इस ब्रह्माण्ड मे जो कुछ हम लोगों को अपनी दृष्टि से दिखाई देता है,यह सब वस्तुएँ काल के अधीन है। ज्योतिष शास्त्र में जो सिद्धांत ज्योतिष शास्त्र है ,उसमे आर्यभट्ट ,भास्कराचार्य एवं अन्य मनीषियों ने पृथ्वी ही नही बल्कि पुरें ब्रह्माण्ड मे जो उल्कापिंड,ग्रह ,नक्षत्र ,तारा,आदि अव्यव एवं पृथ्वी पर नगर,ग्राम ,पर्वत ,वृक्ष ,पशु ,पक्षी साथ ही ईश्वर की सर्वोत्तम कृति मनुष्य भी काल चक्र से ग्रसित है।(पद्मपुराण में कहा है)
न मन्त्रा न तपो दानं च मित्राणि न बान्धवा:।
शक्नुवन्ति परित्रातुं नर कालेन पीडितम ॥कालरूपि मृत्यु आ जाने पर न मन्त्र न तप न दान न मित्र न बन्धु -बान्धव रक्षा मे सहायक हो सकते है । जब काल आ जाता है तो फिर उसका त्राण करना देवताओं के भी बाहर हो जाता है पर मनुष्य पर काल का विशेष प्रभाव इस लिए भी पडता है ,क्योंकि मानव ही एक ज्ञानवान होता है । ज्ञान से काल का पता लगाया जा सकता है ।वह मात्र ज्योतिष शास्त्र से संभव है ।ज्योतिष काल ज्ञान विषय को प्रतिपादित करता है ।