गोवेर्धन कथूरिया : संविधान का अनुच्देद 371 (क) हमारी दृष्टि से सामान्यतया ओझल रहता है। हम धारा 370 पर बहुत लिखते-पढ़ते और बोलते हुए लोगों को देखते हैं किन्तु संविधान के अनुच्छेद 371 (क) पर ऐसा नहीं देखते। सम्भवत: यही कारण है कि इस ओर राष्ट्र के जागरूक कहे जाने वाले नागरिकों का भी ध्यान नहीं जाता।
संविधान का अनुच्छेद 371 (क) ईसाई बहुल प्रान्तों यथा, नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय में कई स्थानों पर ईसाई नागाओं को भूमि क्रय करने का जो अधिकार प्रदान करता है वह हिन्दुओं को प्राप्त नहीं है। मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र में ऐसी ही सुविधा ईसाई नागाओं को दी गई है। जिससे यह अनुच्छेद पूर्वोत्तर भारत ईसाई धर्म प्रचारकों का गढ़ बन गया है।
देश का जनसाधारण यहाँ जाकर अपनी आजीविका नहीं चला सकता। यहाँ ईसाई आतंकवाद बढ़ रहा है। जिसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ईसाई देशों का समर्थन मिल रहा है। ईसाई देशों की दृष्टि पूर्वोत्तर भारत में निरन्तर बढ़ रही पृथकतावादी मनोवृत्ति पर टिकी है। मदर टेरेसा जैसी तथाकथित ‘भारत-रत्न’ ने इस मनोवृत्ति को और भी उत्साह प्रदान कर दिया है। आप यदि-वहाँ इस प्रवृत्ति का विरोध करेंगे तो आपको धर्म सापेक्ष माना जाएगा और ‘विदेशी-भारतीय’ मानकर भगा दिया जाएगा या ‘ऊपर’ पहुँचा दिया जाएगा। इसके उपरान्त भी हमारी केन्द्र सरकार मूकदर्शक बनी तमाशा देख रही है। अनुच्छेद 371 (क) का दुरूपयोग बन्द कराने अथवा इस आपत्तिजनक अनुच्छेद को संविधान से निकलवाने का साहस नहीं किया जा रहा है। यहाँ तक कि आज भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली केन्द्र सरकार भी इस ओर कोई सार्थक कदम उठाने का साहस नही कर पा रही है।
क्या बीजेपी सरकार इसे हटाने का साहस करेगी ?
वैसे राष्ट्रपति के पास यह अधिकार है कि वह अनुच्छेद 370,371 को हटा सकते है ।