महर्षि वाग्भट्ट जी के अनुसार भोजन के तुरंत बाद जल नही पीना चाहिए। भोजन के एक से डेढ़ घण्टे बाद ही जल पीना चाहिए,क्योकिं जैसे ही हम भोजन ग्रहण करते हैं उससे पेट मे अग्नि जलती है,जिसे जठर अग्नि कहा जाता है,यही अग्नि खाने को पचाने का कार्य करती है।
यदि भोजन के तुरंत बाद पानी पी लिया जाए तो यह अग्नि शांत हो जाती है,जिससे भोजन के पचने का काम बंद हो जाता है,और खाना सड़ने लगता है।
यह सड़ा हुआ खाना 100 से अधिक रोग पैदा करता है, इसलिए कहा गया है- “भोजनांते विषं वारि।
“यानि के अंत मे ग्रहण जल जहर जैसा होता है।
पानी सदा घूंट-घूंट करके ही पीना चाहिए,ताकि मुँह की लार(Silva) पूरी जल के अंदर मिलकर जानी चाहिए,
क्योकिं मुख की लार क्षारीय (Alkaline)होती है और पेट मे अम्ल(Acid) बनता है।
क्षार और अम्ल (Alkali and Acid) अगर मिलता रहे तो एक दूसरे को Neutral कर देता है ।
और जब पेट Neutral रहता है तो कोई बिमारी ही नही आती है,इसलिए जल घूंट-घूंट करके ही पीना चाहिये