के के शर्मा, नवल सागर कुँआ, बीकानेर : मोदी की अगली पारी की ताकत बनेगी तीन शपथ
1. “मैं कोई भी काम बदइरादे से या बदनीयत से नहीं करूंगा. काम करते करते गलती हो सकती है.”
2. “मैं मेरे लिए कुछ नहीं करूंगा.”
3. “मेरे समय का पल पल… मेरे शरीर का कण कण सिर्फ देश और देशवासियों के लिए है.”
देखा जाये तो ये एक तरीके से ये मोदी का हलफनामा लगता है – जैसे कोई शपथ पत्र पेश किया हो. देशवासियों से मोदी ने अपील की कि उन्हें इन्ही तीन तराजू पर तौला जाये और इसमें कोई कमी रह जाये तो जी भर कोसा जाये – लेकिन किसी भी सूरत में काम को बदनीयत से न जोड़ा जाये. ।
एक बार फिर से नरेंद्र मोदी की ताजपोशी हो चुकी है। देश के लोगों ने एक बार फिर से मोदी में विश्वास दिखाया है। अपार बहुमत के रथ पर सवार नरेंद्र मोदी करिश्माई लग भी रहे हैं। कभी न रुकने, कभी न थकने और कभी न झुकने वाली उनकी छवि उनके करिश्माई व्यक्तित्व का आधार है। ऐसे में ‘मैन इन एक्शन’ इमेज वाले मोदी की प्राथमिकता इस अपार जनादेश के उम्मीदों पर खरा उतरने की होगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर केंद्र की राजनीति में आने वाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने हर मैदान फतह करते हुए बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री के तौर पर न केवल अपनी दूसरी पारी का आगाज किया बल्कि पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले तीसरे प्रधानमंत्री बन गये. ‘राष्ट्रवाद’ और ‘विकास’ के नारे के साथ अपने करिश्माई व्यक्तित्व से भगवा परचम लहराने वाले मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में भाजपा को कई राज्यों में 50 फीसदी से अधिक वोट और 303 सीटें मिलीं. जबकि 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने 282 सीटों पर जीत हासिल की थी. आंकड़े गवाह हैं कि इस बार भाजपा ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा जैसे कई राज्यों में अपना मत प्रतिशत बढ़ाया है. निश्चित तौर पर इस पूरी जीत के केंद्र में मोदी रहे हैं. राष्ट्रवाद और विकास के नारे के साथ बुलंद होते मोदी ने न केवल हिन्दी में बेबाक हो कर अपनी बात रखी बल्कि चुनाव की महाभारत में अभिमन्यु के साथ-साथ अर्जुन की भूमिका भी निभायी. करारे आरोपों प्रत्यारोपों के बाद जब जीत हासिल हुई तो मोदी ने कहा कि वह पुरानी बातें भूल कर ‘सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वास’ के मूल मंत्र के साथ आगे बढ़ेंगे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने तक मोदी का सफर लंबा और उतार-चढ़ाव भरा रहा. 2014 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी गुजरात में 12 साल तक मुख्यमंत्री रहे. साथ ही उन्होंने पार्टी में तमाम तरह की जिम्मेदारियां निभाईं. उनकी छवि एक विकास पुरुष और भाजपा के ऐसे कर्णधार की रही जिनकी वजह से भाजपा अपने दम पर 303 सीटें जीत गयी. लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ते हुए मोदी पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले तीसरे प्रधानमंत्री हैं. प्रधानमंत्री के रूप में पिछले कार्यकाल के दौरान मोदी की महत्वपूर्ण पहलें जनधन योजना, ‘डिजिटल इंडिया’, आयुष्मान भारत, सभी को आवास, किसान सम्मान योजना, शौचालय एवं स्वच्छता अभियान आदि हैं. नोटबंदी और जीएसटी उनके कार्यकाल की महत्वपूर्ण सुधार पहल हैं. उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा आतंकी हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक को मोदी सरकार के मजबूत फैसले के रूप में देखा गया. लोकसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय सुरक्षा सहित एयर स्ट्राइक के मुद्दे को भाजपा ने सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर रखा और नतीजा सामने है. 17 सितंबर 1950 को गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर में जन्मे मोदी के पिता का नाम दामोदर दास और मां का नाम हीराबेन है. बचपन में मोदी वडनगर स्टेशन पर अपने पिता और भाई किशोर के साथ रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे. स्कूल के दिनों में मोदी एक्टिंग, वाद-विवाद, नाटकों में भाग लेते और पुरस्कार जीतते थे. वह एनसीसी में भी शामिल हुए. अभिनय का शौक वे 1975 में आपातकाल के दिनों में भी काम आया जब मोदी सरदार का रूप धरकर कई महीने पुलिस को छकाते रहे. बचपन से ही संघ की तरफ झुकाव रखने वाले मोदी ने 1967 में 17 साल की उम्र में घर छोड़ दिया. अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता लेने वाले मोदी बरसों बरस संघ के प्रचारक रहे. 1974 में वह नव-निर्माण आंदोलन में शामिल हुए. पढ़ाई जारी रही और मोदी ने गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए किया. कभी नरेंद्र मोदी ने संघ में कुर्ते की बांह इसलिए छोटी करवाई थीं कि कपड़ा ज्यादा खराब न हो. आज वह छोटी बांह वाला कुर्ता देश भर में मशहूर हो कर मोदी ब्रांड का कुर्ता बन गया है. हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले मोदी का भाजपा से परिचय संघ के जरिए हुआ. 1980 के दशक में वह गुजरात की भाजपा इकाई में शामिल हुए. 1988-89 में उन्हें भाजपा की गुजरात इकाई का महासचिव बनाया गया. लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा करने के बाद 1995 में मोदी को भाजपा का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया. समय के पाबंद मोदी को 1998 में महासचिव (संगठन) की जिम्मेदारी मिली और इस पद पर वह अक्टूबर 2001 तक रहे. 2001 में केशुभाई पटेल को हटा कर मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया और इस पद पर वह लगातार 2014 तक रहे. सितंबर 2014 में मोदी को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया. इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा 282 सीट जीतने में सफल रही और केंद्र में राजग की सरकार बनी. इस बार ‘मोदी मोदी’ के नारे के बीच यह संख्या बढ़ कर 303 हो गयी. ।
अबतक का सबसे शिक्षित मँत्रीमँडल —
प्रधानमंत्री समेत जिन 58 सांसदों ने मंत्री पद की शपथ ली है. इसमें 25 कैबिनेट मंत्री हैं, 24 राज्य मंत्री हैं, जबकि 9 को राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है।नई सरकार के 84 फीसदी मंत्रियों ने स्नातक या उससे ऊपर की उच्च शिक्षा हासिल की है. इनमें ज्यादातर संख्या में स्नातक यानी ग्रेजुएट हैं. कुल मंत्रियों में से 16 यानी 28 फीसदी ग्रेजुएट हैं. पोस्ट ग्रेजुएट मंत्रियों की संख्या भी 28 फीसदी है. जबकि 12 मंत्री यानी 21 फीसदी के पास इंजीनियरिंग, सीए, लॉ जैसी प्रोफेशनल ग्रेजुएट डिग्री है.
5 मंत्री यानी 9 फीसदी ऐसे हैं जिनके पास डॉक्टरेट ( पीएचडी) की डिग्री है. ये 5 मंत्री हैं— विदेश मंत्री एस जयशंकर, कौशल विकास मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल, सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री वी के सिंह और पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन राज्य मंत्री संजीव कुमार बालियान.
बाकी मंत्रियों में से 6 ऐसे हैं जो 12वीं पास हैं, दो मंत्री 10वीं पास हैं. यानी जो मंत्री सबसे कम-पढ़े लिखे हैं वे भी 10वीं पास हैं. ये दोनों मंत्री हैं— पंजाब के बठिंडा से सांसद और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल और असम के डिब्रूगढ़ से सांसद और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री रामेश्वर तेली. हालांकि, हरसिमरत दिल्ली की संस्था साउथ डेली पॉलिटेक्निक से टैक्सटाइल डिजाइनिंग में डिप्लोमा भी कर चुकी हैं.
यूँ तो इस लोकसभा चुनाव 2019 में वही मुद्दे हावी रहे जिसे भजपा ने उछाला था। विपक्ष के मुद्दे इनके मुद्दों के सामने बैकफ़ुट पर ही रहे, जिसमें आम जन के सरोकार की बातें तुलनात्मक रूप से भाजपानीत गठबंधन से ज्यादा थीं। राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भाजपा ने स्ट्रेट छक्का लगाया है। चुनाव जीतने के लिए भले ही यह मुद्दा मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ हो लेकिन आने वाले दिनों में पाकिस्तान, जम्मू कश्मीर, राम मंदिर आदि मुद्दे के सहारे ही देश वांछित प्रगति नहीं कर पाएगी, यह सरकार भी समझती है और देश की जनता भी। हालांकि इन मुद्दों के सहारे भाजपा ने देश की जनता में जो आत्मगौरव का भाव नए दृष्टिकोण से जगाया है उसे समय समय पर इसकी खुराक मिले, जनता का एक बड़ा तबका ऐसा चाहता भी है और भाजपा इसमें माहिर भी है।लेकिन इसके इतर आम आदमी, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की सहज उपलब्धि भी अपने तक सुनिश्चित चाहती है। रोजगार के अवसर आसानी से उन्हें उपलब्ध हों। महंगाई से उन्हें परेशान होना ना पड़े, शिक्षा का स्तर बेहतर हो। यानी कि आम जनता से सरोकार के जितने भी मुद्दे हैं जैसे कि रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जो सीधे उन्हें समझ आती हैं, उसमें उन्हें गुणात्मक और परिमाणात्मक सुधार चाहिए।
मोदी सरकार 2.0 इन मसलों के ख़ात्मा के लिए क्या करेगी???
किसानों की समस्या–
प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने का वादा किया है. लेकिन दूसरी ओर किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है. बीते पांच सालों में मोदी सरकार के खिलाफ कई बड़े किसान आंदोलन हुए हैं. इतना ही नहीं खेती से जुड़े अन्य काम जो रोजी-रोटी की व्यवस्था करते हैं उनमें भी गिरावट आई है. भारत में करीब 55-57 फीसदी लोग खेती पर ही निर्भर हैं. लेकिन सालों से खेती में सुधार को लेकर कोई काम जमीन स्तर पर नहीं हो पाया है. हालांकि किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिलने लगे तो हालात में काफी हद तक सुधार किया जा सकता है.
बेरोजगारी—
देश इस समय बेरोजगारी के सबसे बुरे संकट से गुजर रहा है. आंकड़ों की मानें तो बीते 45 सालों में इतनी बड़ी बेरोजगारी का संकट आया है. इस संकट को दूर करने के लिए नए उपाय और विदेशी निवेश बढ़ाना होगा. हालांकि जिस तरह से मंदी की आहट दिखाई दे रही है. उससे विदेशी निवेश के दम पर बेरोजगारी दूर करना आसान नहीं होगा.
किसानों की समस्या
प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने का वादा किया है. लेकिन दूसरी ओर किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है. बीते पांच सालों में मोदी सरकार के खिलाफ कई बड़े किसान आंदोलन हुए हैं. इतना ही नहीं खेती से जुड़े अन्य काम जो रोजी-रोटी की व्यवस्था करते हैं उनमें भी गिरावट आई है. भारत में करीब 55-57 फीसदी लोग खेती पर ही निर्भर हैं. लेकिन सालों से खेती में सुधार को लेकर कोई काम जमीन स्तर पर नहीं हो पाया है. हालांकि किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिलने लगे तो हालात में काफी हद तक सुधार किया जा सकता है.
बेरोजगारी
देश इस समय बेरोजगारी के सबसे बुरे संकट से गुजर रहा है. आंकड़ों की मानें तो बीते 45 सालों में इतनी बड़ी बेरोजगारी का संकट आया है. इस संकट को दूर करने के लिए नए उपाय और विदेशी निवेश बढ़ाना होगा. हालांकि जिस तरह से मंदी की आहट दिखाई दे रही है. उससे विदेशी निवेश के दम पर बेरोजगारी दूर करना आसान नहीं होगा.
मंदी की ओर जाती अर्थव्यवस्था—
आंकड़ो में मोदी सरकार भले ही जीडीपी की दर थामने में सफल रही है लेकिन हालात उतने अच्छे नहीं है जितने दिखाई दे रहे हैं. सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल तेल आयात में 3.5 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है. माना जाता है कि भारत को अपनी तेल की जरूरतों का 80 फीसदी से ज्यादा आयात करना पड़ता है, ऐसे में तेल का आयात कम होने से मांग और खपत में सुस्ती रहने का संकेत मिलता है.वर्ष 2018 की शुरुआत में सुधार के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में फिर वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही में सुस्ती देखी गई और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई. अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के कारण वित्त वर्ष 2019 में आर्थिक विकास दर अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर सात फीसदी कर दिया गया. योजना आयोग (इनर्जी) के एक पूर्व सदस्य ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, “तेल आयात की दर कम होने से भारत के तेल आयात बिल में कटौती होगी और इससे चालू खाता घाटा का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी लेकिन यह तेल के मौजूदा दाम का एक कारण होगा। अगर खाड़ी देशों में तनाव के कारण कच्चे तेल के दाम में उछाल आता है तो इससे देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार और सुस्त पड़ सकती है.
जीतना होगा अल्पसंख्यकों को दिल—-
पीएम मोदी के सामने इस बार भी कथित गोरक्षकों से मुस्लिम समुदाय को बचाना बड़ी चुनौती होगी. बीते 5 सालों में गोरक्षा के नाम पर मॉब लिचिंग जैसी कई घटनाएं हो चुकी हैं. हालांकि एनडीए के सांसदों को संबोधित पीएम मोदी ने कहा है कि “इस देश में वोटबैंक की राजनीति के उद्देश्य से बनाए काल्पनिक डर के ज़रिये अल्पसंख्यकों को धोखा दिया जाता रहा है. हमें इस छल का विच्छेद करना है. हमें विश्वास जीतना है.” उन्होंने कहा, “अब हमारा कोई पराया नहीं हो सकता है… जो हमें वोट देते हैं, वे भी हमारे हैं… जो हमारा घोर विरोध करते हैं, वे भी हमारे हैं. लेकिन पीएम मोदी को सबसे पहले कट्टर दक्षिणपंथी संगठनों के उन कार्यकर्ताओं पर लगाम लगाना होगा जो आए दिन मुस्लिम समुदाय को निशाने पर लेते रहते हैं.
कश्मीर, आतंकवाद और पाकिस्तान–
पीएम मोदी ने इस बार अपने शपथग्रहण में पाकिस्तान को न्योता नहीं देकर अपने इरादे जता दिए हैं कि उनकी सरकार पहले की तरह इस पड़ोसी के देश साथ ढुलमुल नीति नहीं अपनाएगी. पीएम मोदी के सामने सीमापार से आतंकवाद को रोकना बड़ी चुनौती होगी. जिस समय शपथग्रहण समारोह हो रहा था उस समय भी जम्मू-कश्मीर के सोपोर में आतंकियों के साथ मुठभेड़ जारी थी.
फिलहाल तो इस सरकार के लिए चीजें मुश्किल जरुर हैं लेकिन इन सारे मुद्दों पर सरकार को एक साथ काम करना होगा। सरकार को जल्द ही ऐसे नीति बनानी होगी और उस पर अमल भी करना होगा जिससे इन सारे मसलों पर जल्द ही काबू पाया जा सके। इसके लिए सरकार को इस दिशा में कुछ नए और साहसिक कदम उठाने होंगे। साथ ही देश में बढ़ती बेरोजगारी दूर करने के लिए नए अवसर भी पैदा करने होंगे। इन सारे मुद्दों को साथ लेकर चलना इस सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है ताकि देश आगे बढ़ सके ठीक वैसे ही जैसे देश आगे बढ़ने की बात को उन्होंने अपने चुनावी स्लोगन में इस्तेमाल भी किया था।
जनता ने भाजपा को शानदार बहुमत देकर मोदी सरकार में विश्वास दिखाया है। मोदी वैसे भी अपने चौंकाने वाले फैसले के लिए जाने जाते हैं। तो ऐसा प्रचंड जनादेश देख कर हम उम्मीद कर सकते हैं कि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी साहसिक क़दम उठा सकते हैं।