• About
  • Advertise
  • Privacy & Policy
  • Contact
Sunday, November 9, 2025
No Result
View All Result
  • Login
  • Home
    • Home – Layout 1
    • Home – Layout 2
    • Home – Layout 3
    • Home – Layout 4
    • Home – Layout 5
    • Home – Layout 6
  • Article
  • Haryana
  • Punjab
  • Chandigarh
  • Uttarakhand
  • Education
  • Sports
  • Health
  • World
  • Agriculture
  • Home
    • Home – Layout 1
    • Home – Layout 2
    • Home – Layout 3
    • Home – Layout 4
    • Home – Layout 5
    • Home – Layout 6
  • Article
  • Haryana
  • Punjab
  • Chandigarh
  • Uttarakhand
  • Education
  • Sports
  • Health
  • World
  • Agriculture
No Result
View All Result
TheIndiaPost
No Result
View All Result
Home Article

प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था / 2

admin by admin
March 3, 2025
in Article
0
प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था / 2
0
SHARES
133
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter
Prashant Pole

प्रशांत पोळ : संपूर्ण कात्यायन स्मृति में, न्यायालय की परिभाषा से लेकर, विविध प्रसंगों में किस प्रकार से न्यायदान करना चाहिए, इस पर विस्तार से चर्चा की है। ( Read part 1) : प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था / 1

न्यायालय की परिभाषा-

READ ALSO

अभागा थारपारकर…

हिमालय सा विराट व्यक्तित्व : आदरणीय इन्द्रेश कुमार

धर्मशास्त्र विचारेण मूलसार विवेचनम्
यत्राधिक्रियते स्थाने, धर्माधिकरणम् हितत् ।।52।।

[The place, where the decision of the truth of the plaint, i.e. lit, the cause or root of the dispute, is carried on by a consideration of the (rules of the) sacred law is (called) the Hall of Justice]

धर्माधिकरण याने न्यायालय.

मजेदार बात यह है कि, कात्यायन स्मृति में फिर्यादी को किस प्रकार के प्रश्न पूछने चाहिए इसका भी विस्तार से वर्णन किया है,।

प्रश्न प्रकार –

काले कार्यार्थिनं पृच्छेत प्रणतंपुरतःस्थितं ।
किं कार्य का च ते पीडा मा भैषीब्रूहि मानव ।।86।।

केन कस्मिकंदाकस्मातपृच्छे देवं सभागतः I
एवं पृष्ठः सयद्ब्रूयात्तत्सभ्यै ब्राह्मणैः सहः ।।87।।

विमृश्य कार्यं न्यायंचेदाव्हानार्थमतः परम्
मुद्रां वा निक्षेपेत्तस्मिन्पुरुषं वा समादिशेत ।।88।।

अर्थात, न्यायाधीश ने पक्षकार को (जो फरियाद लेकर आया है), न्यायालय के उचित समय पर, प्रश्न पूछना चाहिए। यह पूछते समय, पक्षकार ने न्यायाधीश के सामने आदब से खड़ा रहना है। न्यायाधीश पूछेंगे, “आपकी शिकायत क्या है? आपको कहीं चोट तो नही आई हैं? डरिए मत…” आदि।

इसके बाद न्यायाधीश ने पूछना है, “किसके कारण, कहां, कब, (दिन के किस समय) और क्यों ?आपको तकलीफ हुई, या आप क्यों शिकायत कर रहे हैं?” इन प्रश्नों पर पक्षकार जो कहता है, वह न्यायालय ने शांति से सुनना है। उस न्यायालय में उपस्थित मूल्यांकन कर्ताओं की (आज की भाषा में ‘जूरी सदस्य’) मदद से, उनकी सलाह पर, न्यायमूर्ति ने यह तय करना है कि यह शिकायत / यह प्रकरण न्याय प्रविष्ट होने योग्य है या नहीं? अगर है, तो न्यायमूर्ति ने संबंधित गुनहगार को हाजिर करने के लिए संबंधित अधिकारियों को आज्ञा देनी है।

कितना अद्भुत है यह सब..! पां. वा. काणे के कहे अनुसार, हम आश्चर्यचकित हो जाते हैं, यह सब पढ़कर! कितने विस्तार से पूरी न्याय प्रणाली (न्याय की पद्धति / प्रक्रिया) समझायी है। सनद रहे, कम से कम दो – ढाई हजार वर्ष पूर्व, अपने देश में इतनी व्यवस्थित, और ठीक से दस्तावेजीकरण (Well documented) की हुई, न्याय व्यवस्था अस्तित्व में थी।

और हमें पढ़ाया गया कि भारत में न्याय व्यवस्था लायी, वह अंग्रेजों ने..!

एक हजार से अधिक श्लोक कात्यायन स्मृति में है। यह ग्रंथ विस्तृत धर्मशास्त्र का एक हिस्सा है। इस का अर्थ है, हमारे पूर्वजों ने एक सुव्यवस्थित न्याय प्रणाली विकसित करके उसका उपयोग किया था।

इसीलिए समाज में किसी पर भी अन्याय नहीं होता था, और कानून व्यवस्था सही रूप में लागू की जा रही थी।

   -------------       ------------

धर्मशास्त्र का (अर्थात न्याय शास्त्र का), विस्तृत विवेचन करने वाला कात्यायन स्मृति यह एकमात्र ग्रंथ नहीं था। साधारणत: ढाई हजार वर्ष पुराना, या उससे भी प्राचीन, ‘याज्ञवल्क्य स्मृति’ यह ग्रंथ भी, भारतीय न्याय पद्धति की विस्तृत विवेचना करता है। इस ग्रंथ में कुल 1003 श्लोक है, जो तीन खंडों में विभाजित है।

  1. आचार कांड – इसमें तेरा अध्याय है। ब्रह्मचारी, विवाह, गृहस्थ, भक्ष्याभक्ष्य, द्रव्यशुद्धी, दान, श्राद्ध, राज धर्म इत्यादि विषयों पर इसमें विवेचन किया है।
  2. व्यवहार कांड – 25 अध्याय के इस कांड में सीमावाद, स्वामीपालवाद, अस्वामी विक्रम, दत्तक प्रधानिक (गोद लेना), वेतन, दान, वाकपारूष्य आदि विषय और उनके यम-नियम का वर्णन है।

03.प्रायश्चित कांड – इसमें 6 अध्याय है। शौच प्रकरण, आपधर्म प्रकरण, वानप्रस्थ, यति धर्म प्रकरण, प्रायश्चित प्रकरण जैसे विषय इसमें आते हैं।

अंग्रेजों का शासन भारत में जब तक अच्छी तरह स्थिर नहीं हुआ था, तब तक, मुख्य रूप से ‘याज्ञवल्क्य स्मृति’ के आधार पर न्यायदान के काम चलते थे। याज्ञवल्क्य ऋषि मिथिला के थे। शुक्ल यजुर्वेद और ‘शतपथ ब्राह्मण’ उपनिषद के रचयिता थे।

याज्ञवल्क्य स्मृति मे, पंचायत समिति (ग्राम पंचायत) में व्यवस्था कैसी होनी चाहिए इस विवेचन से लेकर, राज्य के मुख्य न्यायाधीशने, या राजा ने, किस प्रकार से न्याय देना चाहिए, इसकी विस्तार से चर्चा की है।

पिछले कुछ वर्षों से अपने देश में ‘मनुस्मृति’ की बहुत चर्चा हुई है। ‘भारत की प्राचीन समाज व्यवस्था और न्याय व्यवस्था मनुस्मृति के ही आधार पर चलती थी’ ऐसा चित्र निर्माण किया गया हैं। यह गलत है।

भारत के न्याय व्यवस्था के संदर्भ में मनुस्मृति यह मुख्य संदर्भ ग्रंथ कभी नहीं था। अनेक संदर्भ ग्रंथो में से एक था, यह सच है। ‘दंड विधान’ मे, अर्थात सजा देने मे मनुस्मृति का कुछ अंशों मे उपयोग होता था, यह भी सच हैं। किंतु केवल इतना ही..! जो महत्व कात्यायन स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, पाराशर स्मृति को था, उतना महत्व मनुस्मृति को निश्चित रूप से नहीं था।

किंतु ‘इन दो – ढाई हजार वर्ष पुरानी स्मृतियों के आधारपर ही, भारत की न्याय व्यवस्था चलती थी’ यह विधान पूर्ण सत्य नहीं है। यह अर्ध सत्य है।
(क्रमशः)

  • प्रशांत पोळ
    (आगामी प्रकाशित ‘भारतीय ज्ञान का खजाना – भाग २’ के अंश)

Share this:

  • Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
  • Click to share on X (Opens in new window) X

Like this:

Like Loading...
Tags: ancient indian justice system

Related Posts

अभागा थारपारकर…
Article

अभागा थारपारकर…

October 22, 2025
डॉ. इन्द्रेश कुमार जी, हिमालय सा विराट व्यक्तित्व
Article

हिमालय सा विराट व्यक्तित्व : आदरणीय इन्द्रेश कुमार

September 11, 2025
EVM बनाम मोबाइल तकनीक – भ्रांतियों से परे सच्चाई
Article

EVM बनाम मोबाइल तकनीक – भ्रांतियों से परे सच्चाई

August 23, 2025
फिगर मेंटेन और लैविश लाइफ की बीमारी, सनातनी वंश एवं राष्ट्र दोनों के लिए घातक – दिव्य अग्रवाल
Article

फिगर मेंटेन और लैविश लाइफ की बीमारी, सनातनी वंश एवं राष्ट्र दोनों के लिए घातक – दिव्य अग्रवाल

July 15, 2025
50 years of Emergency : Those dark days should never return
Article

50 years of Emergency : Those dark days should never return

June 24, 2025
संविधान की हत्या के पचास वर्ष / 4 टूट सकते हैं मगर हम…
Article

संविधान की हत्या के पचास वर्ष / 4 टूट सकते हैं मगर हम…

June 25, 2025
TheIndiaPost

© 2006 TheIndiaPost - Bharat Ki Awaz TheIndiaPost.

Navigate Site

  • About
  • Advertise
  • Privacy & Policy
  • Contact

Follow Us

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • Headline
  • Haryana
  • Health
  • Education
  • Article
  • Punjab
  • Chandigarh
  • Agriculture

© 2006 TheIndiaPost - Bharat Ki Awaz TheIndiaPost.

%d