महानिर्वाण तिथि 1 दिसंबर 2024
गुरुवर का जाना हिंदी साहित्य की सांस्कृतिक राष्ट्रवादी ज्ञान परंपरा का क्षीण होना है। गुरुवर जयप्रकाश का गोलोक धाम जाना किसी वटवृक्ष का कट जाना है।
प्रोफेसर जयप्रकाश आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की शिष्य परंपरा में भारतीय सांस्कृतिक चेतना से प्रेरित मानव मूल्य धर्मा साहित्यकार और प्राध्यापक थे। भारतीय चिंतन बोध की धारा उनकी वाणी से अपना मुखर स्वर पाती थी। भाषा विज्ञान के उद्भट विद्वान, काव्य शास्त्र के मनीषीआचार्य, मध्यकाल के मर्मज्ञ विश्लेषक, हिंदी साहित्य और संस्कृत साहित्य के मनीषी अध्येयता और आधिकारिक विद्वान थे।
निस्तब्ध हूँ, मौन हूं, शब्द भी साथ नहीं दे रहे। गुरुवर का अनंतधाम जाना हम शिष्यों पर वज्राघात है।
गुरूवर आपका व्यक्तित्व आकाश धर्मा रहा है। आप कल्पवृक्ष के मानिंद थे , जिसको भी शिष्यत्व मिला सबको मनोवांछित फल की प्राप्ति हुई है। भारद्वाज ऋषि की कुल परंपरा में द्विवेदी वंशोदभव साहित्य साधकों , भाषाविद, दर्शन शास्त्रियों और तत्वज्ञ ज्ञानियों की लंबी परंपरा रही है। भक्ति काल में गोस्वामी तुलसीदास, रीतिकाल में देवदत्त ’देव’, आधुनिक काल में हजारी प्रसाद द्विवेदी सोहनलाल द्विवेदी और इस श्रृंखला एक और नाम जुड़ता है प्रोफेसर जयप्रकाश (द्विवेदी)।
जीवन के विषम झंझावातों को झेलते हुए अनेक वाताघातों को सहते हुए हिंदी साहित्य के अध्ययन ,अध्यापन और संवर्धन को अपने जीवन का कर्म क्षेत्र चुना। चाणक्य की प्राचीन तक्षशिला विश्व विद्यालय अर्थात् वर्तमान का पंजाब विश्वविद्यालय आपकी ज्ञान रश्मियों का सदैव ऋणी रहेगा। अपने शिष्यों को विषय ज्ञान के अलावा जीवन की व्यवहारिकता, दार्शनिक चिन्तन दृष्टि और सामाजिक सरोकार में भी आप पारंगत बनाए हैं ।
गुरूदेव आपकी कीर्ति अक्षयवट की भांति शाश्वत रहेगी। शिष्य की इतनी हित चिंता करते हुए मैं अभी तक किसी गुरु को नहीं देखा है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि आपकी शिष्य परंपरा में अंतिम कड़ी हूं। मैं आपको अपने गुरु के रूप में पाकर अभिभूत हूं। गुरुदेव लोगों ने ग्रंथ लिखे अपने सदेह शिष्य–ग्रंथ तैयार किए हैं.।
गुरुदेव द्वारा मिला हुआ स्नेह, ज्ञान और अपनापन मेरे जीवन की अक्षय पूंजी है।
सादर अश्रुपुरित नमन
डॉ अरविन्द कुमार द्विवेदी, चंडीगढ़