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Home Agriculture

पपीता नहीं सहता पानी की मार, बरसात में न करें इसकी खेती का विचार

admin by admin
June 24, 2025
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पपीता नहीं सहता पानी की मार, बरसात में न करें इसकी खेती का विचार
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प्रोफेसर (डॉ) एस.के. सिंह : पपीता (Carica papaya) एक महत्वपूर्ण फल फसल है जो भारत के विभिन्न हिस्सों में व्यापक रूप से उगाई जाती है। इसकी खेती सफलतापूर्वक करने के लिए उपयुक्त जलवायु और अच्छी तरह से निकास वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। हालांकि, बरसात के मौसम में पपीता लगाने से किसानों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ. एस.के. सिंह के अनुसार, यदि खेत में 24 घंटे से अधिक पानी जमा रहा, तो पपीते के पौधों को बचाना लगभग असंभव हो जाता है। अतः बरसात के समय इसकी खेती से परहेज करना चाहिए।

1. जलभराव और जड़ सड़न की गंभीर समस्या

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पपीते की जड़ें सतही होती हैं, जो लंबे समय तक जल-जमाव सहन नहीं कर सकतीं। बरसात में भारी वर्षा के कारण खेतों में पानी भर जाता है, जिससे मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और जड़ें सड़ने लगती हैं। फाइटोफ्थोरा और पायथियम जैसे फफूंदजन्य रोग इस स्थिति में अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं और पौधों को नष्ट कर सकते हैं। एक बार यह रोग फैल जाए तो पूरे खेत की फसल प्रभावित हो सकती है।

2. रोगों के फैलाव का अनुकूल मौसम

बरसात के दौरान उच्च आर्द्रता और लगातार गीली परिस्थितियाँ फंगल और बैक्टीरियल रोगों के प्रसार को बढ़ावा देती हैं। पपीते में एन्थ्रेक्नोज, ब्लैक स्पॉट, तथा रिंग स्पॉट वायरस जैसी बीमारियाँ इस मौसम में अधिक तीव्रता से फैलती हैं। इन रोगों का नियंत्रण कठिन और महंगा होता है तथा अत्यधिक रसायनों के उपयोग से पर्यावरणीय असंतुलन की आशंका रहती है।

3. पोषक तत्वों का बहाव और पौधों में कमी

तेज बारिश के कारण मिट्टी में मौजूद जरूरी पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम बह जाते हैं। इससे पपीते की वृद्धि रुक जाती है और फलों का विकास प्रभावित होता है। इस स्थिति से उबरने के लिए किसानों को बार-बार उर्वरक डालने पड़ते हैं, जिससे लागत बढ़ जाती है।

4. कीटों की संख्या और हमले में वृद्धि

बरसात के मौसम में फल मक्खी, एफिड, व्हाइट फ्लाई, स्लग और घोंघा जैसे कीटों की संख्या बढ़ जाती है। ये कीट पौधों को चूसकर कमजोर करते हैं और कई बार रोगों को फैलाने का कार्य भी करते हैं। इन पर नियंत्रण के लिए अधिक मात्रा में कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जो महंगे होने के साथ-साथ जैविक खेती की दिशा में बाधा बनते हैं।

5. तेज वर्षा और हवाओं से शारीरिक क्षति

भारी बारिश, तेज हवाएं और कहीं-कहीं ओलावृष्टि से पपीते के नाजुक पौधे टूट जाते हैं या उखड़ जाते हैं। युवा पौधे विशेष रूप से इस तरह की प्राकृतिक घटनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। इससे न केवल फसल नष्ट होती है, बल्कि भविष्य के उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

6. परागण में रुकावट

पपीते के सफल फलन के लिए परागण अत्यंत आवश्यक है। बरसात के मौसम में मधुमक्खियों जैसी प्राकृतिक परागणक गतिविधियाँ बाधित हो जाती हैं। बारिश के कारण पराग बह सकते हैं और निषेचन न हो पाने के कारण फलन दर घट जाती है।

7. मिट्टी की सघनता में वृद्धि

लगातार बारिश से मिट्टी सघन हो जाती है, जिससे उसमें वायु संचरण और जल निकास बाधित होता है। यह स्थिति जड़ों के लिए हानिकारक होती है और पौधों की वृद्धि को धीमा कर देती है। मिट्टी की यह सघनता जड़ों के विकास में रुकावट उत्पन्न करती है और लंबे समय तक भूमि की उत्पादकता को घटा सकती है।

8. खरपतवारों का प्रकोप

बरसात में खरपतवार तेजी से बढ़ते हैं और पपीते के पौधों से पोषक तत्व, जल, और प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। गीली मिट्टी में खरपतवार नियंत्रण अत्यंत कठिन हो जाता है और शाकनाशी या अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता होती है, जिससे उत्पादन लागत में और वृद्धि होती है।

9. फल गुणवत्ता में गिरावट और भंडारण की समस्या

बरसात के मौसम में कटाई किए गए पपीते अधिक नमी युक्त होते हैं। इससे फलों की गुणवत्ता, स्वाद और भंडारण क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है। उच्च नमी के कारण कटाई के बाद फफूंदजन्य बीमारियाँ जल्दी लगती हैं, जिससे बाजार में उनकी कीमत गिर जाती है और किसान को घाटा होता है।

सारांश: सावधानी ही सफलता की कुंजी

पपीता एक लाभकारी फसल है, लेकिन इसे गलत मौसम में लगाने से भारी नुकसान हो सकता है। बरसात के मौसम में पपीता लगाने से बचना चाहिए क्योंकि यह मौसम जलभराव, रोग, कीट और पोषक तत्वों की कमी जैसी कई समस्याएँ लेकर आता है। इनसे निपटना कठिन और खर्चीला होता है। डॉ. एस.के. सिंह के अनुसार, पपीता लगाने के लिए शुष्क और नियंत्रित सिंचाई वाले मौसम का चयन करना ही समझदारी है। इससे न केवल पौधों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, बल्कि अच्छी उपज और बेहतर गुणवत्ता वाले फल भी प्राप्त होते हैं।

प्रोफेसर (डॉ) एस.के. सिंह : वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं प्रमुख फल रोग विशेषज्ञ,पूर्व प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा-848125, समस्तीपुर, बिहार

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