![नाद योग गुरु नवदीप जोशी](https://theindiapost.com/wp-content/uploads/2024/02/WhatsApp-Image-2024-02-25-at-18.38.39-1.jpeg)
दिल्ली : संस्कृत संस्कृति विकास संस्थान एवम संस्कृत विभाग, भारती महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय संस्कृति एवम ज्ञान परम्परा – प्राचीन एवम आधुनिक परिप्रेक्ष्य विषय पर आयोजित अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 21 फरवरी को भारती सभागार में हुआ । मुख्य अतिथि के रूप डॉ नवदीप जोशी ने प्रथम सत्र में बताया भारतीय संस्कृति सृष्टि के आरम्भ से वेदों के साथ प्रारंभ से सम्पन्नता लिए हुई थी । क्योंकि ऋषियों की दृष्टि विशाल थी उन्होंने किसी व्यक्ति के लिए, किसी समाज के लिए या किसी राज्य के लिए चिंतन नही किया । उनका समग्र चिंतन विश्व बंधुत्व व विश्व कल्याण के लिए था जिस कारण यह संस्कृति अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख पाए । वसुधैव कुटुम्बकम पूरा विश्व एक परिवार है । सर्वे भवन्तु सुखिन इतना ही नही मनुस्मृति में कहा है जो मनुष्य भारत मे पैदा हुआ है उन विद्ववानों ने अपने चरित्र की शिक्षा भी पृथ्वी के समस्त मानव प्राणी को देना है । ज्ञान बिना चरित्र के अधूरा है । सदाचार को पाने के लिए आकाश तत्व की प्राप्ति आवश्यक है । यदि सदाचार का पालन होगा । तो हमारी सकरात्मक ऊर्जा बढ़ेगी ओर हम समाज के प्रति करुणा , पर्यावरण के प्रति प्रेम , श्रद्धा एवम भारतीय संस्कृति के प्रति विश्वास स्वंय प्रगाण होगा । अध्यक्षता के डॉ करुणा आर्य में कहा वेदों की प्रासंगिकता के लिए उच्चारण की आवश्यकता है । संचालन डॉ रमेश कुमार ने किया । सम्मेलन में प्रो कांता भाटिया, प्रोफेसर आशा तिवारी , डॉ सरिता पाठक आदि सैकड़ो शोधकर्ताओं ने भाग लिया ।