Dr. S.K. Singh : आम (Mangifera indica) भारतीय उपमहाद्वीप का एक प्रमुख फलदार वृक्ष है, जिसे “फलों का राजा” भी कहा जाता है। आम के वृक्ष की जैविक संरचना, फल धारण करने की प्रवृत्ति और इसके सांस्कृतिक, वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक संदर्भों को समझना महत्वपूर्ण है। जब कोई आम का फल मुख्य तने (ट्रंक) पर लदा हो, तो यह कई दृष्टिकोणों से संकेत कर सकता है—वानस्पतिक, पर्यावरणीय, आर्थिक और दार्शनिक।
1. जैविक एवं वानस्पतिक संकेत
आम का वृक्ष प्रायः शाखाओं पर फल देता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में फल मुख्य तने पर भी विकसित हो सकता है। यह निम्नलिखित जैविक संकेतों को दर्शाता है—
(i) अनुवांशिक विशेषताएँ
कुछ आम की किस्मों जैसे कभी कभी आम की मशहूर दशहरी प्रजाति में ‘काउडक्सियल फ्रूटिंग’ (caudexial fruiting) की प्रवृत्ति पाई जाती है, जिसमें मुख्य तने पर फूल और फल विकसित होते हैं। यह वृक्ष की अनुवांशिक प्रकृति पर निर्भर करता है।
(ii) पौधों का वृद्धावस्था संकेत
कई बार पुराने वृक्षों में तने पर भी फल लग सकते हैं, जो यह दर्शाता है कि वृक्ष अपने जीवन चक्र के एक विशेष चरण में पहुँच गया है। इस अवस्था में आम को बचाने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है ,अन्यथा पेड़ मर जाएगा।
(iii) हार्मोनल प्रभाव
ऑक्सिन (auxin) और साइटोकाइनिन (cytokinin) जैसे पौधों के हार्मोन मुख्य तने पर कोशिका विभाजन और वृद्धि को बढ़ावा देते हैं, जिससे वहाँ फल बनने की संभावना बढ़ जाती है।
2. पर्यावरणीय और कृषि संबंधी संकेत
मुख्य तने पर फल लगना कई पर्यावरणीय स्थितियों का द्योतक हो सकता है—
(i) जलवायु परिवर्तन
अगर आम के वृक्ष पर जलवायु परिवर्तन या असामान्य मौसम का प्रभाव पड़ा हो, तो उसकी फलन की प्रवृत्ति भी बदल सकती है।
(ii) रोग और कीट प्रभाव
कभी-कभी, जब वृक्ष की ऊपरी शाखाएँ किसी रोग (जैसे, एन्थ्रेक्नोज या पाउडरी मिल्ड्यू) से प्रभावित होती हैं, तो नए पुष्प गुच्छ और फल मुख्य तने की ओर स्थानांतरित हो सकते हैं।
(iii) पोषण एवं मिट्टी की स्थिति
यदि पौधे को समुचित पोषण न मिले या उसकी जड़ प्रणाली सही से कार्य न कर रही हो, तो वृक्ष मुख्य तने पर फल विकसित कर सकता है, क्योंकि वहाँ ऊर्जा और पोषण की अधिक आपूर्ति होती है।
3. आर्थिक और बागवानी संबंधी संकेत
मुख्य तने पर फल लगना बागवानी विज्ञान के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो सकता है—
(i) नई किस्मों के चयन का अवसर
ऐसे वृक्षों का अध्ययन कर ब्रीडिंग प्रोग्राम में उपयोग किया जा सकता है, जिससे नई आम की किस्मों का विकास संभव हो सकता है।
(ii) कृषकों के लिए लाभदायक संकेत
अगर मुख्य तने पर अधिक फल लगते हैं, तो यह संकेत करता है कि वृक्ष में एक नई फलन प्रवृत्ति विकसित हो रही है, जिसका उपयोग व्यावसायिक खेती में किया जा सकता है।
4. सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संकेत
भारतीय संस्कृति में आम का विशेष स्थान है। मुख्य तने पर फल लगने को कई तरह के प्रतीकों से जोड़ा जा सकता है—
(i) स्थायित्व और दृढ़ता
मुख्य तने पर फल लगना इस बात का प्रतीक हो सकता है कि जीवन में दृढ़ता और निरंतरता से फल प्राप्त होते हैं।
(ii) जीवन की विविधता
आम का वृक्ष हमें यह सिखाता है कि जीवन में विविध प्रकार की परिस्थितियाँ आ सकती हैं और हमें हर स्थिति में फलदायी बने रहना चाहिए।
(iii) शुभ संकेत
कुछ लोगों के अनुसार, मुख्य तने पर फल लगना सौभाग्य और समृद्धि का संकेत है।
5. वैज्ञानिक अनुसंधान और भविष्य की संभावनाएँ
मुख्य तने पर फल लगने की घटना के वैज्ञानिक अध्ययन से कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं—
(i) वृक्षों की अनुवांशिक प्रवृत्तियों का अध्ययन
इस विशेषता को शोध के माध्यम से समझा जा सकता है, जिससे नए प्रकार के आम के पौधों का विकास किया जा सकता है।
(ii) पर्यावरणीय कारकों का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में यह अध्ययन किया जा सकता है कि कौन-से पर्यावरणीय कारक मुख्य तने पर फलन को बढ़ावा देते हैं।
(iii) रोग प्रतिरोधी किस्मों का विकास
अगर किसी विशेष प्रकार के आम में यह प्रवृत्ति पाई जाती है, तो इसे रोग प्रतिरोधी प्रजातियों के विकास में उपयोग किया जा सकता है।
सारांश
आम के मुख्य तने पर लदा फल केवल एक जैविक घटना नहीं है, बल्कि यह प्रकृति का एक संदेश भी है। यह वृक्ष के अनुवांशिक गुणों, पर्यावरणीय परिस्थितियों, पोषण, रोग प्रतिरोधक क्षमता, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण संकेत देता है। इस घटना का वैज्ञानिक अध्ययन न केवल कृषि और बागवानी क्षेत्र में उपयोगी हो सकता है, बल्कि इससे आम उत्पादन की नई संभावनाएँ भी खुल सकती हैं।
इस प्रकार, आम के मुख्य तने पर लदा फल हमें यह प्रेरणा देता है कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, यदि हम जड़ों से जुड़े रहते हैं और अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाते हैं, तो सफलता और फलन निश्चित रूप से प्राप्त होगी।
(प्रोफेसर (डॉ.) एस. के. सिंह
विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, प्रधान, केला अनुसंधान केंद्र,गोरौल,हाजीपुर डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर, बिहार)