अंबादत्त तिवारी, अल्मोड़ा : मित्रों आप सभी जो 50 साल के पास हैं उन्होंने अपने गांव में या अपने दादा दादी माता पिता को राख का प्रयोग करते हुए अवश्य ही देखा होगा, जी हां चूल्हे की राख, आज हम आपको यही बताने का प्रयास करेंगे कि हमारे पूर्वज कितना विज्ञान जानते थे जिन्होंने सैनिटाइजर का निर्माण चाहे बाजार के लिए ना किया हो परंतु अपने घरों के लिए वह पहले ही इसका निर्माण कर चुके थे ।
घरों में राख का उपयोग हाथ धोने एवं बर्तनों को साफ करने के लिए आप सभी ने देखा होगा अब प्रश्न उठता है कि चूल्हे की राख में ऐसा क्या होता है कि जिस से बर्तन साफ भी हो जाते हैं और किसानों भी मर जाते हैं , आप सभी ने देखा होगा बड़े बुजुर्ग सुबह सुबह चूल्हे की राख को शाम लेते थे और एक बर्तन में रख लेते थे किसी भी डब्बे में बहुत से लोग तो पुराने मिठाई के डिब्बों में उसको भरकर रख लेते थे , क्योंकि हमारे घरों में जब लकड़ी जलती थी या गाय के गोबर के उपले उससे जो राख बनती थी वह एक दवा का काम करती थी।
चूल्हे की राख का प्रयोग हम फसलों के ऊपर भी बहुत सी बीमारियों को जो पौधों को खराब करती है उससे निपटने के लिए भी करते हैं मित्रों राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, जो पौधों में उपलब्ध होते हैं। हम आपको बताना चाहेंगे की राख में सबसे अधिक मात्रा में मिलता है कैल्शियम (Calcium) और पोटेशियम एलमुनियम मैग्नीशियम आयरन फास्फोरस मैग्नीशियम सोडियम एवं नाइट्रोजन। वैज्ञानिक यह भी सिद्ध करते हैं रात में जिंक कॉपर लेड क्रोमियम निकल एडमिन मर्करी तथा विलियम भी पाया जाता है ( Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury and Selenium )।
जब हम चूल्हे की राख की पीएच को देखते हैं तो इसकी पीएच वैल्यू 13 पॉइंट 5 हो जाती है क्योंकि इसमें कैल्शियम और पोटेशियम अधिक मात्रा में होता है इसी कारण जब हम रात को अपने हाथ में रख कर थोड़ा पानी लगा कर उसे अच्छी तरह से साबुन की तरह रगड़ लेते हैं तो वह उसी प्रकार से कार्य करता है जो एक साबुन के रगड़ने से होता है जिसका परिणाम यह होता है कि जीवाणु और विषाणु जड़ से खत्म हो जाते हैं ।
तो मित्रों अब आप समझ गए होंगे कि हमारे पूर्वज कितने बड़े वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह हजारों साल पहले सिद्ध कर दिया था की राख से बड़े से बड़े विषाणु और जीवाणुओं को मारा जा सकता है।