अधिवक्ता रचना नायडू ने आगे कहा कि,सामान्य मनुष्य से लेकर राजनीतिक नेता और विविध क्षेत्रों के लोगों में से जिस किसी ने नक्सलवादियों का विरोध किया,उन सबको नक्सलवादियों ने चुनचुनकर मार डाला है । नक्सलवादियों द्वारा जिन लोगों के लिए लडने का दावा किया जाता है,उन्हें ही मारा जाता है,यह कैसी क्रांति है?आत्मसमर्पण किए हुए नक्सलवादियों में से कोई भी उनकी विचारधारा से जुडे नहीं होते,ऐसा उनसे संवाद करने पर ध्यान में आता है । नक्सलवादियों ने उनके प्रभावित क्षेत्र में स्थित हिन्दुओं के अनेक मंदिर तोडे हैं;परंतु चर्च अथवा अन्य प्रार्थनास्थलों को उन्होंने हानि पहुंचाई है,ऐसा सुनने में नहीं आया है ।
छत्तीसगढ के अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में रहनेवाले नक्सलवादी जो राज्य की राजधानी तक भी नहीं पहुंच सकते । वे ‘जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ को सार्वजनिक समर्थन करना,नागरिकता सुधार कानून(सी.ए.ए.),तथा बंगलुरू में गौरी लंकेश की हत्या होने के उपरांत सडक पर उतरे हुए दिखाई दिए । छत्तीसगढ राज्य को पौराणिक,सांस्कृतिक इतिहास होते हुए भी ‘नक्सलवादियों का राज्य’ कहकर दुष्प्रचार किया जाता है,यह रुकना चाहिए,ऐसा भी अधिवक्ता नायडू ने अंत में कहा ।