ललित मोहन, रुद्रपुर : एक निजी समाचार चैनल के द्वारा कई महीनों से लगातार विभिन्न टेलीविज़न चैनलों पर अपने कार्यक्रम दिखा रहे, निर्मल जीत सिंह नरूला उर्फ़ निर्मल बाबा के बारे में की गई जाँच पड़ताल का परिणाम यह हुआ, कि उसके बाद लगभग सारे हिंदी समाचार चैनल उनकी जाँच पड़ताल में जुट गए. अब एक के बाद एक हो रहे खुलासों में पता चला है, कि उनके अलग-अलग बैंक खातों में एक वर्ष में लगभग दो सौ अड़तीस करोड़ रुपये जमा हुए है. इतना ही नहीं उन्होंने बाबागिरी की कमाई से करोड़ों रुपयों की संपत्ति भी खरीदी है. दिल्ली के नेहरु प्लेस में उनका कॉल सेंटर जैसा आलीशान ऑफिस है. जहाँ पर कई लोग काम करते हैं. हालांकि समाचार चैनलों की “निर्मल निंदा” ने निर्मल बाबा के बैंक खातों में हर रोज़ जमा हो रहे लगभग एक करोड़ रुपयों को लगभग ४० लाख तक गिरा दिया है. और टी वी के द्वारा “अजब-गज़ब” प्रसिद्द हुए बाबाजी टी वी के दवारा ही बदनाम भी हो गए हैं.
बाबा के कार्यक्रम देख कर कोई भी शिक्षित व्यक्ति उनसे प्रभावित नहीं हो सकता है. परन्तु इस दुनिया में डिग्री धारक अधिक हैं जिन्हें पढ़े लिखों में शामिल नहीं किया जा सकता है. समाज में थके-हारे, निराश और बिना मेहनत के किसी चमत्कार से सुखी होने का ख़्वाब देखने वालों के कमी नहीं है. ऐसे लोग टोने-टोटकों और अन्य प्रकार के अंधविश्वासों में फँस कर अक्सर अपनी सारी कमाई किसी धूर्त के नाम कर देते हैं. कोई समझदार अगर उन्हें समझाए भी, तो उन्हें समझ में नहीं आता है. क्योंकि विनाश काल में तो बुद्धी का विपरीत हो जाना कोई नयी बात नहीं है.
कुछ नेताओं से मीडिया ने जब बाबा के बारे में प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो उन्होंने मामले के रुख को पूरी तरह समझे बिना कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा. वह इस सवाल से बचते नज़र आये. ऐसा हो भी क्यूँ नहीं. नेता तो बहुमत देखते हैं अभी बाबा के चाहने वाले उन्हें अधिक नज़र आ रहे हैं. विरोधी तो सिर्फ़ मीडिया है. और मीडिया वोट बैंक नहीं है. नेता जी बाबा जी से संपर्क कर अपना उल्लू भी सीधा करना चाहेंगे. फिलहाल `आस्था से लड़ कर नेता अपनी मिट्टी पलीत नहीं करवाना चाहेंगे. जिस दिन लगेगा हवा पूरी तरह से बाबा के खिलाफ़ हो चली है उस दिन नेताओं के सुर भी बदल जायेंगे
निर्मल जीत सिंह निरुला ने बिहार राज्य, जो कि अब झारखंड बन चुका है, में अपनी ज़िंदगी में कई व्यवसायों को अपनाने के बाद, और उनमें असफल होने पर दिल्ली चले आये और बन गए बाबा! निर्मल बाबा!. पिछले कई वर्षों से निर्मल दरबार सज रहा था. परन्तु जब इसका विज्ञापन टी वी पर आने लगा तो बाबा की गाड़ी ऐसी चली की उन्होंने अन्य सभी बाबाओं को बहुत पीछे छोड़ दिया. परन्तु अब उनकी राह में बहुत सारे स्पीड ब्रेकर आ गए हैं, आगे बड़े-बड़े गड्ढे भी होने की संभावना है. बाबा जी को गाड़ी संभल कर चलानी होगी. अगर हो सके तो उन्हें अपनी गाड़ी में पंख लगवा लेने चाहिए जो कि उनकी गाड़ी को हवा में भी उड़ा सकें.
कभी निर्मल जीत सिंह निरुला वे विज्ञापनों से करोड़ों की कमाई करने वाले चैनल अब ‘बाबा’ के पीछे हाथ धो कर पड़ गए हैं. कुछ लोगों का कहना है, कि थोड़े समय बाद ‘बाबा’ अपना ही एक चैनल ‘लॉन्च’ करने वाले थे, इस कारण मौजूदा चैनल खुन्नस खाए हुए थे. जिस चैनल ने पहली बार ‘बाबा’ की कृपा पर प्रकाश डाला, उस चैनल पर बाबा का विज्ञापन कभी नहीं आया. लोगों पर अपनी कृपा बरसाने वाले बाबा के पीछे अब इलेक्ट्रोनिक मीडिया पड़ चुका है. देखना है अब बाबा पर किसकी कृपा होती है!
निर्मल जीत सिंह नरूला के खुद को एक ‘चमत्कारी बाबा’ घोषित करने जैसी हरकत से भारत देश के महान तपस्वी संत समाज की भी बदनामी होती है. हालांकि भारतीय संत समाज, समाजसेवी, वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी वर्ग खुल कर बाबा के विरोध में मुखर हो चुका है. देखना है कि पाखण्ड के खिलाफ़ मुखर हुआ मीडिया, इस मुद्दे को किसी अंजाम तक पहुंचाता है, या फिर ‘टी आर पी’ के लिए एक मसालेदार बहस बना कर जब तक खिंच सके तब तक खींच कर यूँ ही छोड़ देता है!
नाम से ‘निर्’हट जाए तो यह ढोंगी इंसान ‘मल’ के इलावा और क्या रह जाएगा रे बाबा…हमारे देस की कुछ तासीर ही ऐसी है की अधिकतर जन समूह, वर्ग एक हद के बाद तार्किकता को एक तरफ धर के भक्ति, आसक्ति पाल लेते हैं. इसी का फायदा तो ऐसे ‘मलिन’ बाबा लोग उठाते हैं. भाई ललित मोहन की कलम ने बड़ी लेखन कुशलता से इस धूर्तता पर तीक्ष्ण कटाक्ष कसते हुए रौशनी डाली है. इनको साधुवाद!
lalit ji baba ji ki khbr ke bare hm puri trh se baba ko doshi krar nhin de skte hain iska bda hissedar hamra smaj or shiksha ka dhancha bhi ksurvaro or jvabdeh hai.
Lalit after a long time i have read a valuable article. Keep it up
Pradeep
एकदम सटीक बात लिखी है आपने न तो ऐसे बाबाओं से देश और धर्म का भला होनेवाला है और न ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सिलेक्टिव अप्रोच से.
हमारे देश में तो हाल ये है कि कई साल पहले बंगलुरु में बेनी हिन् नामक एक जादूगर टाइप बाबा आया था. उसकी आगवानी और आवभगत में खुद वहां के मुख्यमंत्री नतमस्तक हो गए थे. ऐसे देश में आम जनता के विवेक का तो कहना ही क्या?