शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : भृगसहिता ज्योतिषशास्त्र में भाव का महत्त्व
पञ्चम-भाव : व्यक्ति के पास शरीर धन परिश्रम इच्छाशक्ति सब कुछ हो परन्तु यदि उसको कार्यविधि का ज्ञान अर्थात विचारशक्ति प्राप्त न हो तो जीवन आगे नही चल सकता ||
अतः पञ्चम भाव विचारशक्ति को चतुर्थ भाव मन के अनन्तर स्थान दिया जाना विकास क्रम के अनुरूप ही है ||
पञ्चम भाव का विशेष सम्बन्ध सन्तान से है ||
शरीर के अंगो में पेट एवं पीठ का विचार इसी भाव से किया जाता है ||
कालपुरुष कुण्डली के अनुसार पञ्चम भाव में सिंह राशि पड़ती है जिसका स्वामी ग्रह सूर्य है ||
अतः इस भाव का प्रकाश से भी गहरा सम्बन्ध है ||
मकान के अंदर रौशनी एवं हवा कितनी आती है ||
यह सूर्य की स्थिति को देख कर पता चलता है ||
दिशाओं में यह पूर्व दिशा का द्योतक है ||
पञ्चम भाव का स्वामी सूर्य है ||
इस भाव में अशुभ ग्रह हो तो उपर्युक्त सभी परेशानियो का कारण बनता है ||
इस भाव का कारक बृहस्पति है ||
अतः विद्या ज्ञान मानसिक प्रभाव भी देखा जाता है ||
मानसिक चेतनता मन की ईमानदारी लोगों के दिल में जातक के लिए सम्मान भी इसी भाव से देखा जाता है ||
इसके अतिरिक्त जातक के इष्टदेव मंत्रीपद पत्रप्राप्ति प्रेम मनोविनोद प्रतियोगीपरीक्षाएं लाटरी सट्टा से धन राजयोग बालारिष्ट भी इसी पञ्चम भाव से देखे जाते है ||
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में प्रथम भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में द्वितीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में तृतीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में चतुर्थ भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में पञ्चम-भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में षष्ठ भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में सप्तम भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में अष्टम भाव)