अंबादत्त तिवारी, अल्मोड़ा : सभी मुस्लिम समुदाय के लोगों को बकरीद की हार्दिक शुभकामनाएं, एक बात इतनी और होने पर भी आज तक समझ में नहीं आई कि आखिर क्यों हिंदू जब कोई पशुओं को लेकर कार्यक्रम आयोजन करता हो चाहे वह बैलगाड़ी रेस हो या फिर बैलों की दौड़ तो कुछ संस्थाएं जो पशु पक्षियों की रक्षा के लिए कार्य करने का बोलती हैं वह चिल्ला चिल्ला कर हिंदू उत्सवों का विरोध करती है अगर जब एक विशेष समुदाय की बात आती है तो जो उनकी दौड़ना करा कर उनको बेरहमी से मार रहे होते हैं तब वह संस्थाएं क्यों चुप कर जाती हैं
जब कुछ मुस्लिम समुदाय के साथियों ने कहा कि उनकी है प्रथाएं वर्षों से चली आ रही हैं की निर्मम हत्या करनी है तब कुछ साथियों ने सुझाव भी दिए अगर यह प्रथा चली आ रही है तो क्यों ना इसे मिट्टी की बकरी बनाकर उसे मारकर निभाया जाए, परंतु जिन भी साथियों ने बात उठाई उनकी बातें आज तक एक विशेष समुदाय के लोगों को समझ नहीं आई
कुछ दिन पहले एक न्यूज़ पड़ी थी जिसमें People for the Ethical Treatment of Animals (PETA) ने उत्तर प्रदेश सरकार से अनुरोध किया था कि ऑनलाइन पशुओं का खरीदा और बेचा जाना बैन किया जाए अच्छा होता अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर दबाव डालती पशुओं की बलि देने पर शत प्रतिशत पाबंदी होनी चाहिए और जो कानून बनाया गया है गोवंश को बचाने के लिए उसका कड़ी से कड़ी सुरक्षा के बीच में पालना करवानी चाहिए
कल बकरीद है और एक आंकड़े के अनुसार कल पूरे भारत मे लगभग 5 करोड़ पशु व जानवर काटे जाएंगे। अब हम यह नहीं बता सकते कौन से जानवर कितने कटेंगे परंतु कुछ सोशल मीडिया पर जो खबरें आ रही हैं उनमें यह बताया जा रहा है तेलगाना के हैदराबाद में बाजारों में खुलेआम गौवंश बकरीद को लेकर बेचे जा रहे है और इसी प्रकार केरल वह बंगाल में भी यही चल रहा है।
अब यह मत कहना कि लॉकडाउन के नियमों की पालना हो रही है कि नहीं सोशल डिस्टेंसिंग निभाई जा रही है कि नहीं यह प्रश्न रखना बिल्कुल गलत होगा अगर आप ऐसी बातें करेंगे तो कुछ सेकुलर आप से बात करना छोड़ देंगे क्योंकि वह सेकुलर वामपंथियों को खुश करने के साथ-साथ राजनीतिक स्वार्थ के कारण एक विशेष धर्म के लोगों को यह जानते हुए भी कि यह सब गलत हो रहा है चुप रहेंगे आंखों में पट्टी बांध लेंगे
अगर कोई पुलिस का भाई या बहन नियमों की पालना भी करानी चाहे तो उसको बेरहमी से पीट भी सकते हैं ऐसे कुछ उदाहरण आपको देखने को मिलते हैं जहां पर जब कभी किसी पुलिसवाले ने नियमों की पालना के लिए कहा तो एक विशेष समुदाय के लोग सब इकट्ठे होकर उन्हें पीटा।
अब यह प्रश्न उठता है कि बाबा साहब अंबेडकर ने जब संविधान बनाया था तो कहीं ऐसा नहीं लिखा था कि देश का कानून अलग-अलग धर्म के लोगों के ऊपर अलग-अलग प्रकार का होगा दुख तो इस बात का है जो लोग बाबा साहब अंबेडकर जी को अपना आदर्श मानते हैं वह भी इस समुदाय के कानून को ना मानने और संविधान की धज्जियां होने पर चुप रह जाते हैं
आज सभी भारतीयों कहीं ना कहीं जो देश में घटनाक्रम चल रहा है उस से वाकिफ है चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल को वोट देते आए हो लेकिन वह समझ रहे हैं कि किस प्रकार से हमारे देश में एक विशेष धर्म को इसलिए कानून की धज्जियां उड़ाने दी जाती है कि उनसे जो वोट है उसी से सरकारें बनती हैं आप दिल्ली का उदाहरण भी ले सकते हैं जब पूजा गृह में कार्य करने वाले लोगों की बात आई तो एक विशेष धर्म को वेतन देने की बात रखी और वेतन दिया भी गया उसका मात्र एक कारण था उस विशेष समुदाय के लोगों से वोट लेना क्योंकि आप सभी जानते हैं जो भी व्यक्ति धर्म स्थल पर जाएगा वहां पर जो वहां का कर्मचारी होगा जो सरकार से अच्छा वेतन ले रहा है मैं उसको अवश्य ही राजनीतिक पार्टी को वोट देने के लिए कहेगा ऐसे कुछ वीडियो भी उजागर हुए थे जहां पर एक राजनीतिक पार्टी के नेता भी धर्मगुरुओं से यही आग्रह कर रहे थे कि लोगों को वोट देने के लिए कहें परंतु किसी भी अन्य धर्म के भाई या बहन ने यह बात नहीं उठाई क्योंकि उन्हें बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि हम सेकुलर हैं
हमें एक विशेष धर्म के ऊपर कोई बात नहीं अगर कोई व्यक्ति बात भी करें उसे एक सत्ता में बैठी राजनीतिक पार्टी है उसे जोड़ दिया जाता है, नाही अरविंद केजरीवाल जी को मंदिर में कार्य करने वाले पंडित और ना ही गुरुद्वारों में कार्य करने वाले पार्टी ईसाई धर्म गुरु नहीं दिखे क्योंकि वह जानते थे उनका वोट कम है उनसे वोट उन्हें तब भी मिल जाएगा चक्कर में फसे रहेंगे और वो