संघ के संस्थापक – डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
वह दिन था 1 अप्रैल 1889 ।उस दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा थी। सर्वत्र उत्साह से नव वर्ष का स्वागत हो रहा था प्रगात की बेला थी।हर घर के आंगन झाड़बुहारकर तथा जल संमार्जन कर केवल स्वच्छ ही नहीं किए गए थे उन पर महाराष्ट्र की पद्धति के अनुसार सुंदर रंगावलिया रेखित कर वे सुशोभित भी किए गए थे। कई लोग दरवाजों पर आम के पत्तों का तोरण बांध रहे थे बच्चे उनकी सहायता कर रहे थे। कोई नीम की टहनियां ला रहा था, कोई आम के पत्ते ना रहा था ,कोई तोरण और बंदनवार बना रहे थे, कोई फूल ना रहे थे और कोई उनके हार बना रहे हैं ।महाराष्ट्र में वर्ष प्रतिपदा को गुढीपाडवा कहते हैं गुढी का अर्थ है ध्वज उस दिन हर घर आंगन में ध्वज फहराया जाता है और उसका पूजन किया जाता है।अतः बालक वहां सब सामग्री जुटा रहे थे ।उनमें कुछ स्पर्धा का भाव भी था मेरे घर की गुढी सबसे सुंदर और ऊंची रहना चाहिए जब गुढी की प्रस्थापना होती तो बालक तालियां पीटते और आनंद से नाचते। आज सब लोग नए कपड़े पहनेंगे हर घर में मीठे पकवान बनेंगे सब ओर आनंद और उत्साह उमड़ रहा था।नागपुर में पंडित बळीरामपंत हेडगेवार के घर में यह आनंद और अधिक मात्रा में प्रकट हो रहा था।
वह पौराणिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा ही यशदायी दिवस था। वह मंगल पर्व था।महत्वपूर्ण त्यौहार था उसी दिन उनके घर में एक बालक का जन्म हुआ था इस शुभ संयोग कि सब लोग सराहना कर रहे थे।किसी ने कहा – कितने अच्छे मुहूर्त पर इस बालक का जन्म हुआ है आगे चलकर अवश्य ही या कोई बड़ा पराक्रम करेगा। दूसरे ने कहा – वर्ष प्रतिपदा तो विजय दिवस है ।शतकों पूर्व इसी दिन सम्राट शालीवाहन ने आक्रमणकारी शकों को मार भगाया था ।उसी की स्मृति में हम यह ध्वजोत्तोलन करते हैं। कहा जाता है कि उसके पास ना खजाना था ना सजना थी और ना कोई अधिकार था परंतु वह अपने देश की दुर्दशा से व्यथित था और ईश्वरीय शक्ति से प्रेरित था ।उसने मिट्टी के घुड़सवार और सैनिक बनाए फिर उनमें प्राण फूंके और उनके भरोसे परचक्र का निवारण किया। मुझे लगता है यह बालक भी वैसा ही कुछ ना कुछ असाधारण करतब कर दिखाएगा।किसी ने कहा – या हेडगेवार वंश की कीर्ति ध्वजा उचित है रहेगा देशभर में अपने घर आने का नाम चलाएगा। इस प्रकार अनेक शुभकामनाओं के साथ उस बालक का सब ने बहुत प्रेम से स्वागत किया 12 वें दिन नामकरण विधि संपन्न हुआ बालक का नाम ” केशव ” रखा गया।
केशव एक बुद्धिमान बालक उसकी स्मरण शक्ति असाधारण थी रामरक्षा स्तोत्र और समर्थ रामदास स्वामी विरचित मनोबोध के श्लोक उसने अल्प समय मे कंठस्थ कर लिए। जब वह गीता के अध्याय और अनेक संस्कृत स्तोत्र अपने सुस्पष्ट वाणी से सुनाता था, तब बड़े लोग भी चकित हो जाते थे। अपने बड़े भाइयों के साथ वह नित्य प्रति महाभारत , रामायण इत्यादि सुनने के लिए जाता था और ध्यान पूर्वक सुनता था।हर कथा का मर्म वह तत्काल ग्रहण करता था। छत्रपति शिवाजी महाराज की कथाएं सुनने में तथा पढ़ने में उसे विशेष रुचि थी।उन्हें सुनते सुनते तथा पढ़ते पढ़ते वह उन कथाओं में डूब जाता था।एक बार केशव के यहां एक रिश्तेदार बाहर गांव से आये।वे कथा सुनाने की कला में प्रवीण थे।
उन्होंने शिवाजी के बाल्यकाल की एक कथा सुनाई।केशव उनका कथन तन्मय होकर सुन रहा था।कथा जब समाप्त हुई तब अन्य बालक उठकर इधर उधर चले गए।परंतु केशव वहीं बैठा रहा।मन ही मन वह शिवाजी के काल मे पहुंच गया था।कथा के सब प्रसंग उसकी आँखों के सामने घटित हो रहे थे।शिवाजी के सामंत पिता शाहजी , बाल शिवाजी को लेकर बीजापुर के आदिलशाह के दरबार में पहुंचे। शाहजी ने कहा -” मेरे प्रिय कुमार , प्रणाम करो , शहंशाह को प्रणाम करो।”तब बाल शिवाजी ने तनकर कहा -” नही , कभी नही । न ये हमारे देश के है और न धर्म के । इन्हें मैं कभी प्रणाम नही कर सकता।” इसी समय किसी ने केशव को पुकारा परंतु वह उत्तर न दे सका।जब पास आकर , कंधा पकड़कर ,केशव को हिलाया गया , तब कहीं वह इतिहासकाल से वर्तमानकाल में आगया।इस छोटी आयु में ही केशव के मन मे अपने देश के प्रति विचार उठने लगे थे।