डॉ0 जटाशंकर तिवारी : दैनिक जागरण के 18 दिसंबर के अंक में ‘सेंटर फॉर द स्टडी आफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स’ के निर्देशक एवं वरिष्ठ स्तंभकार, डॉ0 ए के वर्मा जी ने अपने लेख ‘मुस्लिम विमर्श बदलता पसमांदा आंदोलन’ में बताया है कि वास्तव में मुस्लिम एक समरूप समाज नहीं है, उसमें जातीय संरचनाएं और ऊंच-नीच का भेद है, असमानता और उत्पीड़न है और एकजुट होकर हर चुनाव में किसी पार्टी का समर्थन या विरोध करें, ऐसा भी नहीं है। पसमांदा श्रेणी में दबे-कुचले मुसलमान हैं,जो हिंदू समाज के दलित और पिछड़े वर्ग से मतांतरित किए गए थे। जहाँ, अरब, ईरान और तुर्की मूल के मुसलमान अपने को उच्च मुसलमान, अशरफ या शरीफ मुसलमान मानते हैं, वहीं हिंदुओं से धर्मांतरित 80 से 85 प्रतिशत मुसलमानों को देसी मुसलमान या गुलाम समझते हैं, जो एक ढंग से पिछड़े और दलित मुसलमान कहे जा सकते हैं। अशरफ मुसलमान मुस्लिम लॉ बोर्ड एवं मदरसों का संचालन करते है। पर, पसमांदा मुसलमानों के प्रति इतनी हीन भावना रखते हैं कि उनकी उन्नति का कतई, कोई ध्यान नहीं रहता है। पसमांदा मुसलमान देसी या कहिये हिंदुओं से धर्मांतरित मुसलमान हैं, जो राष्ट्रवाद की भावना भी रखते हैं और हिंदुओं वाली जातीयता भी उनमें पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। वे ‘कबीरदास’ जी को अपना मसीहा मानते हैं।यह एक बड़ी भिन्नता है, जो उन्हें अशरफ वर्ग से अलग रखती है और हिंदुत्व की तरफ प्रेरित करती है।इस वर्ग में धोबी, नट, बक़सू, हलालखोर, नालबंद, पमरिया, भाट, कसाई इत्यदि आते हैं।
डॉ0 ए के वर्मा जी का यह लेख ऐसा उच्च कोटि का शोधपत्र है,जिसके लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई दी जानी चाहिए। मेरी दृष्ष्टि से उन्हें D.Lit. या किसी अन्य High Academic Award से सम्मानित किया जाना चाहिए। यह लेख भारत का भाग्य बदल सकता है, भविष्य बदल सकता है तथा हिंदुओं को ghazwa-e-hind से बचा सकता है। अशरफ मुसलमान इन पसमांदा मुसलमानों पर दबाव बनाकर,दिशा निर्देश कर लूट-पाट, दंगे, हत्यायें और काफिरवादी कृत्य कराते हैं। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि भाजपा सरकार इन पसमांदा मुसलमानों को समझा-बुझाकर, हिंदू वर्ग में वापस ले आवे। उन्हें पिछड़ा और दलित वर्ग की सुविधाओं का लाभ दिलाने का आश्वासन तुरंत ही और चुनाव से पहले ही, दे दे। इससे उनका पूरा वोट भी भाजपा को मिल जाएगा। पसमांदा मुसलमान, मुस्लिम जनसंख्या का 80 से 85 प्रतिशत भाग हैं। यह वर्ग भारत राष्ट्र को अपना राष्ट्र समझेगा, ‘राष्ट्र प्रथम’ के सिद्धांत को अपनाकर राष्ट्रवादी बनेगा, ‘वंदे मातरम्’ बोलेगा, एक ही शादी, दो ही बच्चों का फार्मूला स्वीकार करेगा और सबसे बड़ी बात यह होगी कि इनके हिंदू धर्म में वापस आते ही, मुसलमान धर्म का कुरान, उसकी आयतें, उनका कट्टरवाद, काफिरवाद, नमाज, मस्जिद और मदरसों का सारा ताम-झाम, लगभग समाप्त हो जाएगा। देश में अपने आप शांति आ जायेगी। पर, प्रश्न एक ही रह जाता है कि क्या भाजपा की सरकार इस ‘अलादीन के चिराग’ को पाने के लिए अपनी बुद्धिमता का परिचय देगी। अवसर अच्छा है। भाजपा से कहा जा सकता है कि ‘अब न चूक चौहान’। इस काम में श्री वसीम रिजवी जी का साथ भाजपा के लिए बहुत अच्छा साबित हो सकता है। ‘आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज’ के नेताओं को भाजपा सरकार अपने विश्ववास में लेकर, उन्हें हिन्दू समाज में वापस लाकर, देश का और उनका भी बहुत बड़ा कल्याण कर सकती है। वैसे तो हर भारतवासी का पूर्ण विश्वास है कि ‘मोदी-योगी हैं तो सब कुछ मुमकिन है’।
हर हर महादेव
बहुत ही उत्तम सुझाव दिया है, कोटि कोटि आभार