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किसी संस्थान की पहचान बुनियादी ढांचे से अधिक उसके शिक्षकों से होती है : उप राष्ट्रपति 

admin by admin
November 10, 2024
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किसी संस्थान की पहचान बुनियादी ढांचे से अधिक उसके शिक्षकों से होती है : उप राष्ट्रपति 
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किसी संस्थान की पहचान बुनियादी ढांचे से अधिक उसके शिक्षकों से होती है। बुनियादी ढांचा समाज की जरूरत है, संस्थान की जरूरत है लेकिन संकाय इसकी खुशबू है। नौजवान मित्रो! मैं 1989 में संसद के लिए चुना गया था। मैं भाग्यशाली था कि मैं केंद्रीय मंत्री भी बना था। मैंने तब तीन चीजें देखीं। और, मैने मेरी आंखों से देखा। जिस भारत को सोने की चिड़िया कहते थे उस भारत का सोना हवाई जहाज से भौतिक स्वरूप में स्विट्जरलैंड के दो बैंकों में गिरवी रखा गया। क्यों? अपनी वित्तीय साख को बनाए रखने के लिए। क्या मौका था? हमारी विदेशी मुद्रा घटकर 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास रह गई थी। ये हालात थे। नौजवान मित्रो! आप भाग्यशाली हैं। आज हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।

दूसरा निराशाजनक परिदृश्य जो मैंने देखा, 1989 से 1991 तक, मुझे कश्मीर जाने का अवसर मिला, क्योंकि स्थिति बहुत अशांत थी। गहरी चिंता का विषय यह था कि प्रधानमंत्री भी वहां थे। वह दृश्य मैं भूल नहीं पाता। हम डल लेक के पास एक होटल में रुके और हमें लगा हम उजाड़ में आ गए। वीरान में आ गए, हमें दर्जन से ज्यादा लोग नहीं दिख रहे थे।

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नौजवान मित्रो! मुझे राज्य सभा के सभापति के रूप में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार की ओर से यह सुनकर संतोष हुआ कि, पिछले साल 2 करोड़ से ज्यादा टूरिस्ट गए थे। तीसरी बात जो मैंने 1989-91 में देखी, वह थी निराशा का माहौल, एक हताशा और हमें लगा कि हम डूब रहे हैं। एक राष्ट्र के रूप में हमारे पासपोर्ट पर उस तरह की राय नहीं होती थी। हमने जो देखा, वह था पारदर्शी और जवाबदेह शासन हमारे दिमाग में नहीं था। मेरे शब्दों पर गौर करें, हर संसद सदस्य को एक अधिकार दिया गया कि आप देश की सबसे बड़ी पंचायत में चुन कर आते हैं आपको हर साल 50 गैस कनेक्शन मिलेंगे, मुझे भी मिले और 50 टेलीफोन कनेक्शन और वो हमारी ताकत थी। हमसे याचक बनकर बड़े बड़े लोग आते थे हमें कहते थे गैस कनेक्शन दे दो और आज मैं इनकी संख्या के बारे में बताने की आवश्यकता नहीं समझता। 170, 150 या 130 मिलियन कनेक्शन मुफ्त दिए गए।

हमने उस समय को देखा है कि भारत के संविधान का मूल सिद्धांत है कानून के समक्ष समानता। पर तबसे कुछ लोगों का मानना रहा हैं हम कानून से उपर हैं। कानून हम तक नहीं पहुंच पाएगा।

हमें कानून से किसी तरह की अलिखित छूट मिली हुई है। भ्रष्टाचार एक पासवर्ड था। इसे यह सब भी प्रभावित रहे, यह किसी नौकरी, किसी अनुबंध या किसी अवसर के लिए एक पासवर्ड रहा है।

नौजवान मित्रो! आप भाग्यशाली हैं कि आपके पास एक ऐसा इकोसिस्टम है जहां शासन पारदर्शी है। शासन जवाबदेह है। भ्रष्टाचार न्यायालय के सामने पेश होने का पासवर्ड है। भ्रष्टाचार आपके घर के अलावा कहीं और रहने का पासवर्ड है। विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली ने बाहर का रास्ता देख लिया है। कानून के समक्ष समानता एक जमीनी हकीकत है। 

आज के नवयुवकों को नवयुवतियों को चाहिए क्या? वे समर्थन नहीं चाहते। उनको ऐसा नहीं लगना चाहिए कि बिना मेरिट वाला मेरे से आगे जा रहा है, फर्राटे से जा रहा है। अब संरक्षण की जगह योग्यतावाद ने ले ली है। यह बहुत बड़ा बदलाव है।

नौजवान मित्रो! आप सभी इसलिए भी भाग्यशाली हैं और सौभाग्यशाली हैं कि आपको ऐसी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। आप एक बड़े क्षेत्र में छलांग लगा सकते हैं, जहां आप पाएंगे कि आप अपनी ऊर्जा, अपनी क्षमता का दोहन कर सकते हैं, अपने सपनों और आकांक्षाओं को साकार कर सकते हैं। आज यह सब संभावनाएं आपके सामने हैं।

आपके माध्यम से मैं आज हमारे उद्योग जगत को एक बात कहना चाहता हूं। कई बार कही है। अभी पूरी तरह से सजग नहीं हुई है। अनुसंधान और नवाचार में निवेश वर्तमान में, भविष्य में, अपने विकास में निवेश, सभी को खुश करने में निवेश है। नवाचार और अनुसंधान अर्थव्यवस्था के इंजन हैं।

विघटनकारी प्रौद्योगिकियां, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, डेटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, 3डी, यहाँ तक कि 6जी। वे गेम चेंजर हैं। यह तभी आगे बढ़ेंगे जब आप जैसी प्रतिभाएं इनमें ध्यान देंगे। आपको इसके लिए प्रशिक्षित होना होगा। हम एक और औद्योगिक क्रांति के मुहाने पर हैं। यह अवसर और चुनौतियां दोनों प्रदान करता है। इसमें कोई शक नहीं है, ये टेक्नॉलजी हमारे घर में आ गई है। हमारे दफ्तर में आ गई है, हमारी कार्यशैली में आ गई है। वे हमें शैतान बना सकते हैं, वे हमें ध्वस्त कर सकते हैं, लेकिन अगर हम उनका सामान्यीकरण करें, उन्हें अवसर में बदलें, तो हम आगे बढ़ सकते हैं।

नौजवान मित्रो!एक समय था, हमारा समय था जब कोई भारतीय विदेशी संस्था में महत्वपूर्ण पद पर प्राप्त करे यह सपने में भी नहीं सोचते थे। आज के दिन बड़े बदलाव को देखिए, शायद ही कोई वैश्विक संगठन या संस्थान हो, जहां भारतीय प्रतिभा और दिमाग प्रमुख स्थान पर न हो। आप अपने देश और देश के बाहर भविष्य के प्रमुख पद धारक हैं। आप हमारे विकास इंजन का सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं, क्योंकि आप इसके ईंधन हैं। और इसलिए, आपको बहुत चिंतन मंथन करना पड़ेगा। आपको यह जानना होगा कि आपके लिए क्या संभावनाएं हैं, क्या चुनौतियां हैं। देश की तीव्र प्रगति जिसमें सभी को आनंदित होना चाहिए, भागीदार होना चाहिए, कुछ लोग अवरोधक क्यों बन रहे हैं?

मुझे कोई संदेह नहीं है और मेरा दृढ़ विश्वास है। जेन-जेड और आपकी पीढ़ी सबसे महत्वपूर्ण है। हम केवल थोड़ा-सा सहारा दे सकते हैं। आप राजनीति और अर्थव्यवस्था, सामाजिक सद्भाव और विकास के पीछे प्रेरक शक्ति हैं। 

इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं कि कृपया अपने लक्ष्य निर्धारित करें, क्योंकि आप ऐसे भारत में हैं, जो समुद्र, जमीन, आकाश और अंतरिक्ष में शानदार प्रदर्शन कर रहा है। आपके पास समुद्र में नीली अर्थव्यवस्था है। यह आपके लिए अवसरों के द्वार खोलता है, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के बारे में भी यही बात है। हम इस पर ध्यान केंद्रित करने वाले कुछ देशों में से हैं, लेकिन यह तभी फलदायी हो सकता है जब कुशल मानव संसाधन विकसित हो।

मैं सदा इस बात की वकालत करता रहा हूं कि हमारे जो लोग व्यापार में हैं, कारोबार में हैं, वाणिज्य में हैं, उद्योग में हैं, उन्हें व्यवस्था की ओर से तपिश महसूस नहीं होनी चाहिए। उन्हें समाज में सम्मान मिलना चाहिए। वे धन के सृजनकर्ता हैं, वे रोजगार के सृजनकर्ता हैं, वे अर्थव्यवस्था को गति देते हैं, वे सामाजिक सद्भाव में योगदान देते हैं, उन्होंने इस देश में समाज को वापस चुकाने की कला सीखी है। कुल मिलाकर, वे ऐसा करते हैं। यहां तक कि हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनके योगदान की झलक मिलती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति तीन दशकों के गहन विचार-विमर्श के बाद विकसित हुई, जिसमें सैकड़ों, हजारों इनपुट को ध्यान में रखा गया। अब यह क्या प्रदान करती है? अनुभवात्मक शिक्षा, आलोचनात्मक सोच, अनुसंधान के लिए उद्योग-अकादमिक साझेदारी को सक्षम करना, और पिछले बजट में सरकार द्वारा युवाओं के लिए इंटर्नशिप के लिए विकसित किया गया नया तंत्र एक गेम-चेंजर होने जा रहा है। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर उद्यमशीलता कौशल और डिजाइन वाली सोच के युवा नौजवानों-नवयुवतियों के इस एकीकरण का उद्देश्य छात्रों के लिए उद्यमशीलता को एक व्यवहार्य कैरियर मार्ग के रूप में स्थापित करना है।

आप एक तरह से सोच सकते हैं कि आपके पास एक विकल्प होगा। एक मोटा वेतन पैकेज, एक आलीशान घर, एक लिमोसिन, एक आरामदायक जीवन, आप वहां योगदान देंगे। मैं इसके खिलाफ थोड़ा भी नहीं हूं। मुझे तुरंत ट्रोल किया गया जगदीप धनखड़ इसके खिलाफ हैं। नहीं, मैं इसके खिलाफ नहीं हूं। यह आपका हक है। केवल इस वर्ग के लोगों को ही यह मिलेगा। लेकिन यह एकमात्र विकल्प नहीं है। ऐसे कई अन्य विकल्प हैं, जहां आप इससे आगे जा सकते हैं। इसलिए उस पूरे विकल्प की जांच करें। और आपको इस रास्ते में क्या सामना करना पड़ेगा? सकारात्मक शासन, सेवा वितरण में व्यापक तकनीकी अनुप्रयोग। मैं इसे अपने लिए देखता हूं। इस देश में, 100 मिलियन से अधिक किसान, साल में तीन बार, अपने बैंक खाते में सीधे बैंकिंग अंतरण प्राप्त करते हैं। मैं इस बात से प्रभावित नहीं हूं कि सरकार ऐसा कर रही है। मेरे लिए सचमुच खुशी की बात यह है कि किसान इसे पाने को तैयार हैं। किसानों को सक्षम बनाया गया है। और, ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री ने खाते खोलकर 500 मिलियन लोगों को बैंकिंग समावेशन में शामिल किया।

आखिरकार, हम अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले रोबोट नहीं हैं। हम इंसान हैं। हम एक ऐसे देश का हिस्सा हैं, जिसकी सभ्यता 5,000 साल पुरानी है।

नौजवान मित्रो! सहनशीलता एक गुण है। यह हमारी सभ्यता के लोकाचार में गहराई से समाया हुआ है। यह समाज में सद्भाव और समावेशिता का आधार है। यह समाज का अभिन्न अंग है। सामाजिक समरसता! सामाजिक समरसता के बिना बाकी चीजें अप्रासंगिक हो जाती हैं। घर में शांति नहीं हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि घर में कितनी संपत्ति है, मकान कितना बड़ा है। सामाजिक समरसता हमारा आभूषण है। सदियों से इसको देखा है।

मैं आप सभी से आग्रह करूंगा। शुरू में लगता है संक्षिप्त अवधारणा है, पर आप देखो आपके माता पिता, आपके अध्यापकगण, आपके बुजुर्ग, आपके पड़ोसी, आपके साथ रहने वाले लोग, जिनसे आप बात करते हो आप सहनशील हो, सामाजिक समरसता का ध्यान रखते हो तो बात ही कुछ अजीब है। वह ऐसी बरसात होगी जिसमें हर कोई सुख अनुभव करेगा और किसान प्रफुल्लित होगा। मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि ग्रहणशील बनें, सहनशील बनें, यह सदैव फलदायी होगा, और हर कार्य करते समय ये देखिए कि सामाजिक समरसता बढ़े।

अपने दृष्टिकोण पर दृढ़तापूर्वक अड़े रहने की इच्छा। जब आदमी का खुद का मत होता है ना तो मदहोश हो जाता है कि मेरा मत है। दूसरा मत कैसे हो सकता है। मेरा मत  ही सही है । जो यह कहता है कि मेरा मत ही सही है अक्सर उसका मत गलत होता है। हमें दूसरे का दृष्टिकोण सुनने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। आखिर कहने वाला भी तो अपना मत रखता है। और, अधिकतर युवा लड़के और लड़कियों को अन्य दृष्टिकोण भी समृद्धकारी और सही लगेगा। यह तो कभी बाध्यता नहीं है कि दूसरा अपनी बात कहेगा और हम उसको मानेंगे नहीं। न, आवश्यक नहीं है। पर उसकी बात न सुनना, उसपर चिंतन नहीं करना, मंथन नही करना। यह हमारी सभ्यता का अंग नहीं है। हम मन भेद में कभी नहीं जाते है। मतांतर रहेगा। मतांतर एक ऐसी ऊर्जा है जो व्यक्तियों को सही क्रियाकलाप की अनुमति देता है। और कुछ नहीं तो सिक्के का दूसरा पहलू तो दिखता है। और इसलिए मैं हमेशा आग्रह करूंगा, कृपया अपने स्वर तंत्र के तुरंत चालू होने से पहले अपने कान दे दें। 

मैं आपसे आग्रह करूंगा, आप जो भी विकल्प चुनें, अपने राष्ट्र में विश्वास रखें, अपने राष्ट्रवाद में विश्वास रखें। यह आपकी बहुत बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि हमारा आर्थिक राष्ट्रवाद समझौता कर रहा है, क्योंकि कुछ लोग राजकोषीय लाभ के बारे में अधिक चिंता करते हैं। कोई भी राजकोषीय लाभ आर्थिक राष्ट्रवाद के समझौते को सही नहीं ठहरा सकता है। 

हमारे अरबों में आयात को देखें जो टाले जा सकते थे। हमारे युवा मित्रो! आप जेन-जेड के साथ, एक समाधान खोजने की श्रेणी में हैं। आप संकल्प ले सकते हैं, हम अपनी उद्यमशीलता के कारण टाले जा सकने वाले आयात में कटौती करेंगे। इसका तत्काल प्रभाव होगा। हम अरबों विदेशी मुद्रा बचाएंगे। हमारे लोगों को हजारों और लाखों की संख्या में यहां काम मिलेगा। हमारी उद्यमशीलता और भी अधिक बढ़ेगी। और इसलिए मैं आग्रह करूंगा, जब भी आप अर्थव्यवस्था के बारे में सोचें, स्वदेशी के बारे में सोचें। स्वदेशी हमारा मूलमंत्र होना चाहिए।

एक बात पर और ध्यान दूंगा। मैं यह विचार आप पर छोड़ता हूं। नागरिक कर्तव्य। हमारे जो अधिकार हैं, हम उनके लिए बहुत सजग रहते हैं । हर अधिकार आपके कर्तव्य से ही पाने लायक बनता है। और, मेरे अनुसार, जैसे राष्ट्र हित, राजनीतिक और व्यक्तिगत हित से ऊपर है, उसी तरीके से आपका हर अधिकार, मौलिक अधिकार उसके भी आगे आपका उत्तरदायित्व है। आपकी नागरिकता का कर्तव्य है। अधिकारों की तुलना में सदैव कर्तव्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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