प्रोफ़ेसर (डॉ) एसके सिंह : सफेद सड़न रोग (White Mold) एक विनाशकारी बीमारी है, जो कवक स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटोरियम के कारण होती है। यह रोग फ्रेंच बीन (Phaseolus vulgaris) और राजमा के पौधों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यह बहु-आश्रयी (पॉलीफेगस) रोगजनक न केवल फ्रेंच बीन और राजमा बल्कि कई अन्य फसलों जैसे ब्रैसिका, गाजर, धनिया, खीरा, सलाद, खरबूज, प्याज, सूरजमुखी, और टमाटर को भी संक्रमित कर सकता है।
रोग के लक्षण
प्रारंभिक लक्षण:पौधों के तनों, पत्तियों, फूलों और फलियों पर भूरा नरम सड़ांध विकसित होती है।
सफेद कवक मोल्ड: प्रभावित क्षेत्रों पर सफेद कपास जैसे कवक मोल्ड का विकास होता है।
स्क्लेरोटिया का निर्माण:संक्रमित तनों और टहनियों में काले रंग की बीज जैसी संरचनाएं (स्क्लेरोटिया) बनती हैं।
पौधों का गिरना:तनों के पास सड़न से पौधे कमजोर होकर गिर जाते हैं।
रोग का विकास
सफेद सड़न रोग पौधों के सभी विकास चरणों में हो सकता है। हालांकि, फूल आने के समय और फलियों के बनने के बाद इसका प्रकोप अधिक होता है। यह रोग निम्नलिखित कारणों से तेजी से फैलता है जैसे….
1. वायुजनित बीजाणु:एस्कॉस्पोर्स पुराने और मरे हुए फूलों को संक्रमित करते हैं।
2. संक्रमित फूल: संक्रमित फूलों के संपर्क से पत्तियों, शाखाओं और फलियों में संक्रमण फैलता है।
3. भंडारण के दौरान संक्रमण:कटाई के बाद फसल के भंडारण और परिवहन के दौरान भी रोग का विकास हो सकता है।
संक्रमण का फैलाव
रोग के बीजाणु हवा के माध्यम से कई किलोमीटर तक फैल सकते हैं। बीज, संक्रमित पौधे, सिंचाई का पानी, और पशुओं के माध्यम से भी रोगजनक का प्रसार होता है।मधुमक्खियां भी इस रोग के बीजाणुओं को फूलों के माध्यम से प्रसारित कर सकती हैं।
रोग के अनुकूल परिस्थितियां
1. उच्च आर्द्रता और घना पौधारोपण: फसल में सघनता रोग को बढ़ावा देती है।
2. मौसम: ठंडा, गीला मौसम (20-25°C) रोग के लिए सबसे उपयुक्त है।
3. मिट्टी में स्क्लेरोटिया का दीर्घकालिक जीवन:स्क्लेरोटिया मिट्टी में 7 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।
4. मिट्टी की नमी:मिट्टी की ऊपरी सतह में पर्याप्त नमी रोगजनक के अंकुरण को प्रेरित करती है।
सफेद सड़न रोग का प्रबंधन कैसे करें?
सफेद सड़न रोग का प्रबंधन एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसे रोकने और नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
1. कल्चरल नियंत्रण
फसल चक्र:फ्रेंच बीन और राजमा के साथ 8 साल का फसल चक्र अपनाएं।
गहरी जुताई:स्क्लेरोटिया को मिट्टी की गहराई में दबा दें, जिससे उनका अंकुरण रोका जा सके।
घनी बुवाई से बचाव:पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखें।
सिंचाई प्रबंधन:दोपहर के समय सिंचाई से बचें, खासकर फूल आने की अवस्था में।
2. रासायनिक नियंत्रण
फफूंदनाशकों का उपयोग:कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। साफ़ जैसे कवकनाशकों का फूल आने के समय प्रयोग करें।
प्रारंभिक चरण में उपचार:कवक के शुरुआती लक्षण दिखने पर फफूंदनाशकों का छिड़काव करें।
3. जैविक नियंत्रण
ट्राइकोडर्मा हारजेनियम और प्सूडोमोनास फ्लुओरेसेंस जैसे जैविक एजेंटों का उपयोग रोग नियंत्रण के लिए प्रभावी हो सकता है। जैविक उपचार स्क्लेरोटिया के अंकुरण को रोकने में मदद करते हैं।
4. फसल अवशेष प्रबंधन
संक्रमित पौधों के अवशेषों को खेत से हटाकर जलाएं या गहराई में दबा दें। फसल कटाई के बाद खेत को स्वच्छ रखें।
5. अनुकूल किस्मों का चयन
रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें, यदि उपलब्ध हों।
6. समय पर निगरानी
फसल की नियमित निगरानी करें ताकि शुरुआती लक्षणों को पहचाना जा सके और समय पर उपाय किए जा सकें।
सारांश
सफेद सड़न रोग फ्रेंच बीन और राजमा की पैदावार को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। उचित प्रबंधन रणनीतियों जैसे फसल चक्र, फफूंदनाशकों का सही समय पर उपयोग, और सांस्कृतिक प्रथाओं को अपनाकर इस बीमारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। साथ ही, जैविक नियंत्रण विधियों का उपयोग लंबे समय तक स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है।
अच्छी कृषि प्रथाओं का पालन करके किसान इस रोग से बचाव कर अपनी फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार कर सकते हैं।
(विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,प्रधान, केला अनुसंधान केंद्र, गोरौल,हाजीपुर,डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार)