केंद्र व राज्य सरकार को सर्वेक्षण कराने का निर्देश
वाराणसी। ज्ञानवापी मामले में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की परिसर का पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराने की अपील अदालत ने मंजूर कर ली। वादमित्र की इस प्रार्थना पत्र पर पक्षकारों की बहस सुनने के बाद सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) आशुतोष तिवारी ने आठ अप्रैल को इस मंजूर करते हुए केंद्र और राज्य सरकार से यह सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया है। साथ ही सर्वे में पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के पांच विख्यात पुरातात्त्ववेताओं को भी शामिल करने का आदेश दिया है। इन पांच सदस्यों में दो अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे। अदालत ने कहा है कि पुरातत्त्व विज्ञान के एक विशेषज्ञ एवं अत्यंत अनुभवी व्यक्ति को इस कमेटी का पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी दी जाए। कमेटी विवादित स्थल का विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी।
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अदालत ने कहा है कि पुरातात्त्विक सर्वे का मुख्य उद्देश्य यह है कि विवादित स्थल पर धार्मिक ढांचा किसी अन्य धार्मिक निर्माण पर अध्यारोपण, परिवर्तन,संवर्धन अथवा अतिछाजन है ? यदि ऐसा है तो उसकी निश्चित अवधि,आकार,वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट विवादित स्थल पर वर्तमान में किस प्रकार के सामग्री का प्रयोग किया गया। कमेटी यह भी खोज करेगी कि विवादित स्थल पर क्या कोई मंदिर हिंदू समुदाय का कभी रहा जिसपर आलोच्य मस्जिद बनाई गई या आध्यारोपित या उसपर जोड़ी गई। यदि हां तो उसकी निश्चित अवधि,आकार,वास्तुशिल्पीय डिजाइन और बनावट के विवरण के साथ किस हिंदू देवता अथवा देवतागण को समर्पित था। उक्त कमेटी विवादित स्थल के धार्मिक निर्माण के प्रत्येक भाग में प्रवेश कर सकेगी तथा जांच जीपीआर (ग्रांउड पेनीट्रेटिंग राडार) अथवा जीवो रेडियोलाजी सिस्टम अथवा दोनों का प्रयोग कर सर्वेक्षण करेगी। समानांतर खुदाई तभी होगी जब कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि ऐसी खुदाई से निश्चित निर्णय बाबत अवशेष जमीन के नीचे मिलने की संभावना है। सर्वे के दौरान प्राचीन कलाकृति जो वादी अथवा प्रतिवादी को संबल प्रदान कर रही है,को सुरक्षित रखा जाए। यदि किसी गहरी खुदाई से वर्तमान ढांचा गंभीर रुप से प्रभावित होता है अथवा कमेटी ऐसा निर्णय लेती है तो फोटोग्राफी,वीडियोग्राफी और बाहरी माप,नक्शा,ड्राइंग से पुरातात्त्विक अवशेष को दर्ज किया जाए और उसे हटाया न जाए। सर्वे के दौरान कमेटी यह सुनिश्चित करेगी कि विवादित स्थल पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के नमाज अदा करने में रुकावट न हो। सर्वे कार्य से नमाज अदा करने की सहुलियत देना संभव प्रतीत नहीं होता हो तो तब कमेटी कोई दूसरा समुचित स्थान नमाज अदा करने के लिए मस्जिद के परिसर में उपलब्ध कराएगी। कमेटी का दोनों समुदायों से समभाव का व्यवहार होगा। सर्वे के पहले कमेटी पक्षकारों अथवा उनके अधिवक्ताओं को नोटिस देगी।पक्षकार स्वयं जरिए अधिवक्ता उपस्थित रह सकेंगे परंतु कोई भी पक्षकार एक से अधिक अधिवक्ता नामित नहीं कर सकेगी। समस्त सर्वे कार्य ढ़ककर किया जाएगा। आम जनता एवं मीडिया का प्रवेश निषेध रहेगा। न तो पर्यवेक्षक और न ही कमेटी का कोई सदस्य सर्वे के बाबत मीडिया से बात करेगा। किसी भी पक्षकार को कमेटी को निर्देश देने का अधिकार नहीं होगा। कमेटी सर्वे कार्य का फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी होगी। सर्वे कार्य पूर्ण होने के बाद कमेटी अपनी संपूर्ण रिपोर्ट बंद लिफाफे में न्यायालय में प्रस्तुत करेगी। अदालत ने आदेश की प्रति केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय, केंद्रीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग के निदेशक,प्रदेश के प्रमुख सचिव,पुलिस महानिदेशक,जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजने का आदेश दिया है। अदालत ने उक्त मुकदमे में अग्रिम सुनवाई के लिए 31 मई की तिथि मुकर्रर कर दी।
पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराने की प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने दलील दी थी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की,इसके निर्धारण के लिए मौके के साक्ष्य की आवश्यकता है। चूंकि कथित विवादित स्थल विश्वनाथ मंदिर का एक अंश है इसलिए एक अंश की धार्मिक स्थिति का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। बल्कि ज्ञानवापी के पूरे परिसर का भौतिक साक्ष्य लिया जाना जरूरी है ताकि 15 अगस्त 1947 को विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति क्या थी इसका निर्धारण किया जा सके। विजय शंकर रस्तोगी ने बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा.ए एस ऑल्टेकर की लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ बनारस’ पुस्तक प्रस्तुत किया। पुस्तक में ह्वेनसांग द्वारा विश्वनाथ मंदिर के लिंग की सौ फीट उंचाई और उस पर निरंतर गिरती गंगा की धारा के संबंध में किए गए उल्लेख किया है। इन ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र करते हुए कहा कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा के दीवारों में अंदरुनी और बाहरी विद्यमान हैं। पुरानी मंदिर के दीवारों और दरवाजों को चूनकर वर्तमान ढांचा का रुप दिया गया है। पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। खुदाई करके उनके चिन्ह देखे जा सकते हैं। मौके के 35 फोटोग्रॉफ्स भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये थे। इस संबंध में केंद्र और राज्य सरकार के पुरातात्त्विक विभाग से उनके साक्ष्य प्राप्त करने की मांग की। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजूमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ताओं ने पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराने की इस अपील पर आपत्ति जताया था।