आज, 11 मार्च, सनातनियों के लिए शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जब 1783 में महान योद्धा महाराजा जस्सा सिंह रामगढ़िया ने अन्य सिख जत्थों की 30,000 सेना के साथ दिल्ली पर धावा बोल दिया था। तत्कालीन मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को दो लाख रुपये नजराना देने पर विवश होना पड़ा था।
जस्सा सिंह रामगढ़िया ने लाल किले पर विजय प्राप्त कर उस ऐतिहासिक सिंहासन पत्थर को उखाड़ लिया, जिस पर मुगल बादशाहों की ताजपोशी की जाती थी। यह पत्थर आज भी स्वर्ण मंदिर, अमृतसर के रामगढ़िया बुंग में सुरक्षित रखा हुआ है।
महान योद्धा का जीवन परिचय
महाराजा जस्सा सिंह रामगढ़िया का जन्म 1723 में अमृतसर के पास इच्छोगिल गाँव में हुआ था। उनके पिता भगवान सिंह थे। 1739 में उन्होंने नादिर शाह को लूटकर हजारों हिंदू लड़कियों को मुक्त कराया। 1748 में उन्होंने राम रोणी किला बनाया। 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान अब्दाली की सेना को लूटकर 22,000 हिंदू लड़कियों को मुक्त कराया।
जस्सा सिंह रामगढ़िया की विजयगाथा
- हिमाचल में विजय: कांगड़ा, नूरपुर, चंबा, दिपालपुर आदि क्षेत्रों पर कब्जा किया।
- लाहौर पर अधिकार: 1818 में लाहौर पर विजय प्राप्त की।
- विस्तृत रियासत: उनकी रियासत 200 मील लंबी और 125 मील चौड़ी थी। उनकी सेना में 30,000 सैनिक और 2,000 घुड़सवार थे।
- हरगोबिंदपुर को राजधानी बनाया।
दिल्ली में ऐतिहासिक धरोहर
दिल्ली में उनके द्वारा किए गए पराक्रम के कारण कुछ स्थानों के नामकरण उनसे जुड़े हैं:
- तीस हजारी कोर्ट: जहाँ उनकी 30,000 सेना ठहरी थी।
- मोरी गेट: जहाँ से लाल किले पर आक्रमण किया गया।
- पुल मिठाई: जहाँ विजय की मिठाई बांटी गई थी।
महाराजा जस्सा सिंह रामगढ़िया की पुण्यतिथि
20 अप्रैल 1803 को इस महान योद्धा ने अंतिम सांस ली। दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी ने उनकी 70 फुट ऊँची मूर्ति दिल्ली में स्थापित करने का निर्णय लिया था।
हमें इस महान योद्धा पर गर्व करना चाहिए और हर साल 11 मार्च को शौर्य दिवस तथा 20 अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि मनानी चाहिए।