पुणे | 7 जून 2025 , प्रशांत पोळ द्वारा लिखित “जाणता राजा” शीर्षक आलेख में छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य की शौर्यगाथा और उनके सुशासन की प्रेरणादायक झलक को एक बार फिर सजीव किया गया है। यह आलेख न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे शिवाजी महाराज ने भारतीय आत्मगौरव, संस्कृति और शासन-नीति का एक नवीन आदर्श प्रस्तुत किया।
शिवराज्याभिषेक: एक युगान्तकारी क्षण
अंग्रेजी वर्ष 1674, आनंद संवत्सर, ज्येष्ठ शुद्ध त्रयोदशी — वह पावन दिन जब इस्लामी गुलामी की सदियों की जंजीरें टूट रहीं थीं और भारतवर्ष में हिन्दू पदपादशाही का गौरव पुनः प्रतिष्ठित हो रहा था। छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण था — देवगिरी, वारंगल, विजयनगर जैसे पराजित राजवंशों के अपमान का उत्तर, और हिन्दवी स्वराज्य की घोषणा।
स्वराज्य: सुशासन, न्याय और निर्भयता की भूमि
पोळ के लेखन में जिस हिन्दवी स्वराज्य की तस्वीर उभरती है, वह केवल एक भौगोलिक सत्ता नहीं थी, बल्कि एक नैतिक और सामाजिक क्रांति थी। इसमें —
- महिलाएं निर्भयता से आभूषण पहनकर घूम सकती थीं, अपराधियों को त्वरित दंड मिलता था।
- किसानों को फसल के अनुसार कर देना होता था, न कि जबरन वसूली।
- भ्रष्टाचार का एक ही दंड था — मृत्युदंड।
- शासन decentralised था, परंतु कानूनों में केंद्रीय अनुशासन था।
- ‘राज्यव्यवहार कोष’ के माध्यम से फारसी शब्दों की जगह संस्कृत आधारित प्रशासनिक शब्दावली लाई गई।
- सेना में अनुशासन, आधुनिक हथियारों का प्रयोग, और सिंधुदुर्ग जैसे किलों से मजबूत नौसेना — सब एक संगठित राष्ट्र की ओर संकेत करते हैं।
औरंगजेब बनाम शिवाजी के मावले: 25 वर्षों की चुनौती
पोळ ने आलेख में दर्शाया कि छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य का असली मूल्यांकन तब हुआ जब औरंगजेब ने उसे मिटाने के लिए स्वयं दक्षिण की ओर कूच किया।
- जब संभाजी महाराज को बर्बरता से मारा गया, तो भी यह साम्राज्य झुका नहीं।
- जब राजाराम महाराज का भी निधन हुआ, तब भी मावले न रुके, न थके।
- 25 वर्षों तक औरंगजेब महाराष्ट्र की पहाड़ियों में भटकता रहा, पर हिन्दवी स्वराज्य को मिटा नहीं पाया।
- अंततः उसकी कब्र भी इसी धरती पर खुदी।
शाश्वत प्रेरणा: हिन्दवी स्वराज्य की पुनर्रचना
लेख का अंत उस कालजयी विचार से होता है कि जब भी शासन व्यवस्था को नैतिकता, पराक्रम और सुशासन का आधार मिलेगा, तब छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज्य पुनः प्रकट होगा। यह केवल इतिहास नहीं, भविष्य की प्रेरणा है।
📌 प्रशांत पोळ का यह लेख न केवल शिवचरित्र का गौरवगान करता है, बल्कि वर्तमान भारत को यह याद दिलाता है कि सच्चा नेतृत्व साहस, नीति, न्याय और संस्कार से जन्म लेता है।
“जाणता राजा” वास्तव में हर उस भारतीय के लिए प्रकाशपुंज है, जो इतिहास में झांककर भविष्य का निर्माण करना चाहता है।