स्वीकारा। औरंगजेब जैसे मुगलों ने यहां पर लाख पापड़ पेले परंतु हरि की धरती पर काबू नहीं पा सके। यही हाल ब्रिटिश सत्ता का रहा जब उनका वश नहीं चला तो इसे टुकड़ों में बांट दिया। ब्रिटिश काल के हरियाणा का भूभागीय क्षेत्र बहुत ही विस्तृत रहा था। दिल्ली के चारों ओर डेढ़- सौ डेढ़- सौ मील की दूरी के दायरे को हरियाणा प्रांत कहा जाता था। उस पूरे भूभाग में जाट, अहीर ,गुर्जर ,राजपूत आदि वीर जातियां निवास करती थी। उस प्रांत के मेरठ व अंबाला मे अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की शुरुआत हुई थी। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण यहां के बहुत से गांवों को बेदखल तथा उजाड़ दिया गया था। आगरा, मेरठ तथा सहारनपुर आदि को उत्तर प्रदेश में मिला दिया गया। भरतपुर तथा अलवर का इलाक़ा राजस्थान में मिला दिया गया। कुछ भूभाग दिल्ली प्रांत का नाम देकर अलग कर दिया गया। नारनौल को पटियाला राज्य ,दादरी को जींद की फुलकिया स्टेट में शामिल दिया गया ताकि ब्रिटिश सत्ता को इस वीर भूभाग से कोई चुनौती नहीं मिल सके। शेष बचते गुडगांव, रोहतक ,करनाल तथा अंबाला आदि को पंजाब राज्य में मिला दिया गया। जीटी रोड के साथ लगते गांव ने अंग्रेज सत्ता को लोहे के चने चबवाऐ थे। सोनीपत जिले के बिलासपुर के उदमी राम की अगुवाई में गांव के नौजवान आते जाते अंग्रेज अधिकारियों से लड़ते थे। बिलासपुर को सीता राम के नाम कर दिया गया। इस गांव के नौजवान दस्ते के उद्यमी राम ,गुलाब सिंह, रामजस ,सहजराम ,रतिया आदि ने शहादत दी। उसी प्रकार बहालगढ़ को भी अंग्रेजों ने बाई जी के नाम कर दिया। सोनीपत जिले के कुंण्डली गांव में ऊंट गाड़ी में बैठे अंग्रेज को बिटौडे में गिरा कर करे फूंक दिया गया। इस सामूहिक कार्य में सुरता राम, जवाहरा , बाजा नंबरदार ,पृथ्वी राम ,मुखराम राधे तथा जयमल आदि को गिरफ्तार करके काले पानी की सजा दी गई। कुंण्डली को तोड़कर ऋषि, प्रकाश आदि के नाम कर दिया गया। खामपुर, अलीपुर, हमीदपुर सराय आदि अनेक ग्राम हुए हैं। जिन्होंने 1857 की क्रांति में देश धर्म निभाया। हांसी के साथ लगता रोहनात गांव भी देश धर्म निभाने में सजा भुगत रहा है। इस गांव को अंग्रेजों ने बर्बाद कर दिया था तथा इसे बेबिशवेदार कर दिया था। इस गांव में आजादी का जश्न भी पिछले साल मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अध्यक्षता में मनाया गया। दक्षिणी हरियाणा के वीरों राव तुलाराम राम, गोपाल देव, समद खान आदि सेनानायको ने अंग्रेज खलनायक जेरार्ड को कड़ी चुनौती दी थी। नसीबपुर युद्ध में तो कई क्रांतिकारी भारत मां की बलिवेदी पर स्वाह हो गए। इसी प्रकार नाहङके युद्ध में अंग्रेजो को चुनौती दी गई। बेरी निवासियों ने 1794 में जार्ज टाम्स के साथ युद्ध किया था। दोनों ओर से हताहतों की संख्या हजारों में पहुंच गई थी। इसके बाद ही उन्होंने जार्जगढ (जहाजगढ) गाँव बसाया था। बराणी (टाम्सपुरा) को मौङी के शिवलाल तथा ठाकुर स्यालु सिंह को जागीर के रूप में दे दिया गया। महात्मा गाँधी के आदर्शों को आत्मसात करके अनुसरण करने वाले दादा गणेशी लाल बलवंत राय तायल, डॉ गोपीचंद भार्गव, रामेश्वर दास , रणबीर हुडडा, प्रोफेसर शेर सिंह, चौधरी देवी लाल, बलदेव तायल आदि सर्वोदय के अभियान में जुट गए। सभी के उत्थान के इस मिशन को हरियाणा की जनता ने हाथों हाथ लिया और सर्वोदय भवन बनाए गए।हाजी खैर मोहम्मद झज्जर ,चौधरी चंद्रभान तहलान (लुहारहे़डीं) हरी सिंह (खातीवास), प्रोफ़ेसर शेर सिंह,बि्गेडियर दिलसुख मान ,राम सिंह जाखड़,महाशय राम प्रसाद आर्य, चौधरी जुगलाल कासनी,कर्नल रणसिंह आदि ने बिगुल बजाया।बेरी के परसराम गंज में स्वराज का शंख बजा इसी कारण इसे स्वराज गंज के नाम से जाना जाता है ।गुरूग्राम से छोटे लाल,रामपत, रामानंद,गजराज सिंह,प्यारेलाल, मांगेलाल ,पं राम शर्मा, शिवदयाल,खेमाराम शर्मा, मुरली धर गोयल, अब्दुल हरिलाल भार्गव आजादी का झंडा मजबूती से उठाए हुए थे। वहीं गोहाना के मास्टर नान्हूराम ने कांग्रेस आन्दोलन से प्रभावित होकर अध्यापक पद से इस्तीफा दे दिया।१९३० में नमक सत्याग्रह में छः महीने का कारावास हुआ। १९५२मे गोहाना हल्के से विधायक चुने गए। बरोदा गांव के जैमलराम गांधी जी के साथ राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े थे। गोहाना के चंदगीराम को साढ़े ७ माह तक लाहौर जेल की हवा खानी पड़ी। लाला नेमीचंद आदि ने गोहाना को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ाशायद कम ही लोग जानते हैं कि 11 सितंबर 1920 को कोलकाता में कांग्रेस के लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुए सम्मेलन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ था इस आंदोलन में आर्य समाज के 61709 कार्यकर्ताओं ने सक्रियता से भाग लिया था हरियाणा में ऐसा असहयोग बाढ़ सी आ गई थी। अक्टूबर 1920 में कांग्रेस की सभा में पानीपत में सरकारके असहयोग करने की शपथ ली ।20 अक्टूबर 1920 को भिवानी में अंबाला डिवीजन की राजनीति कॉन्फ्रेंस हुई जिसकी अध्यक्षता लाला मुरलीधर ने की महात्मा गांधी इसके मुख्य अतिथि थे ।उसमें अली बंधु मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ,आर्य समाज नेता दुनी चंद व स्वामी सत्य देव भी पधारे थे उसमें आर्य समाजी नेता दादा पतराम भिवानी तक पैदल जत्था लेकर गए थे ।6 से 8 नवंबर तक रोहतक में राजनैतिक कॉन्फ्रेंस हुई ,उसमें चौधरी छोटूराम ने असहयोग से असहमति तक जाकर कांग्रेस छोड़ दी थी। अगले दिन रोहतक में भी असहयोग का प्रस्ताव पारित हुआ ।मिताथल के आर्य समाजी आंखें राम ने अंग्रेजों के भर्ती बैज तथा सनद सरकार को लौटा दिए।हरियाणा में बड़ी संख्या में छात्र आंदोलन में कूद पड़े ।यहां पर कई राष्ट्रीय स्कूलों की नींव रखी गई ।डॉक्टर रामजीलाल हरदेव सहाय ,सोनीपत से प्रभु दयाल,भीम सिंह, रोहतक से जो गुलाल ,लेख राम ,अवतार सिंह, रणबीर सिंह ,पलवल से स्वामी ब्रह्मानंद, स्वामी स्रपानंद ,लाहौर से स्वामी ईशा नंद एवं भिवानी से स्वामी परमानंद ने राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया ।स्नेहलता, लक्ष्मीबाई आर्या, सुभाषिनी तथा शन्नो देवी ने राष्ट्रीय आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
सुनारिया गांव के वीर अमर सिंह ने रोहतक के तत्कालीन डीसी मोर को कसोले से काटकर अंग्रेज सत्ता को चुनौती दी थी। वही हांसी के हुकुमचंद को उनके घर के सामने ही फांसी पर लटका दिया था ।राजा नाहर सिंह की कुर्बानी को बड़े गर्व से गाया जाता है ।जिला कैथल के फतेहपुर गांव को अंग्रेजों को कोपभाजन इसलिए होना पड़ा कि ,1857 के संग्राम में श्री गिरिधर लाल की रहनुमाई में खुला विद्रोह हुआ, जिसमें श्री गिरधरलाल को तोप से बांधकर उड़ा दिया गया ।उसी गांव के स्वतंत्रता सेनानी तारा चंद्रगुप्त ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और जेल यातनाएं सही। यही के चौधरी धनसंग ,पंडित गोपाल ,मियां सिंह ,सुंदर सिंह और दीवान सिंह आजाद हिंद फौज के सेनानी रहे ।दरियाव सिंह ,लाला हंसराज ,देवी दयाल ,रघुवीर मुंशी ,राम सिंह शरर ,देवत राम ,प्रभु राम, पन्नालाल अग्रिम पंक्ति के साथ मित्रता सेनानी थे उसी प्रकार हरियाणा के हर गांव में स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ,और गांव के स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी सूची बनती है ।हरियाणा के आजाद हिंद फौज में 2700 से अधिक अधिकारी और जवान थे ,उन वीरों ने वर्मा में उत्तरी भारत के जंगलों में रहकर संघर्ष किया।
जनता में राजनीतिक चेतना पैदा करने के लिए सन 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में एक सम्मेलन हुआ जिसमें प्रजामंडल की स्थापना हुई। जींद, नारनौल ,दुजाना, पटौदी तथा लोहारू आदी में चौधरी हीरा सिंह चिनारिया,हंसराज रहबर, पंडित हरिराम शर्मा, पंडित देवी दयाल शर्मा तथा भगत बूजाराम आदि के प्रयासों ने स्वतंत्रता का संदेश जनता तक पहुंचाया।
हरियाणा के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी पंडित श्रीराम शर्मा ने जहां देश को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक यातनाएं सही, वहीं 1919 में राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया। सन 1923 में उन्होंने रोहतक से हरियाणा तिलक पत्र शुरू किया ।इस पत्र के माध्यम से उन्होंने हरियाणा में स्वतंत्रता आंदोलन का माहौल तैयार किया। वे देशभक्ति समाचार तथा रचनाएं प्रकाशित करते तथा अनेक कवियों और लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित करते। वे सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए। उन्होंने अपने जेल अनुभव जनता से सांझा किए। उनका सारा जीवन देश सेवा और पत्रकारिता को समर्पित रहा। हरियाणा तिलक के अतिरिक्त उन्होंने देशभक्त और जिला वतन आदि पुत्रों का भी संपादन किया। वे लिखने से ब्रिटिश सरकार को चुनौती देते इसके लिए वे कई बार जेल गए। श्रीराम शर्मा ने प्यारा वतन जैसे राष्ट्रीय पत्रों का भी संपादन किया। हिसार के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सेठ जसवंत राय के सुपुत्र सेठ महेश चंद्र ने देश भक्ति भावना से प्रेरित होकर हरियाणा संदेश साप्ताहिक पत्र निकाला। इस पत्र ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। सेठ जसवंत राय ने भी लाला लाजपत राय के संरक्षण में पंजाबी नामक दैनिक पत्र निकाला। इस पत्र में क्रांतिकारी लेख छापने के कारण सन 1906 में 6 महीने की सजा सेठ जी को काटनी पड़ी थी। जेल से रिहा होते ही जनता ने इनका स्वागत किया। सेठ महेश चंद्र देशभक्ति की भावना को बढ़ाने के लिए हरियाणा संदेश को घाटे में होते हुए भी निकालते रहे। झज्जर में व्याख्यान पंडित दीनदयाल शर्मा को का विराट व्यक्तित्व हमारे सामने एक पत्रकार के रूप में आता है। उन्होंने रिफा -ए-आम सोसाइटी बनाकर रिफा-ए-आम अखबार निकाला। इसके बाद उन्होंने साप्ताहिक अखबार हरियाणा शुरू किया। पंडित जी ने 22 अगस्त 1888 को झज्जर में सनातन धर्म सभा की ,जिसने पूरे भारत में राष्ट्रीयता और पत्रकारिता का शाखा नंद किया। उनके छोटे भाई पंडित बिशंबर दास शर्मा ने झज्जर से ही भारत प्रताप अकबर शुरू किया। राष्ट्रीय स्तर पर जिन की लेखनी ने तूफान लाकर ब्रिटिश सत्ता को हिला के रख दिया। जिनके शिव शंभू के चिट्ठी अंग्रेजों की सिर सत्ता को चुनौती देते थे गुड़ियानी के लाल बाबू बालमुकुंद गुप्त। झज्जर के आदि पत्रकार पंडित दीनदयाल शर्मा की प्रेरणा से उन्होंने मथुरा अखबार में लिखना शुरू किया सन 1886 में भी अखबार चूनार के संपादक बने तथा आजीवन पत्रकार रहे ।वे उर्दू में शाद नाम लिखते थे। इनकी गुड़ियानी हवेली में आज भी भारत मित्र अखबार चुनार कोहिनूर हिंदी बंगवासी की प्रतियां उनकी राष्ट्रीय हित लेखनी का बखान कर रही है। झज्जर के स्वतंत्रता आंदोलन से हिंदी आंदोलन में सक्रिय रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रोफेसर शेर सिंह की कलम को आज भी बुद्धिजीवी सलाम करते हैं। वे सर्व हितकारी रोहतक के लंबे समय तक संपादक रहे। स्वामी ओमानंद सरस्वती में भी स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लिखना शुरू किया था। पंडित पंडित माधव प्रसाद मिश्र के भाई राधा कृष्ण ने भी भारत मित्र और वैश्य पर कारक में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लेखनी चलाई। हरियाणा केसरी पंडित नेकी राम शर्मा जो बंगाली मराठी और गुजराती आदि भाषाओं के विद्वान थे ने भी ‘अभयुदय ,और वैकटेश्वर समाचार का संपादन व संचालन किया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए चेतना फैलाई हिसार के हरदेव सहाय ने हिसार के सात रोड से ‘देहात सुधार ‘नाम का पत्र निकालना। जिसे ग्रामीण क्षेत्र से प्रकाशित होने वाला पहले पत्र का गौरव प्राप्त है। स्वतंत्रता सेनानी दुनीचंद अम्बालवी भी एक समाचार पत्र निकालते थे हरियाणा में उस समय सैकड़ों पत्थर और पत्रकारों ने राष्ट्रीय आंदोलन में जनता की सेवा की। इस प्रकार हरियाणा के किसान मजदूर अध्यापक व्यापारी दुकानदार तथा सभी बाशिंदों ने भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए समर्पित होकर काम किया। पहले तो अंग्रेजों की गिरफ्त में ही यह इलाका कम आया था तथा यहां के लोगों ने संगठित होकर अंग्रेज सरकार का विरोध किया। कवि ,भजनीक तथा संगी और लोक गायकों ने भी आजादी के सुर में गायन किया हरियाणा का योगदान राष्ट्रीय आंदोलन मैं सर्वोपरि रहा है आर्य समाज के झंडे के नीचे भी यह अंग्रेजो के खिलाफ लामबंद हो गए थे।
डॉ दयानंद काद्यान
गांव व डाकखाना– माजरा दुबल्धन
जिला– झज्जर
हरियाणा