21 जून, लखनऊ। श्री सुमतिनाथ सेवा भवन में आज भारत विकास परिषद की कृष्णनगर शाखा द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर एक विशेष योग शिविर का आयोजन किया गया। यह अवसर इसलिए भी विशेष था क्योंकि परिषद के योग केंद्र पर निरंतर योगाभ्यास का एक वर्ष पूर्ण हो चुका था।
इस अवसर पर योग शिक्षक एम.डी. वर्मा, श्रीमती वर्मा और श्रीमती स्मिता अग्रवाल को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम संयोजकों ने बताया कि इन तीनों योग साधकों ने वर्षभर मौसम की परवाह किए बिना नित्य योग कराया और स्वयं अभ्यास किया, जो अनुकरणीय है।
कार्यक्रम के दौरान कानपुर से विमलेश अवस्थी जी द्वारा भेजी गई “योग की परिभाषा और दर्शन” पर आधारित एक विशेष ज्ञानवर्धक प्रस्तुति भी साझा की गई, जिसमें वैदिक ग्रंथों, उपनिषदों, पतंजलि योगसूत्र और भगवद्गीता के संदर्भों से योग के गूढ़ स्वरूप को उजागर किया गया।
योग: वैदिक और भगवदीय दृष्टिकोण से
- संस्कृत धातु “युज्” से निकला “योग”, आत्मा और परमात्मा के संयोजन की प्रक्रिया है।
- ऋग्वेद, कठोपनिषद और श्वेताश्वतर उपनिषद में योग को आध्यात्मिक जागृति और आत्म-साक्षात्कार का माध्यम बताया गया है।
- पतंजलि योगसूत्र में योग को “चित्तवृत्तियों की निरोध अवस्था” कहा गया है।
- भगवद्गीता में योग को कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और ध्यानयोग जैसे विभिन्न स्वरूपों में वर्णित किया गया है।
- समत्व योग, निष्काम कर्म और आत्मनियंत्रण को श्रेष्ठ योग बताया गया है।