नई दिल्ली: कोरोना महामारी के बाद गिलोय (टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया) पर वैज्ञानिक शोध में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई है। वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त पबमेड डेटाबेस के अनुसार, पिछले एक दशक में गिलोय पर शोध प्रकाशनों की संख्या में 376.5% की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2014 में गिलोय पर 243 शोध प्रकाशित हुए थे, जबकि 2024 में यह संख्या बढ़कर 913 हो गई।
गिलोय पर कोविड के बाद तेज हुए अनुसंधान
गिलोय को आयुर्वेद में सदियों से एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी माना जाता रहा है। कोविड-19 के बाद, वैज्ञानिकों की रुचि इस प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर के गुणों को समझने में और बढ़ गई। हालिया अध्ययन इसके प्रतिरक्षा-वर्धक, एंटीवायरल और एडाप्टोजेनिक गुणों को प्रमाणित कर रहे हैं, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।
आयुष मंत्रालय कर रहा वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा
आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा, “गिलोय और अन्य औषधीय पौधों का वैज्ञानिक सत्यापन हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। हम आयुर्वेद को मुख्यधारा की चिकित्सा से जोड़ने के लिए अनुसंधान को वित्तीय सहायता और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दे रहे हैं।”
गिलोय के औषधीय गुणों पर नई शोध खोजें
🔹 फरवरी 2025: गुजरात यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सर्वाइकल कैंसर के इलाज में गिलोय के संभावित इम्यूनोमॉड्यूलेटरी लाभों को उजागर किया।
🔹 जनवरी 2025: टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई के शोधकर्ताओं ने पाया कि गिलोय-आधारित दवाएं स्तन विकार (IGM) के इलाज में स्टेरॉयड-मुक्त और सर्जरी रहित प्रभावी विकल्प प्रदान कर सकती हैं।
आयुष मंत्रालय का बड़ा कदम: गिलोय पर तकनीकी डोजियर जारी
आयुष मंत्रालय ने गिलोय के औषधीय और चिकित्सीय उपयोगों को प्रमाणित करने के लिए एक तकनीकी डोजियर जारी किया है। इस पहल का उद्देश्य आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान को एकीकृत करना और गिलोय को एक साक्ष्य-आधारित हर्बल उपचार के रूप में स्थापित करना है।
गिलोय: भविष्य की आयुर्वेदिक चिकित्सा का केंद्रबिंदु
विशेषज्ञों का मानना है कि गिलोय भविष्य में कैंसर, ऑटोइम्यून रोग और सूजन संबंधी विकारों के उपचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जैसे-जैसे दुनिया प्राकृतिक और पौधों-आधारित उपचारों की ओर बढ़ रही है, भारत का आयुर्वेदिक ज्ञान वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में नई क्रांति ला सकता है।