नई दिल्ली/क्वेटा: भारत द्वारा हाल में की गई आतंकवाद के खिलाफ कठोर कार्रवाई ने पाकिस्तान के भीतर भूचाल ला दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में बलोच लेखक मीर यार न केवल भारत की कार्रवाई का समर्थन करते दिख रहे हैं, बल्कि पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद के खिलाफ अपने समुदाय से आर्थिक, नैतिक और राजनीतिक रूप से लड़ने का आह्वान कर रहे हैं। उनका बयान – “अब कोई भी पाकिस्तानी किसी हिंदू से कलमा पढ़ने के लिए नहीं कहेगा, न ही उसकी पत्नी और बच्चों के सामने हत्या करेगा,” – पाकिस्तान में पलते उग्रवाद की भयावहता को उजागर करता है।
भारत को रणनीतिक बढ़त, बलूचिस्तान में उभरा समर्थन
भारत की कूटनीतिक रणनीति ने अब सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि बलूचिस्तान के भीतर भी असर दिखाना शुरू कर दिया है। वर्षों से पाक दमन झेल रहे बलूच लोग अब खुलकर बोल रहे हैं। वहां से आवाजें आ रही हैं – “हमारी लड़ाई इस क्षेत्र को आतंकवाद से मुक्त कराने की है।”
मोदी की 2016 की चेतावनी बनी हकीकत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर बलूचिस्तान का जिक्र कर संकेत दिया था कि भारत अब पाकिस्तान के आंतरिक दमन को दुनिया के सामने लाएगा। आज वह चेतावनी धरातल पर उतरती दिख रही है। भारत ने सामरिक और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर पाकिस्तान को घेरा है।
दो मोर्चों की जंग में फंसा पाकिस्तान
एक ओर भारत पाकिस्तान को सीमा पार आतंकवाद के लिए सबक सिखा रहा है, वहीं दूसरी ओर बलूचिस्तान में BLA, BRA, BLF जैसे संगठनों के हमले पाक सेना को पीछे धकेल रहे हैं। पाकिस्तान के लिए यह दोहरी चुनौती बन चुकी है।
बलूचिस्तान: इतिहास, अन्याय और संघर्ष की ज़मीन
बलूचिस्तान, जिसका इतिहास 9,000 वर्षों पुराना है, कभी भारत का हिस्सा रहा है। 1947 में कालात राज्य ने स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन पाकिस्तान ने 1948 में बलपूर्वक विलय कर लिया। तब से लेकर अब तक, वहां पांच बड़े विद्रोह हो चुके हैं और हज़ारों लोग लापता हो चुके हैं।
ऑपरेशन सिंदूर: भारत का निर्णायक कदम
भारत द्वारा किया गया ऑपरेशन सिंदूर न सिर्फ आतंकवादियों के खिलाफ सीधा संदेश है, बल्कि इससे बलूच आंदोलनकारियों में भी नया उत्साह आया है। पाकिस्तान की सेना बलूच इलाकों में कार्रवाई कर रही है, लेकिन विद्रोही भी जवाब देने लगे हैं।
बलूचिस्तान: पाकिस्तान की असलियत का आईना
बलूचिस्तान केवल एक उपेक्षित क्षेत्र नहीं, बल्कि वह आईना है जिसमें पाकिस्तान की सैन्य तानाशाही, मानवाधिकार उल्लंघन और दोगली राजनीति साफ दिखती है। यह भारत के लिए अवसर है कि वह इस मुद्दे को वैश्विक मानवाधिकार प्रश्न के रूप में सामने लाए।
निष्कर्ष:
भारत अब सिर्फ रक्षा नहीं कर रहा, रणनीतिक हमलों के जरिए परिदृश्य बदल रहा है। बलूचिस्तान की आग पाकिस्तान की उस नीतिगत असफलता की परिणति है, जिसे भारत की कूटनीति अब भुना रही है। अब समय आ गया है कि दुनिया बलूचिस्तान की आवाज सुने – और उसे “पाकिस्तान का अंदरूनी मामला” कहकर अनसुना न करे।