‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’इस श्लोक का अर्थ है ‘हे भगवान ! आप मुझे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले कर चलें’ ऐसी प्रार्थना है । प्रत्येक प्राणिमात्र का प्रयास प्रकाश की ओर जाने का होता है; जिस स्थिति में हम हैं, उसके आगे के स्थिति में जाने के लिए व प्रगति करने के लिए होता है । अर्थात नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर जाना होता है । जीवन में सकारात्मकता सिखाना और प्रकाश की ओर मार्गक्रमण करना सिखाने वाला त्यौहार अर्थात दीपावली ।
सत्य की विजय का प्रतीक ! –प्रभु श्री रामचंद्र जी 14 वर्षों का वनवास पूर्ण कर के दीपावली के दिन अयोध्या में लौटे थे । प्रभु श्री रामचंद्र जी के आगमन से प्रजा को बहुत आनंद हुआ। उनके स्वागत के लिए संपूर्ण अयोध्या नगरी में घर-घर में घी के दिये जलाकर आनंद व्यक्त किया गया । प्रभु श्रीराम के सत्यस्वरुप होने से कारण उनकी विजय अर्थात सत्य की ही विजय थी । इस विजय के उत्सव के रूप में हम दीपावली को दीपोत्सव व प्रकाशोत्सव के रूप में मनाते हैं।
सकारात्मकता बढ़ाने वाला त्यौहार ! –दीपावली आने से पहले घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों, अपने आसपास का परिसर तथा शहर की स्वच्छता शुरू होती है। जाले हटा कर, रंगाई-पुताई की जाती है। टूटे-फूटे साहित्य की मरम्मत की जाती है । इससे साफ सफाई और स्वच्छता के साथ वातावरण की सकारात्मकता बढ़ती है । इसका प्रत्येक जीव के मन बुद्धि पर सकारात्मक परिणाम होता है । मन की नकारात्मकता दूर हो कर हमें आनंद प्राप्त होता है ।
गुण वृद्धि के लिए लक्ष्मी पूजन !– लक्ष्मी पूजन अश्विन अमावस्या को सायं काल में करते हैं । रात्रि बारह बजे अलक्ष्मी निःसारण किया जाता है । शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी पूजन के कारण पूजा करने वाले को लक्ष्मी तत्व का लाभ होता है । वह लाभ टिकाए रखने के लिए धर्माचरण करना आवश्यक है । अधर्म का साथ देने अथवा कर्तापन निर्माण होने पर हम स्थिर नहीं रह सकते। लक्ष्मी चंचल है ! ऐसे कहा जाता है, परंतु सच में लक्ष्मी चंचल है क्या ? इसका उत्तर “नहीं” ऐसे हैं । वह निरंतर भगवान के अनुसंधान स्थिर रहती है । जहां अनुसंधान रहता है, वहां धर्माचरण होता है, वहां लक्ष्मी विराजमान होती है । ऐश्वर्य, सौंदर्य, शांति, सत्य, समृद्धि और संपत्ति इनकी अधिष्ठात्री देवी श्री लक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हो कर समुद्र मंथन से आई हैं । ऐसी लक्ष्मी माता का वर्ष में केवल एक बार पूजन करने से वो प्रसन्न होगी क्या ? उसे प्रसन्न रखना हो तो कमल जिस प्रकार से कीचड़ से बाहर आता है उसी प्रकार से अपने स्वभाव दोषों के कीचड़ को दूर कर के धर्माचरण करना चाहिए। इस प्रकार से धर्माचरण करते हुए ईश्वर के अनुसंधान में रममाण होने से श्री लक्ष्मी हृदय कमल पर निश्चित ही विराजमान होगी तथा धन-धान्य के रूप में हमारे पास स्थिर रहेगी । स्वयं में दुर्गुण दूर करने के लिए प्रयत्न करना महत्वपूर्ण है, यही खरे अर्थ से अलक्ष्मी निःसारण है।
सांप्रत काल में दिवाली का बदलता स्वरूप ! –दीपावली, समृद्धि की ओर, आनंद की ओर, प्रकाश की ओर लेकर जाने वाला त्यौहार है । परंतु, आज की परिस्थिती को देखते हुए दीपावली अर्थात देवता, महापुरुषों के चित्रों वाले पटाखे फोडना, सिनेमा के गानों से युक्त दीपावली की सुबह, आंखों को कष्ट देने वाली और घातक चीनी दीपमाला औरआकाश दिये की जगमगाहट ,इन सभी के कारण दीपावली का संपूर्ण स्वरूप बदल गया है । इस से नकारात्मकता बढ़ रही है । जिस लक्ष्मी की घर में पूजा करते हैं उसी के फोटो वाले पटाखे फोड कर हम चिथड़े उड़ा देते हैं । यह योग्य है क्या ? ऐसे करने से वह प्रसन्न होगी क्या ? घर में की गई पूजा का कुछ भी परिणाम न हो कर उस से देवताओं का अनादर ही होने वाला है । इस अनादर से होने वाला पाप हमारे कृती सेघटितहो रहा हो तो वह पूजा फलित होगी क्या ? इस प्रकार के अयोग्य कृति के कारणयुवा पीढ़ी के सामने हम क्या आदर्श रखेंगे ? इसका विचार करना चाहिए । स्वदेशी और पारंपरिक सहित्य की अपेक्षा जगमगाहट और पश्चिम की ओर झुकाव बढ़ रहा है । यह परिस्थिती बदलनी चाहिए । तभी हमें दिवाली का खरा आनंद मिल सकता है।
जीवन की ओर चलना सिखाती है। इससे ही हमारा जीवन अमृत के समान आनंदमयी होता है। आइए हम अपने कुलदेवता का स्मरण करके उनसे प्रार्थना करें! ‘हे भगवान !आप ही हम से इस वर्ष आदर्श दीपावली मनवा लीजिए । हमारी व्यक्तिगत उन्नति के साथ ही राष्ट्र – धर्म की रक्षा व उसकी भी उन्नति के लिए हम से धर्माचरण करवा कर लीजिए यही प्रार्थना है ।’सौजन्य – सनातन संस्था