धरती रोई अंबर रोया, रोया भाग्य विधाता है
पुनः अली के गढ़ में देखो, रोई भारत माता है
हिन्दूवादी सरकारों का, इस पर भी क्या जाता है
क्योंकि उनको छद्म सेकुलर-वाद बहुत अब भाता है
तुमने जिनको इफ्तारी दी, जिनको बोला भाई है
बदले में उन हैवानों ने, तेरी बेटी खाई है
लेकिन फिर भी संविधान पर, खतरा बिल्कुल नहीं दिखा
वालीवुड के खानदान पर, खतरा बिल्कुल नहीं दिखा
मोमबत्तियों वाला सारा, गैंग नहीं क्यों निकला है
रोजेदारों ने इफ्तारी में, बेटी को निगला है
ना ही कोई न्याय पालिका, आज यहाँ अब चिंतित है
अपने ही घर में क्यों हिन्दू, अधिकारों से वंचित है
हिन्दू बेटी आज मरी तो, हर जुबान पर ताले हैं
क्योंकि कातिल मुसलमान हैं, जाली टोपी वाले हैं
चार बाप की औलादें वो, आग लगाकर चली गयीं
हर हिन्दू के माथे पर इक, दाग लगाकर चली गयीं
जागो वामन जागो बनिया,जागो दलित ठाकुरों जी
और सेकुलर बनकर सोते, जागो हिन्दु बाँकुरों जी
अगड़े पिछड़े ऊँचे नीचे ,सुनो बाद में बन लेना
कितने हो तुम दौलत वाले, सुनो बाद में तन लेना
अभी जरूरत है तो केवल, हिन्दू बनकर जीने की
जिन मुल्लों ने ट्विंकल मारी,उनके खूँ को पीने की
उस रमजान महीने की हर,पाकीजी को देख लिया
भाईचारा हमें सिखाते, मुल्ला काजी देख लिया
आज किसी दूजे की थी कल, तेरी भी हो सकती है
जैसे आज मरी है ट्विंकल, गीता भी खो सकती है
तीन बरस की उस ट्विंकल की, कुर्बानी को खोना मत
संवैधानिक धाराओं की, नाकामी से धोना मत
हिंदू मुस्लिम भाईचारे, वाला राग अलापो मत
हममे कितनी सहन शक्ति है, इसे भूल से मापो मत
वरना हम बजरंगी बनकर, सुन लो जिस दिन जागेंगे
उस दिन सारे अली वली हर, गली छोडकर भागेंगे
©कवि मनु बौछार (हिन्दू स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस कविता को मूल रूप में अधिक से अधिक शेयर करें।।)