रोहित गौतम , चंडीगढ़ : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर क्यों न कृष्ण चरित्र को निकटता से देखें …. विश्व में किंचित ही कोई ऐसा व्यक्तित्व हुआ हो जो इतने विरोधाभासों के बाद भी इतना ख्यात व प्रसिद्ध हो । प्रख्यात कथाकार भाईश्री रमेशभाई ओझा कहते हैं कि कृष्ण समझने का चरित्र नहीं है, अपितु प्रेम करने का चरित्र है । Don’t try to understand him, just love him. किन्तु मनुष्य हठ कहता है क्यों न समझें इस टेढ़े को ….. अरे भाई जन्म से लेकर देहान्त तक सब टेढ़ा है और कुछ समझ न आने पर भी सबसे प्राचीन हिन्दू सभ्यता तथा सम्प्रदाय-समूह सनातन धर्म में इस व्यक्ति को पूर्णावतार की संज्ञा मिली है । सोचिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी पूर्णावतार नहीं माने गए हैं जबकि सोलह हज़ार एक सौ रानियों के वरन करने वाले इस “लम्पट चूड़ामणि” को हमने पूर्ण माना है ।
कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ , तभी से यह टेढ़ापन प्रारम्भ हुआ । जन्म से पहले माता पिता को कारावास तथा सहोदरों की हत्या भी कृष्ण के अस्तित्व के कारण हुई, फिर जन्म लेते ही जननी से बिछड़ कर गोकुल में नन्द और देवकी के घर लाए गए । अब लौकिक रूप से तो ऐसी सन्तान दुर्भाग्यशाली मानी जाएगी न । चलो नाम ही सीधा होता , पर गर्गाचार्य जी ने नाम रखा तो उसमें भी ऋ ष ण जैसे अक्षर जोड़ दिये जिनका सही उच्चारण जानने वाले भी बहुत थोड़े हैं । आठवें दिन पूतना दूध पिलाने के बहाने मारने आ जाती है तो कृष्ण उसके स्तनों से दूध के साथ प्राण भी हर लेते हैं । अब सामान्य बालक जैसे खेल खेलते हैं वैसे ये नहीं खेलते, इनको माखन चुराना प्रिय है; स्वयं खाते हैं , मित्रों को खिलाते हैं और तो और बंदरों को खिलाते हैं और हाँ एक चोर मंडली “गैंग” चलाते हैं । गोपियों के वस्त्रों को हरते हैं और कहते हैं ऐसे ही बाहर आओ और हाँ हाथ ऊपर कर । जो ऊपर लम्पट चूड़ामणि शब्द लिखा यह ऐसे ही कारणों से गोपियों ने कृष्ण को दिया । इतने नटखट व शरारती हैं कि माँ ने ऊखल से बांध दिया और दामोदर नाम धारण किया । किशोरवय से पहले ही जिन्होने इतना प्रेम दिया उन ग्वालों और गोकुल को छोड़ना पड़ा । युद्ध जीतते कम हैं और रण से भागते अधिक हैं जिस कारण रणछोड़ नाम पड़ा । स्वयं तो भगा कर रुक्मिणी जी से विवाह किया पर अपने सखा का भी विवाह अपनी बहन से भगा कर करवाया । और अपने तो एक, दो नहीं सोलह सहस्र एक सौ विवाह हैं । व्यंग्य में लोग कहते हैं यहाँ एक नहीं संभलती भैया । महाभारत में शपथ लेते हैं शस्त्र नहीं उठाऊंगा , फिर शस्त्र उठा लेते हैं । कर्ण हो , भीष्म हो, द्रोणाचार्य हो या दुर्योधन हो सबकी मृत्यु में कृष्ण की टेढ़ी चालें ही मूल में हैं जो नियमों के विपरीत भी हैं । जीवन भर अग्रपूज्य और सर्वयश प्राप्त करने के उपरांत अंत में अपना ही वंश और अपनी ही नगरी द्वारिका अपने ही सामने नाश होते भी देखते हैं । ये तो जीवन की केवल एक छोटी सी झांकी है पर आज जब मूर्तियाँ भी श्रीकृष्ण की बनती हैं तो ध्यान से देखिये सिर एक ओर टेढ़ा , एक बाहु कमर में एक में वंशी और दोनों टांगें टेढ़ी कर खड़े हैं ।
अब टेढ़े तो हैं किन्तु “मेरे” भी हैं । इन गोपियों से पूछे कोई कि कृष्ण तो माखन चुराता है , तुम्हारी मटकी फोड़ता है तो वो तो दुष्ट है । यही गोपियाँ कहेंगी वो मटकी न फोड़े तो अच्छा नहीं लगता । हमें न छेड़े तो ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ही मंद हो गई है । कृष्णलीला के गूढ अर्थ अपने स्थान पर हैं जैसे जब कृष्ण गोपियों के वस्त्र हरते हैं तो उनपर कामुक होने के आरोप लगते हैं किन्तु इस लीला के समय कृष्ण किशोर नहीं बाल हैं । दस वर्ष से भी कम आयु है उनकी । कृष्ण कहते हैं मेरे पास बिना किसी लाग लपेट के आओ और बाहु उठाकर समर्पण करो । आप किसी भी सम्बन्ध के आदर्श की कल्पना कृष्ण में कर सकते हैं । वे आदर्श सखा हैं जो अपनी मुस्कान से सब दुःख हर लेते हैं और कहते हैं , क्यों चिंता करते हो “ मैं हूँ न “ । वे देवकी और यशोदा दोनों के आदर्श पुत्र हैं, दाऊ के आदर्श भाई हैं, जिनके आगे कभी मस्तक नहीं उठाया । आदर्श प्रेमी हैं और हाँ आदर्श शत्रु भी । विश्व का पहला प्रेम पत्र तो रुक्मिणी जी ने कृष्ण के लिए ही लिखा है जो पढ़ने योग्य है । कृष्ण अपने भक्त भीष्म की प्रतिज्ञा को बनाए रखने के लिए ही शस्त्र उठाते हैं और उस शस्त्र का प्रयोग नहीं करते । वे कहते हैं मेरा वचन का मोल मेरे भक्त के वचन के आगे कुछ नहीं । कृष्ण विधि निषेध को भक्त और अपने प्रेमी के आगे नहीं ठहरने देते और साम दाम दंड भेद सभी नीतियों से महाभारत में बिना लड़े अपने भक्त के लिए प्रयोग करते हैं । गोपियाँ यदि लम्पट कहती हैं तो एक नाम और “ धीरोद्दात्त “ भी देती हैं । यानि जो धैर्य में असीम है और कभी कुछ भी हो जाए क्रोधित नहीं होता । राधा का वर्णन भागवत में नहीं है किन्तु अन्य ग्रन्थों में अपने से आयु में ग्यारह वर्ष बड़ी राधाजी को मनाने के लिए कृष्ण कभी स्त्रीवेश धारण करते हैं तो कभी उनके पैर दबाते हैं । राधा रूठने में असीम हैं तो कृष्ण मनाने में असीम है । विश्व के इतिहास में कृष्ण एकमात्र ऐसा व्यक्तित्व हुआ है जिसने कहा है , मैं ईश्वर हूँ और मेरे शरण में आओ , मैं तुम्हें सब पापों से मुक्ति दिलाऊँगा ।
मेरा मानना है कृष्ण को ईश्वर मानना भी ठीक है किन्तु श्यामसुंदर को भगवत्ता से अधिक मित्रता शोभा देती है । कृष्ण को सखा बनाएँ और सदा प्रसन्न रहें । चिंता न करो , यह मित्र अपनी टोली के साथ तुरंत आवश्यकता के समय उपस्थित होगा और कहेगा , मैं हूँ न ।
अति सुंदर रोहित गौतम!कितना सुंदर व्याख्यान दिया आपने!
रोहित जी बहुत बढ़िया लेख है।