विपुल , प्रयागराज : सावधान सनातनी भाइयों आप सभी जानते हो कि हिंदू विरोधी शक्तियां कई वर्षों से हमारी सभ्यता और संस्कृति को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं परंतु हिंदू संस्कृति और सभ्यतामें इतनी शक्ति है कि वह इन दुराचारी व्यक्तियों के प्रयासों के बावजूद भी अपनी प्रसिद्धि विश्व भर में बनाए हुए हैं।
आजकल कुछ हिंदू अज्ञानी इन हिंदू विरोधी शक्तियों के चलाए जा रहे भ्रम में फसते जा रहे हैं जेसा कि वह शिवलिंग का मतलब शिश्न , मूत्रांग (मूत्र विसर्जन का अंग , पेशाब करने जिस्म का हिस्सा , (penis ) को समझ बेटे हैं।
वास्तव में संस्कृत व हिन्दी भाषा में Penis को शिश्न, shishn ,मूत्रांग .मूत्र विसर्जन का अंग आम बोल चाल भाष में पेशाब करने का शरीर का अंग , कहते है । अंग्रेजी में penis कहते है….। न कि लिंग /प्रतीक ,चिन्ह ,symbol ,निशानी कहकर सम्बोधित करते है…।
लिंग का अर्थ है….लिंग = Gender = Symbol प्रतीक = चिन्ह
जैसे अंग्रेजी में हिन्दी में Gender. लिंग , प्रतीक , चिन्ह
Male पुल्लिंग, पुरुष का प्रतीक/चिन्ह व Female. स्त्रीलिंग…..स्त्री का प्रतीक /चिन्ह
क्या शिव शिश्न {Shiv-sishnh} की पूजा हो रही है ? दिमाग लगाओ…मित्रों शिव दो शब्दो से मिकर बना है….शव +शक्ति श , क ,त व्यंजन है.ई स्वर है…. ई का अर्थ है स्वयं…इसीलिये ईश्वर कहते है…
स्वयं का स्वर जो हमारी आत्मा है…।
शव हमारा शरीर। Body…शक्ति हमारी आत्मा (रूह ) इसीलिये ध्यान में , पूजा में अपने शरीर की आत्मा को साधते है…
इस शव (body) मे शक्ति power, soul, आत्मा को साधते है जो बुद्ध ने और सभी महापुरूषों ने साधा था…। शिवलिंग का अर्थ है ‘शिव का प्रतीक’.. जो मन्दिरों एवं छोटे पूजस्थलों में पूजा जाता है। इसे केवल ‘लिंग’ भी कहते हैं। भारतीय समाज में शिवलिंग को शिव की ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। लिंग को प्रायः ‘योनि’ (शाब्दिक अर्थ= ‘घर’ या ‘मूल’) के ऊपर आधारित दर्शाया जाता है।
‘लिंग’ का अर्थ है ‘चिन्ह’। जैसे ‘स्त्रीलिंग’ का अर्थ है कोई ऐसी वस्तु जो स्त्रीरूप में कल्पित की जा सके। अब वह एक वास्तविक महिला भी हो सकती है या कोई ऐसी वस्तु जो स्त्री रूप में सोची जा सके। उदाहरण के लिए, नदी, लता आदि। इसी तरह पुल्लिंग उसे कहते हैं जो पुरुष के प्रतीक रूप में माना जा सके, जैसे आदमी, पहाड़, वृक्ष आदि। इसी प्रकार जो शिव के प्रतीक रूप में माना जा सके, वही शिवलिंग है (अर्थात कुछ ऐसा जिसके प्रति हम सभी के कल्याण की हमारी शुभभावनाओं को जोड़ सकें।)
वेदों में अनेक जगह परमात्मा को एक ऐसे ‘स्तम्भ’ के रूप में देखा गया है जो समस्त सात्विक गुणों, शुभ वृत्तियों का आधार है। वही मृत्यु और अमरता, साधारण और महानता के बीच की कड़ी है। यही कारण है कि हिंदू मंदिरों और हिन्दू स्थापत्य कला में स्तम्भ या खंभे प्रचुर मात्रा में देखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त, योग *साधना भी अग्नि की लौ पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करने को कहती है , जो स्वयं शिवलिंगाकार है। इसका भी स्पष्ट आधार वेदों में मिलता है। शिवलिंग और कुछ नहीं ऐसा लौकिक स्तंभ ही है जिस पर हम (अग्नि की लौ की तरह) ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और हमारी कल्याणकारी भावनाओं को उससे जोड़ सकते हैं ।* यही कारण है कि शिवलिंग को *’ज्योतिर्लिंग’* भी कहा जाता है। ज्योति वह है जो आपके अंदर के अंधकार को दूर करके प्रकाश फैला दे। आत्मज्ञान का वह पथ जो अलौकिक दिव्य प्रतिभा की ओर ले जाता है। (आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् – प्रकाश से पूर्ण, अज्ञान अंधकार तम से हीन)
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी (axis) ही लिंग है।
पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग(प्रतीक , चिन्ह ), अग्नि स्तंभ/लिंग (प्रतीक , चिन्ह ), उर्जा स्तंभ/लिंग (प्रतिक , चिन्ह), ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग(प्रतीक , चिन्ह )।