नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा घोषित एक नई कर नीति के तहत अब कैथोलिक पादरी और नन के वेतन को भी आयकर के दायरे में लाया जाएगा। इस निर्णय का उद्देश्य सभी प्रकार की आय पर समान कर नीति लागू करना बताया गया है, जिससे धार्मिक सेवाओं से जुड़ी आय भी कराधान के दायरे में आ जाएगी।
क्या है नया निर्णय?
- जो पादरी और नन अपनी सेवाओं के बदले वेतन या मानदेय प्राप्त करते हैं, उन्हें अब आयकर चुकाना होगा।
- धार्मिक संस्थाओं द्वारा उन्हें प्रदान किए जाने वाले अन्य लाभ भी कर-निर्धारण के दायरे में आ सकते हैं।
- यह नियम आयकर अधिनियम, 1961 के तहत लागू होगा, जिसमें धार्मिक सेवाओं से जुड़ी आय को अलग से परिभाषित किया गया है।
विवाद और प्रतिक्रियाएं
यह फैसला समाज में मिली-जुली प्रतिक्रियाओं का कारण बना है।
- समर्थन में: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम कर प्रणाली में पारदर्शिता और समानता लाने के लिए आवश्यक है।
- विरोध में: धार्मिक संगठनों और समाज के एक वर्ग का कहना है कि यह कदम धर्म और सेवा के मूल्यों के विपरीत है। उनके अनुसार, पादरी और नन स्वेच्छा से सेवा करते हैं, और उनकी आय को कर से मुक्त रखा जाना चाहिए।
सरकार का रुख
सरकार का कहना है कि यह निर्णय किसी विशेष धर्म को लक्षित नहीं करता, बल्कि यह देश की कर प्रणाली को अधिक समग्र और न्यायसंगत बनाने के प्रयास का हिस्सा है।
यह देखा जाना बाकी है कि इस निर्णय का धार्मिक संगठनों और समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा सामाजिक और कानूनी विवाद का रूप भी ले सकता है।