नई दिल्ली: यूनान के राजा अलेक्जेंडर (सिकंदर) का नाम इतिहास में विश्व-विजेता के रूप में दर्ज है। लेकिन जब उसने भारत की भूमि पर कदम रखा, तो राजा पोरस के पराक्रम ने उसकी धारणाओं को हिला कर रख दिया। भारत के राजाओं को हराना उतना आसान नहीं था, जितना सिकंदर ने सोचा था।
राजा पोरस: पराक्रमी योद्धा
राजा पोरस, पंजाब-सिंध क्षेत्र के शक्तिशाली शासक थे। उनका साम्राज्य झेलम से चेनाब नदी तक फैला था। इतिहासकारों के अनुसार, वे पोरवा वंश के राजा थे और उनका शासनकाल 340 ईसा पूर्व से 315 ईसा पूर्व तक माना जाता है। जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसे झेलम और चेनाब नदियों को पार करना आवश्यक था, लेकिन यह क्षेत्र राजा पोरस के नियंत्रण में था।
सिकंदर और राजा पोरस का टकराव
सिकंदर की विशाल सेना को देखकर गांधार और तक्षशिला के राजा आम्भी ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली, लेकिन राजा पोरस ने झुकने से इनकार कर दिया। सिकंदर ने राजा आम्भी की सहायता से झेलम नदी पार की, जिसके बाद पोरस की सेना से उसका सीधा मुकाबला हुआ। राजा पोरस की सेना में गजसेना (हाथियों की सेना) थी, जिसने यूनानी सेना को भारी क्षति पहुंचाई।
इतिहासकारों के अनुसार, सिकंदर के पास 50,000 से अधिक सैनिक थे, जबकि राजा पोरस की सेना मात्र 20,000 सैनिकों की थी। फिर भी, पोरस की सेना ने यूनानी सेना को कड़ी टक्कर दी।
युद्ध में सिकंदर की हार?
कहा जाता है कि युद्ध के पहले ही दिन पोरस के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े ‘बुकिफाइलस’ को भाले से मार गिराया। सिकंदर को युद्ध के मैदान में घायल अवस्था में गिरते हुए देखा गया, लेकिन राजा पोरस ने उसे मारने के बजाय क्षमा कर दिया। सिकंदर के अंगरक्षक उसे युद्ध क्षेत्र से बचाकर ले गए।
यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क ने लिखा है, ‘इस युद्ध में यूनानी सेना आठ घंटे तक लड़ती रही, लेकिन इस बार किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया।’ यह स्पष्ट संकेत है कि इस युद्ध में सिकंदर को पराजय का सामना करना पड़ा।
इतिहास का पुनर्मूल्यांकन
यद्यपि कई पश्चिमी इतिहासकारों ने सिकंदर को विजेता बताया, लेकिन भारतीय संदर्भ में यह युद्ध राजा पोरस की वीरता और साहस का प्रमाण है। इसीलिए, जो वास्तव में जीता, वह सिकंदर नहीं, बल्कि पोरस थे।