डॉ मनीषा तिवारी : जब कोई साधारण बालक असाधारण संकल्प लेता है, तो वह जीवन नहीं, युग रचता है। ऐसा ही युग पुरुष हैं – संघ के वरिष्ठ प्रचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य, हिंदू चेतना के जागृत दीप, डॉ. इन्द्रेश कुमार जी। उनका जीवन-प्रवाह ऐसा है, जो न केवल राष्ट्रभक्ति, सेवा और संगठन की त्रिवेणी में बहता है, बल्कि उसकी गहराई में भारत का सांस्कृतिक आत्मबोध भी सजीव रहता है।
सुनियोजित समर्पण की शुरुआत: बचपन से संघ शाखा तक
हरियाणा के कैथल जैसे सांस्कृतिक नगर में जन्मे इन्द्रेश जी का परिवार अपने समय का सबसे प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार था। उनके पूज्य पिता स्वयं जनसंघ से विधायक थे – और परिवार में राजनीति, समृद्धि और संस्कार – तीनों का संतुलन था।
लेकिन यह पुत्र कुछ और ही बना। मात्र 10 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से जुड़कर एक ऐसे रास्ते की ओर बढ़ चला, जो निजी हित नहीं, केवल राष्ट्र और धर्म के हित की दिशा थी। शिक्षा में अव्वल, मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट बनने के बाद जब उनके सामने व्यवसाय और नौकरी के रास्ते खुले, तो उन्होंने तीसरा, कठिनतम रास्ता चुना – संघ का प्रचारक बनना।
प्रचारक का पथ: दिल्ली से कश्मीर तक
1970 में संघ के प्रचारक बनने के बाद डॉ. इन्द्रेश जी को दिल्ली जैसे जटिल सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में कार्यभार मिला। 1970 से 1983 तक उन्होंने संघ के विविध दायित्वों को निभाते हुए आपातकाल और सिख विरोध जैसे नाजुक मुद्दों के बीच हिन्दू समाज को दिशा दी। माँ झंडेवाली मंदिर की भूमि को कब्जे से मुक्त कराना उनके साहस का परिचायक है।
इसके बाद संघ ने उन्हें कश्मीर और हिमाचल जैसे अति संवेदनशील क्षेत्रों में भेजा। 1990 के दशक की शुरुआत में जब कश्मीर हिन्दू और राष्ट्र विरोधी ज्वालामुखी बन चुका था, उस समय इन्द्रेश जी बिना किसी सुरक्षा, अकेले गांव-गांव घूमते रहे, हिन्दू समाज को बल, दिशा और आश्वासन देते रहे।
17 वर्षों तक कश्मीर की एक-एक इंच भूमि पर उन्होंने काम किया, आतंकियों की धमकियों और हत्या के प्रयासों के बीच अविचलित रहकर। जहां देश के बड़े नेता और अधिकारी मौन थे, वहां इन्द्रेश जी की गूंजती हुई उपस्थिति थी।
एक नहीं, चालीस से अधिक संगठनों के प्रेरणास्त्रोत
इन्द्रेश कुमार जी केवल विचारक या प्रचारक नहीं, बल्कि रचनात्मक संगठन निर्माण के शिल्पी हैं। उन्होंने देश-धर्म-संस्कृति-पर्यावरण-सुरक्षा जैसे प्रत्येक आयाम में ठोस काम करने वाले संगठनों की नींव रखी, जिनमें प्रमुख हैं:
- “फिन्स” (Forum for Integrated National Security) – राष्ट्रीय सुरक्षा पर जागरूकता
- “सीमा जागरण मंच” – सीमाओं की सजगता व जन सहभागिता
- “फैन्स” (Forum for Awareness on National Security) – सुरक्षा विषयों पर समाज-सरकार संवाद
- “पूर्व सैनिक परिषद्” – सेवानिवृत्त सैनिकों के जीवन में सम्मान व सेवा की भूमिका
- “सिन्धु दर्शन यात्रा”, “तवांग यात्रा”, “परशुराम कुंड यात्रा”, “बूढ़ा अमरनाथ यात्रा”, “बाबा बालकनाथ हिमालयी एकता यात्रा”
- “हिमालय परिवार” – हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण और चेतना जागरण
- “भारत-तिब्बत सहयोग मंच”, “सिन्धु उत्सव” – तिब्बत की स्वतंत्रता और कैलाश मानसरोवर के प्रश्न पर भारत की भूमिका
- “गंगा स्वच्छता अभियान” – गंगा माँ को अविरल-निर्मल बनाने का जन-प्रयास
- “मुस्लिम राष्ट्रीय मंच”, “राष्ट्रीय ईसाई मंच”, “धर्म-संस्कृति संगम”, “नेपाल संस्कृति परिषद्”, “भारत-बांग्लादेश मैत्री परिषद”
हर संगठन केवल नाम नहीं, सक्रिय जनांदोलन है – जिनके माध्यम से लाखों लोग राष्ट्र-सेवा में जुड़े हुए हैं।
विराट व्यक्तित्व: जिससे दलाई लामा भी प्रभावित
एक प्रसंग उल्लेखनीय है: किसी कार्यक्रम में दलाई लामा और इन्द्रेश जी दोनों आमंत्रित थे। दलाई लामा पहले पहुँच गए, पर ट्रेन लेट होने के कारण इन्द्रेश जी समय पर नहीं आ पाए। आयोजकों ने अनुरोध किया कि कार्यक्रम शुरू कर लें, तो दलाई लामा बोले: “जब तक इन्द्रेश कुमार नहीं आएँगे, मैं मंच पर नहीं जाऊँगा।” यह सम्मान उस विराट व्यक्तित्व को ही मिल सकता है जो सच्चे अर्थों में तपस्वी, कर्मयोगी और भारत माता का सपूत हो।
एक यायावर साधक की दिनचर्या
गुवाहाटी से दिल्ली, दिल्ली से हैदराबाद, फिर नागालैंड – ये उनका दैनिक क्रम है। हजारों लोग प्रतिदिन मिलते हैं, पर हर नाम याद रखना, हर बात से जुड़ाव बनाए रखना, ये केवल उसी को आता है जो जनसेवक नहीं, जनहृदय हो।
इसलिए कहा: “हिमालय सा विराट व्यक्तित्व”
इन्द्रेश कुमार जी को केवल संघ प्रचारक कहना उनके व्यक्तित्व का एक अंश मात्र है। वे संघ-राजनीति-सामाजिक समरसता-धर्म जागरण-सुरक्षा चेतना-पर्यावरण चेतना-सीमांत सशक्तिकरण – हर क्षेत्र में एक युगनायक हैं।
इसलिए जब कोई कहता है कि इन्द्रेश कुमार हिमालय जैसे हैं, तो वह केवल उपमा नहीं, सत्य का उद्घोष करता है।