दिलीप पांडे : 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1951 में आचार्य कृपलानी ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1956 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1964 में के एम जॉर्ज ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1967 में चौधरी चरण सिंह ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1969 में मोरारजी देसाई ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1969 में बीजू पटनायक ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1981 में जगजीवन राम ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1994 में बंगरप्पा ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1996 में पी चिदंबरम ने, जी हाँ, पी चिदंबरम ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1998 में ममता बनर्जी ने जब कांग्रेस छोड़ी थी तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आई थीं?
1999 में शरद पवार और पी ए संगमा ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
1999 में ही मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
2005 में करुणाकरण ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
2011 में जगनमोहन रेड्डी ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
२०२२ में सुनील जाखड ने जब कांग्रेस छोड़ा था तो क्या वो भाजपा के बहकावे में आये थे?
नहीं।
इन सब महानुभावों ने पार्टी इसलिए छोड़ी क्योंकि कांग्रेस पार्टी में इनकी उन्नति के, इनके ऊर्ध्वगमन के सभी मार्ग बंद हो गए थे, या यूँ कहें कि बंद कर दिए गए थे।
जब तक पार्टी में शिकायत निवारण के लिए एक संरचित तंत्र नहीं बनेगा, लोग पार्टी छोड़ते रहेंगे। जब तक पार्टी नेहरू गाँधी वाड्रा परिवार की गिरफ्त से बाहर नहीं आएगी ऐसा होता रहेगा। समस्या सचिन पायलट या ज्योतिरादित्य सिंधिया में नहीं है। समस्या है कांग्रेस पार्टी के संविधान में, जिसकी वजह से एक महिला पिछले 22 सालों से पार्टी अध्यक्ष के पद पर कब्ज़ा कर के बैठी हुई थी।
समस्या कांग्रेस पार्टी के संविधान में है जो एक व्यक्ति को साल दर साल पार्टी अध्यक्ष बनने की अनुमति देता है जिसकी वजह से पार्टी पर उसका एकाधिकार हो जाता है और नया नेतृत्व उभर कर आ ही नहीं पाता।
जब असम में हेमंत विस्वासर्मा ने देखा कि तरुण गोगोई के बाद उनकी जगह उनके पुत्र गौरव गोगोई पार्टी के नेता बनेंगे तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
ठीक उसी तरह जब राजस्थान में सचिन पायलट ने देखा कि अशोक गहलोत के बाद उनकी जगह उनके पुत्र वैभव गहलोत पार्टी के नेता बनेंगे तो उन्होंने पार्टी छोड़ने की तैयारी कर ली थी।
इसलिए समस्या पुत्र प्रेम है, फिर चाहे वो राहुल गाँधी हो, गौरव गोगोई हो या फिर वैभव गहलोत। इसलिए दोष देना है तो अपनी पार्टी के संविधान को दो, भाजपा को नहीं।
संविधान में यदि यह बदलाव कर दोगे कि एक व्यक्ति एक बार मे तीन साल के टर्म से ज़्यादा अध्यक्ष नहीं रह सकता और अगला अध्यक्ष उसका कोई ब्लड रिलेशन नहीं बन सकता तो समस्या बहुत हद तक सुलझ जाएगी।
तो संविधान बदलो, पार्टी अवश्य बदलेगी।
और नहीं बदलना है तो मत बदलो।
पर अपने घर में लगी आग के लिये बाहरी लोगों को दोष मत दो…