भारतीय शिक्षण मंडल के द्वारा विराट गुरुकुल सम्मेलन उज्जैन में 29-30 अप्रैल 2018 को आयोजित किया जा रहा है। जिसकी तैयारी के निमित्त 21 जनवरी को अहमदाबाद, गुजरात में बैठक संपन्न हुई है। जिसमें देशभर में वैदिक परंपरा से संचालित 1200 से अधिक गुरुकुलों को चिन्हित करके उन्हें आमंत्रण का लक्ष्य रखा गया है।
इसके अतिरिक्त संत समाज, शिक्षाविद, कुलपति, संस्थाचालक, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविदों को भी आमंत्रित किया जायेगा। इस सम्मेलन में विभिन्न गुरुकुलों की प्रस्तुतियाँ भविष्य की कार्ययोजना गुरूकुल शिक्षा पद्धति पर चर्चा की जाएगी ।
समरण रहे भारतीय शिक्षण मंडल शिक्षा के भारतीय प्रारूप को पुनः स्थापित करने का कार्य कर रहा है। इस दृष्टि से गुरुकुल शिक्षा को युगानुकूल रूप में फिर एक बार समाज में प्रचलित करने का विनम्र प्रयास किया जा रहा है| संगठित प्रयास से गुरुकुल शिक्षा फिर एक बार मुख्यधारा की शिक्षा बन सकती है| वर्तमान में प्रचलित आधुनिक शिक्षा पद्धति से समाज त्रस्त हुआ है| गलाकाट प्रतिस्पर्धा और केवल स्मृति पर आधारित शिक्षापद्धति के कारण एक ओर जहाँ छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा है वहीं दूसरी ओर शिक्षा का व्यापारीकरण भी प्रचंड गति से हो रहा है। इन दोनों बातों से त्रस्त अभिभावक (माता-पिता) समुचित विकल्प खोज रहे हैं। हजारों की संख्या में अभिभावकों ने गृह-विद्यालय (Home-schooling) को अपनाया है। कुछ लोग इसे विद्यालय परिष्कार (De-schooling) भी कहते हैं। अभिभावक बच्चों को विद्यालय से निकालकर घरों में ही पढ़ा रहे हैं । अध्ययन के साथ ही अन्य कलाओं आदि की कक्षाएं भी उपलब्ध कराते हैं ताकि बालकों का सर्वांगीण विकास हो सके। इन अभिभावकों को यदि युगानुकूल गुरुकुलों का विकल्प उपलब्ध करा दिया जाएं तो वे इसे सहर्ष स्वीकार करेंगे।
गुरुकुल शिक्षा को पुनःप्रतिष्ठित करने की दिशा में प्रथम चरण के रुप में वर्तमान में चल रहे गुरुकुलों का संकलन किया जा रहा है। संचालक एकत्रित आयेंगे तो एक-दूसरे के अनुभवों, कठिनाइयों एवं प्रयोगों से शिक्षा ले सकेंगे। संगठित प्रयास से समाज में भी समुचित मान्यता मिलना संभव हो पायेगा। गुरुकुल शिक्षा शासननिरपेक्ष व समाजपोषित होती है किन्तु वर्तमान व्यवस्था मेे शासन महा-नियंत्रक की भूमिका में रहता है। सभी गुरुकुल संचालकों के संगठित होने से समाज जागरण द्वारा गुरुकुलों की शैक्षिक एवं आर्थिक स्वायत्तता संरक्षित की जा सकेगी।
भारतीय शिक्षण मंडल परिचय
भारतीय शिक्षण मंडल शिक्षा में पुनः भारतीयता प्रतिष्ठित करने में कार्यरत एक अखिल भारतीय संगठन है। शिक्षा नीति, पाठ्यक्रम एवं पद्धत्ति तीनों भारतीय मूल्यों पर आधारित, भारत केन्द्रित तथा भारत हित की हो, इस दृष्टि से संगठन वैचारिक, शैक्षिक और व्यावहारिक गतिविधियों का नियमित आयोजन करता है। इस निमित्त मंडल ने अनुसंधान, प्रबोधन, प्रशिक्षण, प्रकाशन तथा इन सभी के लिए संगठन ऐसी एक पञ्च आयामी कार्यप्रणाली विकसित की है|
1. अनुसंधान – सभी विषयों में भारतीय ज्ञानपरंपरा तथा भारतीय विचारदृष्टि से अनुसंधान को प्रोत्साहित करना। विश्वविद्यालयों में अध्ययन समूहों का गठन करना। भारतीयता पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार करना।
2. प्रबोधन – संगोष्ठियों, सम्मेलनों एवं कार्यशालाओं के माध्यम से नीतिनिर्धारकों, शिक्षकों तथा समाज के प्रबुद्ध वर्ग में भारतीय दृष्टि जागृत करना।
3. प्रशिक्षण – शिक्षक स्वाध्याय , अभिभावक उद्बोधन तथा संस्थाचालक परामर्श आदि संदर्भित कार्यशालाओं का आयोजन करना।
4. प्रकाशन – मराठी व अंग्रेजी में मासिक, हिंदी में त्रैमासिक का प्रकाशन। हिंदी, असमिया, तेलुगु, गुजराती, कन्नड तथा मराठी में विविध पुस्तकें।
5. संगठन – देश के 24 राज्यों में भारतीय शिक्षण मंडल की इकाइयाॅं है। शिक्षा में रुचि रखनेवाले सभी लोगों के लिए साप्ताहिक ’मंडल’ तथा विषय के विशेषज्ञों के लिए ’ अध्ययन समूह’ का गठन। आजीवन सदस्यता 1000/- रु. तथा वार्षिक 100/- रु.।
युवा आयाम – युवाओं में राष्ट्रभक्ति के साथ ही राष्ट्रगौरव का भाव जागृत करने तथा युवाओं की प्रतिभा और उत्साह को राष्ट्र समर्पण हेतु तैयार करने के उद्देश्य से भारतीय शिक्षण मंडल ने युवा आयाम प्रारंभ किया है।
गुरुकुल प्रकल्प – भारतीय शिक्षण मंडल की मान्यता है कि गुरुकुल व्यवस्था शिक्षा की सनातन और स्थापित व्यवस्था है। वर्तमान में यह पद्धति युगानुकूल होकर भविष्योन्मुखी पद्धति का रुप धारण कर रही है तथा शिक्षा जगत की संपूर्ण समस्याओं और चुनौतियों का सामना करने में सक्षम सिद्ध हो रही है। इसलिए भारतीय शिक्षण मंडल आदर्श गुरुकुल तथा समाजपोषित शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है।